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'बिहार के मदरसों में गैर मुस्लिमों को बताया जा रहा काफिर', NCPCR के अध्यक्ष के पोस्ट ने खड़ा किया सवाल - Bihar madrasa book

Bihar Madrasa: बिहार के मदरसों में 'तालीम-ए-इस्लाम' नाम की पुस्तक में गैर-हिंदुओं को काफिर बताया गया है. ये पुस्तक बड़े पैमाने पर बिहार के मदरसों में बच्चों को पढ़ाई जा रही हैं. वहीं, इन मदरसों में हिंदू बच्चों के भी दाखिला लेने की खबर सामने आई है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इसकी कड़ी आलोचना की है.

बिहार मदरसा
बिहार मदरसा (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 20, 2024, 9:25 PM IST

बिहार मदरसा (ETV BHARAT)

पटना: बिहार में मदरसों को लेकर एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने गंभीर सवाल उठाया है. राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों में ‘कट्टरपंथी’ पाठ्यक्रम और ऐसे शिक्षण संस्थानों में हिंदू बच्चों के दाखिलों पर गंभीर चिंता जताई है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करके यूनिसेफ को भी कटघरे में खड़ा किया है.

कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप: प्रियांक कानूनगो ने मदरसों के लिए इस तरह का पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए यूनिसेफ के सहयोग पर सवाल उठाते हुए तुष्टिकरण की पराकाष्ठा करार दिया है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से यूनिसेफ के इस गतिविधि पर जांच की मांग कर दी है. कानूनगो ने दावा किया है कि मदरसों के पाठ्यक्रम में शामिल कई किताबें पाकिस्तान में छपवाई गई हैं और इनकी सामग्री पर शोध जारी है. उन्होंने कहा है कि मदरसा किसी भी तरह से बच्चों की बुनियादी शिक्षा की जगह नहीं है. बच्चों को नियमित स्कूलों में पढ़ना चाहिए और हिंदू बच्चों को तो मदरसों में होना ही नहीं चाहिए.

एससीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें ही बेहतर: प्रियांक कानूनगो ने मदरसा के पाठ्यक्रम पर कई सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि मदरसों में तालिम-उल इस्लाम व ऐसी ही अन्य किताबें पढ़ाई जा रहीं हैं. इन पुस्तकों में गैर-मुस्लिम को 'काफिर' बताया गया है. इसके अलावा मदरसों में हिंदू बच्चों को भी कथित तौर पर दाखिला दिया गया है. लेकिन ऐसे कितने बच्चे हैं, बिहार सरकार ने अब तक आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है. उन्होंने कहा है कि बच्चों के लिए एससीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें ही बेहतर हैं.

"जिस किताब तालिम-ए-इस्लाम की बात चल रही है इसके लेखक भारत के रहने वाले हैं. जहां तक लोग इसे पाकिस्तान में छपाई की बात कर रहे हैं. उन्हें इसे चेक करवाया है और इस पुस्तक की छपाई जामा मस्जिद दिल्ली में हुई है. कोई भी कुछ कहता है तो अधिकृत रूप से एनसीपीसीआर की ओर से इस संबंध में उनके पास कोई पत्र नहीं आया है. अगर ऐसा कोई पत्र आता है तो आगे वह एक्शन लेंगे. सभी आरोप बेनियाद है." -अब्दुस सलाम अंसारी, सचिव, बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड

'काफिर का मतलब लोग गलत समझ रहे': इस मामले पर पटना के कमला नेहरू नगर स्थित मदरसा हिफाजतुल इस्लाम के मौलवी शकील अहमद ने बताया कि वह लगभग 29 वर्षों से यहां बच्चों को दीन की शिक्षा दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि लोग काफिर के बारे में गलत समझ रहे हैं. इस्लाम में काफिर का मतलब होता है जो अल्लाह के आदेश को नहीं मानता है या जो अल्लाह को नहीं मानता है. अगर कोई मुस्लिम भी दिन में पांच वक्त नमाज नहीं करता है तो वह काफिर माना जाता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं की काफिर से नफरत किया जाए. दीन ए इस्लाम प्रेम और भाईचारा सीखना है.

