छिंदवाड़ा। फसलों को अगर कोई रोग या बीमारी लगती है, तो किसान सीधे कीटनाशक दुकानों से जाकर कीटनाशक या दूसरी दवा खरीद लाते हैं. जिससे कई बार नुकसान उठाना पड़ सकता है. छोटी सी तकनीक के जरिए बीमारी का पता लगा सकते हैं और उचित दवाओं का छिड़काव भी कर सकते हैं. जानिए क्या है देशी तकनीक.
फसल के पत्तों के दाग बता सकते हैं बीमारी
कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा के कीट रोग विशेषज्ञ डॉ भूपेंद्र ठाकरे ने बताया की जानकारी के अभाव में फसल की बीमारियों को जरा सी देसी तकनीक के जरिए बीमारी का पता लगा सकते हैं. डॉक्टर भूपेंद्र ठाकरे ने बताया कि किसी भी फसल के पत्ते पर अगर छोटे छोटे-छोटे दाग दिख रहे हैं और उसके आसपास सर्कल बना हुआ है, तो समझ लेना चाहिए कि यह यह फसल में कीट का आक्रमण हो रहा है. वहां पर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए. अगर पत्तों में सर्कल नहीं बनकर सिर्फ बारीक-बारीक रोए हैं, तो समझ लेना चाहिए कि यह फफूद नाशक की जरूरत है. इतने से अंतर से किसान अपनी फसलों में सही दवाओं का उपयोग कर सकते हैं.
गोमूत्र और घरेलू नुस्खों से फसल की हो सकती है कीटों से रक्षा
डॉ भूपेंद्र ठाकरे ने बताया कि जरूरी नहीं है कि बाजार से महंगे कीटनाशक खरीद कर ही फसल को कीटों से बचाया जा सके, बल्कि घरेलू नुस्खे भी ऐसे हैं, जिनके माध्यम से आसानी से फसलों की रक्षा की जा सकती है और प्राकृतिक खेती का लाभ भी ले सकते हैं. गोमूत्र इसके लिए रामबाण इलाज है. उन्होंने बताया कि इसके साथ ही घर में होने वाला मठा खेतों में लगे नीम के पत्ते और नमक से भी कीटनाशक बनाकर छिड़काव किया जा सकता है.
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फसलों में बीमारी की पहचान जरुरी वरना किसान होता है परेशान
दरअसल फसलों में किस बीमारी का प्रकोप है और उसमें कौनसे कीटनाशक का उपयोग करना है. इसकी जानकारी किसानों को कम होती है. इसके लिए सरकार ने स्थानीय स्तर पर कृषि अनुसंधान केंद्र और कृषि विज्ञान केंद्र में व्यवस्थाएं की है कि वह वहां पर जाकर फसलों में लगने वाली बीमारियों के लक्षण बता सकते हैं. उस हिसाब से बाजार से कीटनाशक लाकर उपयोग कर सकते हैं, लेकिन अधिकतर किसान जानकारी के अभाव में कृषि विज्ञान केंद्र अनुसंधान केंद्रों तक नहीं पहुंच पाते हैं. जिसकी वजह से उन्हें सही बीमारी का पता नहीं लगता और वे वजह महंगी कीटनाशकों का उपयोग करते हैं. जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान के साथ-साथ फसल की भी बर्बादी सहन करनी पड़ती है.