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मिरांडा हाउस के विशेष अध्ययन केंद्र में प्राचीन भारतीय लिपि पढ़ सकेगी अगली पीढ़ी - read write ancient Indian script

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Aug 18, 2024, 2:24 PM IST

Updated : Aug 20, 2024, 11:40 AM IST

special center for read and write ancient indian scripts : दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज ने प्राचीन लिपियां में लिखे गए अभिलेखों को पढ़ने और लिखने के लिए विशेष केंद्र स्थापित किया है.इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अंतर्गत आने वाले नेशनल मिशन फॉर मैनूस्क्रिप्टस के साथ मिलकर इस केंद्र को खोला गया है.जहां छात्रों को प्राचीन लिपियां पढ़ने के लिए तैयार किया जा रहा है.

प्राचीन भारतीय लिपियों को पढ़ने लिखने के लिए मिरांडा हाउस में तैयार की जा रही अगली पीढ़ी
प्राचीन भारतीय लिपियों को पढ़ने लिखने के लिए मिरांडा हाउस में तैयार की जा रही अगली पीढ़ी (ETV BHARAT)

नई दिल्ली: मौर्यकालीन, गुप्तकालीन और मुगलकालीन लिपियों में लिखे गए अभिलेखों और इतिहास के बारे में अक्सर हम लोग सुनते और पढ़ते रहते हैं लेकिन इन कणों से संबंधित लिपियां और पांडुलिपियों लाखों की संख्या में विरासत के रूप में मौजूद हैं. लेकिन अभी तक उनको उपयोग में नहीं लाया जा सका है और ना ही उनके ज्ञान विज्ञान को जमीन पर उतारा गया है. इसके पीछे कारण पहले जो भी रहे हो. लेकिन, मौजूदा समय में कारण एक ही है कि इन लिपियों के जानकार अब विलुप्त होते जा रहे हैं. इसलिए अब प्राचीन लिपियों के जानकारों की दूसरी पीढ़ी तैयार करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज ने बीड़ा उठाया है.

प्राचीन भारतीय लिपियों को पढ़ने लिखने के लिए मिरांडा हाउस में तैयार की जा रही अगली पीढ़ी (ETV BHARAT)

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अंतर्गत आने वाले नेशनल मिशन फॉर मैनूस्क्रिप्टस के साथ मिलकर केंद्र स्थापित

कॉलेज ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अंतर्गत आने वाले नेशनल मिशन फॉर मैनूस्क्रिप्टस के साथ मिलकर कॉलेज के अंदर एक ऐसा केंद्र स्थापित किया है जहां मौजूदा पीढ़ी को सिर्फ प्राचीन लिपियों ब्राह्मी, शारदा, उड़िया, नस्तालिक उर्दू, ग्रंथ, सिद्धान, देवनागरी, बक्शाली, गंधारा सहित अन्य कई लिपियों को पढ़ने और लिखने का काम सिखाया जा रहा है. जिससे इन लिपियों के जानकार लोगों की कमी को पूरा करके अगली पीढ़ी को तैयार किया जा सके. कोई भी इन लिपियों को सीखने के लिए दाखिला ले सकता है.

3 महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के लिए छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शुल्क
केंद्र में कोर्स कोआर्डिनेटर का कार्यभार संभाल रहे सहायक प्रोफेसर चंदन कुमार मिश्रा ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना कॉलेज द्वारा अप्रैल महीने में की गई थी. उसके बाद हमने अपना पहला बैच शुरू किया. 29 छात्र-छात्राओं के पहले बैच को जुलाई में 3 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स पूरा करा दिया. अब उसके बाद 12 अगस्त से दूसरा बैच शुरू कर दिया है, जिसमें अभी 22 विद्यार्थी दाखिला ले चुके हैं. इस बैच में हमने कुल 35 सीटें रखी थीं. उन्होंने बताया कि 3 महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के लिए छात्र-छात्राओं के लिए 4000, रिसर्च स्कॉलर के लिए 5000 और अन्य लोगों के लिए भी 5000 रूपये का ही शुल्क निर्धारित किया गया है. इस सर्टिफिकेट कोर्स में कोई भी दाखिला ले सकता है.