काफिर से भी प्रेम सिखाया जाता है: मौलवी शकील अहमद ने बताया कि जो इस्लाम को नहीं मानने वाले हैं वह काफिर हैं और इस्लाम उनसे भी प्रेम करना सिखाता है. उन्होंने कहा कि नफ़रत उन लोगों से करनी होती है जो बदफील हैं, यानी इस्लाम को मानने वाले वह लोग जो समाज के बने सही रास्ते पर नहीं चलते हैं. उनसे नफरत किया जाता है. लोग इस्लाम को बेहतर तरीके से समझते नहीं है और विवादित टिप्पणी करते हैं. मदरसा में किसी प्रकार का कोई कट्टरपंथ की शिक्षा नहीं दी जाती बल्कि प्रेम भाईचारा सिखाया जाता है.

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बिहार मदरसा (ETV BHARAT)

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कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का आरोप: प्रियांक कानूनगो ने मदरसों के लिए इस तरह का पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए यूनिसेफ के सहयोग पर सवाल उठाते हुए तुष्टिकरण की पराकाष्ठा करार दिया है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से यूनिसेफ के इस गतिविधि पर जांच की मांग कर दी है. कानूनगो ने दावा किया है कि मदरसों के पाठ्यक्रम में शामिल कई किताबें पाकिस्तान में छपवाई गई हैं और इनकी सामग्री पर शोध जारी है. उन्होंने कहा है कि मदरसा किसी भी तरह से बच्चों की बुनियादी शिक्षा की जगह नहीं है. बच्चों को नियमित स्कूलों में पढ़ना चाहिए और हिंदू बच्चों को तो मदरसों में होना ही नहीं चाहिए.

एससीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें ही बेहतर: प्रियांक कानूनगो ने मदरसा के पाठ्यक्रम पर कई सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि मदरसों में तालिम-उल इस्लाम व ऐसी ही अन्य किताबें पढ़ाई जा रहीं हैं. इन पुस्तकों में गैर-मुस्लिम को 'काफिर' बताया गया है. इसके अलावा मदरसों में हिंदू बच्चों को भी कथित तौर पर दाखिला दिया गया है. लेकिन ऐसे कितने बच्चे हैं, बिहार सरकार ने अब तक आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है. उन्होंने कहा है कि बच्चों के लिए एससीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें ही बेहतर हैं.

"जिस किताब तालिम-ए-इस्लाम की बात चल रही है इसके लेखक भारत के रहने वाले हैं. जहां तक लोग इसे पाकिस्तान में छपाई की बात कर रहे हैं. उन्हें इसे चेक करवाया है और इस पुस्तक की छपाई जामा मस्जिद दिल्ली में हुई है. कोई भी कुछ कहता है तो अधिकृत रूप से एनसीपीसीआर की ओर से इस संबंध में उनके पास कोई पत्र नहीं आया है. अगर ऐसा कोई पत्र आता है तो आगे वह एक्शन लेंगे. सभी आरोप बेनियाद है." -अब्दुस सलाम अंसारी, सचिव, बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड

'काफिर का मतलब लोग गलत समझ रहे': इस मामले पर पटना के कमला नेहरू नगर स्थित मदरसा हिफाजतुल इस्लाम के मौलवी शकील अहमद ने बताया कि वह लगभग 29 वर्षों से यहां बच्चों को दीन की शिक्षा दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि लोग काफिर के बारे में गलत समझ रहे हैं. इस्लाम में काफिर का मतलब होता है जो अल्लाह के आदेश को नहीं मानता है या जो अल्लाह को नहीं मानता है. अगर कोई मुस्लिम भी दिन में पांच वक्त नमाज नहीं करता है तो वह काफिर माना जाता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं की काफिर से नफरत किया जाए. दीन ए इस्लाम प्रेम और भाईचारा सीखना है.

काफिर से भी प्रेम सिखाया जाता है: मौलवी शकील अहमद ने बताया कि जो इस्लाम को नहीं मानने वाले हैं वह काफिर हैं और इस्लाम उनसे भी प्रेम करना सिखाता है. उन्होंने कहा कि नफ़रत उन लोगों से करनी होती है जो बदफील हैं, यानी इस्लाम को मानने वाले वह लोग जो समाज के बने सही रास्ते पर नहीं चलते हैं. उनसे नफरत किया जाता है. लोग इस्लाम को बेहतर तरीके से समझते नहीं है और विवादित टिप्पणी करते हैं. मदरसा में किसी प्रकार का कोई कट्टरपंथ की शिक्षा नहीं दी जाती बल्कि प्रेम भाईचारा सिखाया जाता है.

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