रोहतक: रोहतक की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में अपनी तरह के नए और अनोखे स्टार्टअप की शुरुआत हुई है. यह अनोखा स्टार्टअप बधिरों को समर्पित है. कैफेटेरिया की तर्ज पर फूड ट्रक स्टार्टअप-डैफेटेरिया शुरू हुआ है. खास बात यह है कि इस नए स्टार्टअप में 50 प्रतिशत कर्मचारी भी बधिर ही होंगे. यूनिवर्सिटी की एक पूर्व छात्रा ने होटल मैनेजमेंट संस्थान के दो छात्रों के साथ मिलकर इस स्टार्टअप की शुरुआत की है. यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. राजबीर सिंह ने इस स्टार्टअप का शुभारंभ किया.
कैसे मिली प्रेरणा: बधिर की श्रेणी में वे लोग आते हैं, जिनमें सुनने की शक्ति का आंशिक या पूर्ण रूप से अभाव हो. ऐसे लोग सांकेतिक भाषा का उपयोग करके संवाद करते हैं. सुनने में असमर्थ लोगों को अक्सर समाज में स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक अपनी पहुंच बनाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ऐसे ही लोगों को स्वतंत्र जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित का विचार रोहतक की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी की बिजनेस साइकोलॉजी की पूर्व छात्रा पदमजा को आया.
मिलेगा रोजगार का साधन: पदमजा की मां शरणदीप कौर हरियाणा मूक एवं बधिर निःशक्त कल्याण समिति पंचकूला की संरक्षक के तौर पर जुड़ी हुई थी. तब पदमजा मूक और बधिर लोगां के संपर्क में आई और उनकी परेशानियों के बारे में पता चला. पदमजा का कहना है कि मूक और बधिर लोगां का बाहरी दुनिया से ज्यादा संपर्क नहीं होता. ऐसे में विचार आया कि ऐसी जगह होनी चाहिए जहां पर वे समाज के साथ खुलकर जुड़ सकें. रोजगार का साधन भी उपलब्ध हो. इसलिए इस नए फूड ट्रक स्टार्टअप डैफेटेरिया की शुरुआत हुई. जिसमें यूनिवर्सिटी के ही होटल मैनेजमेंट संस्थान के 2 पूर्व छात्रों मनदीप व साहिल ने सहयोग दिया और इस प्रकार बधिर लोगों को समर्पित डैफेटेरिया शुरू हुआ. पदमजा ने कहा कि डैफेटेरिया बधिर लोगों को पहचान देता है.
यूनिवर्सिटी का मिलेगा सहयोग: महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो. राजबीर सिंह ने बताया कि 2 साल पहले यूनिवर्सिटी में मूक व बधिर लोगों के लिए विकलांगता अध्ययन केंद्र शुरूआत किया था. मकसद यही था कि इन लोगों को समाजीकरण हो और उन्हें सशक्त बनाया जाए. मूक और बधिर लोग बोल व सुन नहीं सकते. वे या तो क्लास में होते हैं या फिर हॉस्टल या फिर घर में ऐसे में पूर्व छात्र पदमजा के विचार को यूनिवर्सिटी के नवाचार केंद्र के जरिए सिरे चढ़ाया गया. उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में ग्रामीण पृष्ठभूमि से काफी संख्या में छात्र आते हैं और उन्हें यहां पर बेहतर भोजन की व्यवस्था नहीं मिल पाती. इसलिए डैफेटेरिया के जरिए बेहतर भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी. वीसी ने यह भी बताया कि यूनिवर्सिटी 3 साल तक पूर्व छात्रो के इस स्टॉर्टअप को यहां पर पूरा मौका देगी और जरूरत पड़ी तो उसके बाद आगे भी 2 साल सहयोग मिलेगा.
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