देश में लिपि और पांडुलिपियों पर काम करने के लिए किसी कॉलेज में खोला गया पहला सेंटर है मिरांडा हाउस में
डॉ चंदन कुमार मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के समय में एनएमएम की स्थापना हुई. उस समय लिपियों और पांडुलिपियों पर थोड़ा सा काम शुरू हुआ था. लेकिन, फिर 2004 में सरकार बदलने के बाद एनएमएम को आईजीएनसीए के अधीन कर दिया गया और उसके बाद से इसका यह काम धीमा हो गया.

प्राचीन लिपियों और पांडुलिपियों को डिजिटाइजेशन करके प्रचलित देवनागरी लिपि में करने की कवायद

अब इस साल फिर से यह सेंटर शुरू करके एक बार फिर प्राचीन लिपियों और पांडुलिपियों को डिजिटाइजेशन करके उनके संरक्षण और उनको मौजूदा समय में प्रचलित देवनागरी लिपि और भाषा के रूप में परिवर्तित करके उनसे ग्रंथ तैयार करने और उनमें छुपे हुए ज्ञान विज्ञान पर अध्ययन करने का काम शुरू हुआ है. इस सेंटर को शुरू करने के लिए कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर बिजयलक्ष्मी नंदा और एनएमएम के निदेशक अनिर्बान दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

सेंटर में सप्ताह में 3 दिन चलती है ढाई ढाई घंटे की क्लास
डॉ चंदन कुमार ने बताया कि जो विद्यार्थी इस समय केंद्र में अध्ययन रखें उनकी सप्ताह में तीन दिन ढाई घंटे की क्लास चलती है. उसमें मंगलवार, बुधवार और शनिवार का दिन शामिल है. कक्षाओं का समय दोपहर 2:30 बजे से निर्धारित है.

लिपियों को ट्रांसक्रिप्ट करने की जरूरत क्यों पड़ी
डॉ चंदन कुमार ने बताया कि भारत में करीब एक करोड़ मनुस्क्रिप्ट्स या पांडुलिपियां हैं, जिनमें से सिर्फ अभी साढ़े तीन लाख का ही ट्रांसक्रिप्शन किया गया है या उन्हें भाषा में परिवर्तित किया गया है. इनके ट्रांसक्रिप्शन की जरूरत इसलिए है कि उन प्राचीन पांडुलिपियों में बहुत सारे ज्ञान विज्ञान की बातें लिखी हुई हैं. उनको आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ जोड़कर उस पर शोध करना और फिर उसको लोगों के लिए किस तरह उपयोग में ला सकते हैं इस पर काम करना है.

मनुस्क्रिप्ट फॉर्म को ट्रांसक्रिप्ट करने के बाद ही तथ्य निकल कर आएंगे सामने

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह से एक ग्रंथ है लवण भास्कर. वह मनुस्क्रिप्ट फॉर्म में है. लेकिन, आयुर्वेद का ग्रंथ है. उसके ट्रांसक्रिप्शन करने से पता चलेगा कि उसमें आयुर्वेद से संबंधित जो ज्ञान है कि नमक को पानी के साथ लेने से क्या लाभ होगा. नमक को मिठाई के साथ लेने से क्या होगा. नमक का इस्तेमाल किन-किन चीजों के साथ करने से क्या लाभ होगा या शरीर के लिए किस तरह से लाभदायक है या हानिकारक है. यह सारी चीज उसके ट्रांसक्रिप्ट करने के बाद ही निकल कर सामने आएंगी और लोगों के लिए उपयोगी साबित होंगी.

ये भी पढ़ें : ग्रेजुएट आउटकम्स पर करेंगे काम, नंबर वन कॉलेज का ताज छिनने पर मिरांडा हाउस की प्रिंसिपल को सुनिए -

कोर्स को करने के बाद भविष्य की संभावना
संग्रहालय, पुस्तकालय, अभिलेखागार, विश्वविद्यालय,शोध केंद्र, सांस्कृतिक संगठन और सरकारी एजेंसियां जैसे संस्थान जो विरासत संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित हैं. उनमें पांडुलिपि क्यूरेटर, पुरालेख विशेषज्ञ, सांस्कृतिक विरासत, विशेषज्ञ, संरक्षक, डिजिटल पांडुलिपि लाइब्रेरियन, पांडुलिपि शोधकर्ता, विरासत प्रलेखन अधिकारी, पांडुलिपि संरक्षण अधिकारी. पांडुलिपि सूचीकार, डिजिटल मानविकी विशेषज्ञ (पांडुलिपियों पर ध्यान देने के साथ), सांस्कृतिक संसाधन प्रबंधक, पांडुलिपि सामाजिक वैज्ञानिक, पांडुलिपि वैज्ञानिक, आदि जैसे पदों के लिए चयनित हो सकते हैं.

