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रांची चिड़ियाघर प्रबंधन की नई पहल, अब लोगों को जू में रहने वाले जानवरों से जुड़ी मिलेगी विस्तृत जानकारी - Information about animals in zoo

Information about animals in zoo. झारखंड वन विभाग और चिड़ियाघर प्रबंधन ने एक नई पहल शुरू की है. जिसके तहत लोग अब चिड़ियाघर में रहने वाले जानवरों के संरक्षण और उससे संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकेंगे.

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चिड़ियाघर (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 2, 2024, 4:53 PM IST

रांची: आधुनिक युग के बच्चों को मोबाइल और डिजिटल इक्विपमेंट्स के बारे में पूरी जानकारी रहती हैं. लेकिन कई बच्चे प्रकृति में रहे रहे जीव जंतुओं के बारे में बहुत कम जानते हैं. इसलिए आज की पीढ़ी को प्रकृति के बारे में बताने के लिए सरकार की ओर से विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं. इसी के मद्देनजर झारखंड के वन विभाग और चिड़ियाघर प्रबंधन के द्वारा एक ऐसी प्रयास की गई है जिसके माध्यम से लोग विभिन्न जानवरों की विस्तृत जानकारी ले पाएंगे.

संवाददाता हितेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट (ETV BHARAT)

क्यूआर कोड स्कैन करने पर मिलेगी जानवरों की जानकारी

रांची के बिरसा मुंडा चिड़ियाघर में घूमने आने वाले बच्चों के लिए चिड़ियाघर प्रबंधन ने एक नई व्यवस्था की शुरुआत की है. विभाग के इस पहल से अब बच्चों को या चिड़ियाघर घूमने आए लोगों को किसी भी जानवरों के बारे में जानने के लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. जैसे ही वह किसी भी जानवर को देखने के लिए पिंजरे के पास पहुंचेंगे कि पिंजरे के सामने लगे एक बोर्ड में क्यूआर कोड लगा रहेगा. उस क्यूआर कोड को जैसे ही बच्चे मोबाइल से स्कैन करेंगे वैसे ही उस जानवर के बारे में विस्तार से पूरी जानकारी मोबाइल पर आ जाएगी.

बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में होगी यह व्यवस्था

इस व्यवस्था को लेकर रांची चिड़ियाघर प्रबंधन की तरफ से जू के डॉक्टर ओम प्रकाश साहू ने बताया कि आजकल बच्चे मोबाइल के प्रति ज्यादा आकर्षित रहते हैं. इसलिए मोबाइल के माध्यम से ही उन्हें प्रकृति में रह रहे जानवरों के बारे में बताने का यह प्रयास चिड़ियाघर प्रबंधन की तरफ से किया गया है. उन्होंने बताया कि पहले पिंजरे के बाहर फ्लैक्स बोर्ड लगे रहते थे, जिसमें जानवरों के बारे में जानकारी लिखी रहती थी, लेकिन बच्चे और चिड़ियाघर में घूमने के लिए आने वाले लोग उसे पढ़ने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं दिखाते थे. इसके अलावा फ्लैक्स बोर्ड के माध्यम से भी विस्तृत जानकारी पूरी नहीं हो पाती थी.

इसलिए क्यूआर कोड की व्यवस्था की गई है, ताकि एक स्कैन में किसी भी जानवर का इतिहास, उसका साइंटिफिक नेम, उसके लाइफ लाइन, मैच्योरिटी पीरियड इत्यादि के बारे में आसानी से जान सकें. यह व्यवस्था झारखंड में पहली बार रांची के बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में की गई है. झारखंड के किसी भी चिड़ियाघर में फिलहाल इस व्यवस्था के माध्यम से लोगों को जानकारी नहीं दी जा रही है.

जानवरों के संरक्षण में मिलेगी खास मदद: जू डॉक्टर

डॉ. ओम प्रकाश साहू ने बताया कि अगले महीने तक सभी पिंजरों के बाहर क्यूआर कोड लगा दिए जाएंगे ताकि चिड़ियाघर में घूमने आने वाले लोग और बच्चे जानवरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकेंगे और उनके बारे में उनकी रुचि बढ़ सके.
यदि बच्चे जानवरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानेंगे तो उनके संरक्षण पर भी वह विचार कर पाएंगे.

क्योंकि जानवरों के संरक्षण से ही वातावरण को स्वच्छ रखा जा सकता है. इसी सोच के साथ चिड़ियाघर प्रबंधन के लोगों ने इस व्यवस्था की शुरुआत की है. गौरतलब है कि बिरसा मुंडा चिड़िया घर प्रबंधन की यह सोच निश्चित रूप से जानवरों के प्रति बच्चों और युवाओं की रुचि को बढ़ाने में मदद करेगी. अब देखने वाली बात होगी कि कब तक यह व्यवस्था शुरू होती है और लोग इस व्यवस्था से जानवरों के प्रति अपनी रुझान को कितना बढ़ा पाते है.