ये भी पढ़ें : दिल्ली यूनिवर्सिटी के 6 कॉलेज टॉप 10 में, JNU दूसरे और जामिया को मिला तीसरा स्थान -

नई दिल्ली: मौर्यकालीन, गुप्तकालीन और मुगलकालीन लिपियों में लिखे गए अभिलेखों और इतिहास के बारे में अक्सर हम लोग सुनते और पढ़ते रहते हैं लेकिन इन कणों से संबंधित लिपियां और पांडुलिपियों लाखों की संख्या में विरासत के रूप में मौजूद हैं. लेकिन अभी तक उनको उपयोग में नहीं लाया जा सका है और ना ही उनके ज्ञान विज्ञान को जमीन पर उतारा गया है. इसके पीछे कारण पहले जो भी रहे हो. लेकिन, मौजूदा समय में कारण एक ही है कि इन लिपियों के जानकार अब विलुप्त होते जा रहे हैं. इसलिए अब प्राचीन लिपियों के जानकारों की दूसरी पीढ़ी तैयार करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज ने बीड़ा उठाया है.

प्राचीन भारतीय लिपियों को पढ़ने लिखने के लिए मिरांडा हाउस में तैयार की जा रही अगली पीढ़ी (ETV BHARAT)

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अंतर्गत आने वाले नेशनल मिशन फॉर मैनूस्क्रिप्टस के साथ मिलकर केंद्र स्थापित

कॉलेज ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अंतर्गत आने वाले नेशनल मिशन फॉर मैनूस्क्रिप्टस के साथ मिलकर कॉलेज के अंदर एक ऐसा केंद्र स्थापित किया है जहां मौजूदा पीढ़ी को सिर्फ प्राचीन लिपियों ब्राह्मी, शारदा, उड़िया, नस्तालिक उर्दू, ग्रंथ, सिद्धान, देवनागरी, बक्शाली, गंधारा सहित अन्य कई लिपियों को पढ़ने और लिखने का काम सिखाया जा रहा है. जिससे इन लिपियों के जानकार लोगों की कमी को पूरा करके अगली पीढ़ी को तैयार किया जा सके. कोई भी इन लिपियों को सीखने के लिए दाखिला ले सकता है.

3 महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के लिए छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग शुल्क
केंद्र में कोर्स कोआर्डिनेटर का कार्यभार संभाल रहे सहायक प्रोफेसर चंदन कुमार मिश्रा ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना कॉलेज द्वारा अप्रैल महीने में की गई थी. उसके बाद हमने अपना पहला बैच शुरू किया. 29 छात्र-छात्राओं के पहले बैच को जुलाई में 3 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स पूरा करा दिया. अब उसके बाद 12 अगस्त से दूसरा बैच शुरू कर दिया है, जिसमें अभी 22 विद्यार्थी दाखिला ले चुके हैं. इस बैच में हमने कुल 35 सीटें रखी थीं. उन्होंने बताया कि 3 महीने के सर्टिफिकेट कोर्स के लिए छात्र-छात्राओं के लिए 4000, रिसर्च स्कॉलर के लिए 5000 और अन्य लोगों के लिए भी 5000 रूपये का ही शुल्क निर्धारित किया गया है. इस सर्टिफिकेट कोर्स में कोई भी दाखिला ले सकता है.

देश में लिपि और पांडुलिपियों पर काम करने के लिए किसी कॉलेज में खोला गया पहला सेंटर है मिरांडा हाउस में
डॉ चंदन कुमार मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2003 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के समय में एनएमएम की स्थापना हुई. उस समय लिपियों और पांडुलिपियों पर थोड़ा सा काम शुरू हुआ था. लेकिन, फिर 2004 में सरकार बदलने के बाद एनएमएम को आईजीएनसीए के अधीन कर दिया गया और उसके बाद से इसका यह काम धीमा हो गया.

प्राचीन लिपियों और पांडुलिपियों को डिजिटाइजेशन करके प्रचलित देवनागरी लिपि में करने की कवायद

अब इस साल फिर से यह सेंटर शुरू करके एक बार फिर प्राचीन लिपियों और पांडुलिपियों को डिजिटाइजेशन करके उनके संरक्षण और उनको मौजूदा समय में प्रचलित देवनागरी लिपि और भाषा के रूप में परिवर्तित करके उनसे ग्रंथ तैयार करने और उनमें छुपे हुए ज्ञान विज्ञान पर अध्ययन करने का काम शुरू हुआ है. इस सेंटर को शुरू करने के लिए कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर बिजयलक्ष्मी नंदा और एनएमएम के निदेशक अनिर्बान दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

सेंटर में सप्ताह में 3 दिन चलती है ढाई ढाई घंटे की क्लास
डॉ चंदन कुमार ने बताया कि जो विद्यार्थी इस समय केंद्र में अध्ययन रखें उनकी सप्ताह में तीन दिन ढाई घंटे की क्लास चलती है. उसमें मंगलवार, बुधवार और शनिवार का दिन शामिल है. कक्षाओं का समय दोपहर 2:30 बजे से निर्धारित है.

लिपियों को ट्रांसक्रिप्ट करने की जरूरत क्यों पड़ी
डॉ चंदन कुमार ने बताया कि भारत में करीब एक करोड़ मनुस्क्रिप्ट्स या पांडुलिपियां हैं, जिनमें से सिर्फ अभी साढ़े तीन लाख का ही ट्रांसक्रिप्शन किया गया है या उन्हें भाषा में परिवर्तित किया गया है. इनके ट्रांसक्रिप्शन की जरूरत इसलिए है कि उन प्राचीन पांडुलिपियों में बहुत सारे ज्ञान विज्ञान की बातें लिखी हुई हैं. उनको आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ जोड़कर उस पर शोध करना और फिर उसको लोगों के लिए किस तरह उपयोग में ला सकते हैं इस पर काम करना है.

मनुस्क्रिप्ट फॉर्म को ट्रांसक्रिप्ट करने के बाद ही तथ्य निकल कर आएंगे सामने

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह से एक ग्रंथ है लवण भास्कर. वह मनुस्क्रिप्ट फॉर्म में है. लेकिन, आयुर्वेद का ग्रंथ है. उसके ट्रांसक्रिप्शन करने से पता चलेगा कि उसमें आयुर्वेद से संबंधित जो ज्ञान है कि नमक को पानी के साथ लेने से क्या लाभ होगा. नमक को मिठाई के साथ लेने से क्या होगा. नमक का इस्तेमाल किन-किन चीजों के साथ करने से क्या लाभ होगा या शरीर के लिए किस तरह से लाभदायक है या हानिकारक है. यह सारी चीज उसके ट्रांसक्रिप्ट करने के बाद ही निकल कर सामने आएंगी और लोगों के लिए उपयोगी साबित होंगी.

ये भी पढ़ें : ग्रेजुएट आउटकम्स पर करेंगे काम, नंबर वन कॉलेज का ताज छिनने पर मिरांडा हाउस की प्रिंसिपल को सुनिए -

कोर्स को करने के बाद भविष्य की संभावना
संग्रहालय, पुस्तकालय, अभिलेखागार, विश्वविद्यालय,शोध केंद्र, सांस्कृतिक संगठन और सरकारी एजेंसियां जैसे संस्थान जो विरासत संरक्षण और अनुसंधान के लिए समर्पित हैं. उनमें पांडुलिपि क्यूरेटर, पुरालेख विशेषज्ञ, सांस्कृतिक विरासत, विशेषज्ञ, संरक्षक, डिजिटल पांडुलिपि लाइब्रेरियन, पांडुलिपि शोधकर्ता, विरासत प्रलेखन अधिकारी, पांडुलिपि संरक्षण अधिकारी. पांडुलिपि सूचीकार, डिजिटल मानविकी विशेषज्ञ (पांडुलिपियों पर ध्यान देने के साथ), सांस्कृतिक संसाधन प्रबंधक, पांडुलिपि सामाजिक वैज्ञानिक, पांडुलिपि वैज्ञानिक, आदि जैसे पदों के लिए चयनित हो सकते हैं.

ये भी पढ़ें : दिल्ली यूनिवर्सिटी के 6 कॉलेज टॉप 10 में, JNU दूसरे और जामिया को मिला तीसरा स्थान -

Last Updated : Aug 20, 2024, 11:40 AM IST
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