ये भी पढ़ें: रांची में बगैर परमिट ऑटो का हो रहा परिचालन, ऑटो चालकों ने साझा की मजबूरी

ये भी पढ़ें: हाइवा ने टेंपो में मारी जोरदार टक्कर, एक की मौत, ग्रामीणों ने किया सड़क जाम

रांची: आधुनिक युग के बच्चों को मोबाइल और डिजिटल इक्विपमेंट्स के बारे में पूरी जानकारी रहती हैं. लेकिन कई बच्चे प्रकृति में रहे रहे जीव जंतुओं के बारे में बहुत कम जानते हैं. इसलिए आज की पीढ़ी को प्रकृति के बारे में बताने के लिए सरकार की ओर से विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं. इसी के मद्देनजर झारखंड के वन विभाग और चिड़ियाघर प्रबंधन के द्वारा एक ऐसी प्रयास की गई है जिसके माध्यम से लोग विभिन्न जानवरों की विस्तृत जानकारी ले पाएंगे.

संवाददाता हितेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट (ETV BHARAT)

क्यूआर कोड स्कैन करने पर मिलेगी जानवरों की जानकारी

रांची के बिरसा मुंडा चिड़ियाघर में घूमने आने वाले बच्चों के लिए चिड़ियाघर प्रबंधन ने एक नई व्यवस्था की शुरुआत की है. विभाग के इस पहल से अब बच्चों को या चिड़ियाघर घूमने आए लोगों को किसी भी जानवरों के बारे में जानने के लिए किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. जैसे ही वह किसी भी जानवर को देखने के लिए पिंजरे के पास पहुंचेंगे कि पिंजरे के सामने लगे एक बोर्ड में क्यूआर कोड लगा रहेगा. उस क्यूआर कोड को जैसे ही बच्चे मोबाइल से स्कैन करेंगे वैसे ही उस जानवर के बारे में विस्तार से पूरी जानकारी मोबाइल पर आ जाएगी.

बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में होगी यह व्यवस्था

इस व्यवस्था को लेकर रांची चिड़ियाघर प्रबंधन की तरफ से जू के डॉक्टर ओम प्रकाश साहू ने बताया कि आजकल बच्चे मोबाइल के प्रति ज्यादा आकर्षित रहते हैं. इसलिए मोबाइल के माध्यम से ही उन्हें प्रकृति में रह रहे जानवरों के बारे में बताने का यह प्रयास चिड़ियाघर प्रबंधन की तरफ से किया गया है. उन्होंने बताया कि पहले पिंजरे के बाहर फ्लैक्स बोर्ड लगे रहते थे, जिसमें जानवरों के बारे में जानकारी लिखी रहती थी, लेकिन बच्चे और चिड़ियाघर में घूमने के लिए आने वाले लोग उसे पढ़ने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं दिखाते थे. इसके अलावा फ्लैक्स बोर्ड के माध्यम से भी विस्तृत जानकारी पूरी नहीं हो पाती थी.

इसलिए क्यूआर कोड की व्यवस्था की गई है, ताकि एक स्कैन में किसी भी जानवर का इतिहास, उसका साइंटिफिक नेम, उसके लाइफ लाइन, मैच्योरिटी पीरियड इत्यादि के बारे में आसानी से जान सकें. यह व्यवस्था झारखंड में पहली बार रांची के बिरसा मुंडा जैविक उद्यान में की गई है. झारखंड के किसी भी चिड़ियाघर में फिलहाल इस व्यवस्था के माध्यम से लोगों को जानकारी नहीं दी जा रही है.

जानवरों के संरक्षण में मिलेगी खास मदद: जू डॉक्टर

डॉ. ओम प्रकाश साहू ने बताया कि अगले महीने तक सभी पिंजरों के बाहर क्यूआर कोड लगा दिए जाएंगे ताकि चिड़ियाघर में घूमने आने वाले लोग और बच्चे जानवरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त कर सकेंगे और उनके बारे में उनकी रुचि बढ़ सके.
यदि बच्चे जानवरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानेंगे तो उनके संरक्षण पर भी वह विचार कर पाएंगे.

क्योंकि जानवरों के संरक्षण से ही वातावरण को स्वच्छ रखा जा सकता है. इसी सोच के साथ चिड़ियाघर प्रबंधन के लोगों ने इस व्यवस्था की शुरुआत की है. गौरतलब है कि बिरसा मुंडा चिड़िया घर प्रबंधन की यह सोच निश्चित रूप से जानवरों के प्रति बच्चों और युवाओं की रुचि को बढ़ाने में मदद करेगी. अब देखने वाली बात होगी कि कब तक यह व्यवस्था शुरू होती है और लोग इस व्यवस्था से जानवरों के प्रति अपनी रुझान को कितना बढ़ा पाते है.

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