पटनाः आज नवरात्रि का सातवां दिन है. इसे महासप्तमी भी कहा जाता है. आज मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. माता का स्वरूप अत्यंत भयानक होता है लेकिन ये अपने भक्तों को सदा शुभ फल देती हैं और अपने आशीर्वाद बनाए रखती है. मां अपने भक्तों के लिए दुष्टों का विनाश करती हैं. मां कालरात्रि की स्तुति मात्र से दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि भाग जाते हैं. इनके भक्त को कभी भी किसी बुरी शक्ति का भय नहीं होता है.
मां का स्वरूपः मां दुर्गा ने रक्त-बीज का वध करने के लिए कालरात्रि का रूप धारण किया था. मां का वर्ण श्याम है. इनकी चार भुजाएं हैं. मां के खुले बाल हैं, जो दुष्टों के लिए काल के समान दिखती हैं. मांता गदर्व (गदहा) पर सवार हैं. मां के भुजाओं में कटार और वज्र, खप्पर है. इस दिन मां के इस स्वरूप का ध्यान कर पूजा करना चाहिए.
पूजा मंत्रः
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात : हे मां, पूरे संसार में विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अंबे, आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है. मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं. हे मां, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान करें.
मां कालरात्रि का भोगः महासप्तमी को मां को गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए. गुड़ का हलवा, गुड़ की खीड़ और मालपुआ जरूर शामिल करें. मान्यता है कि माता को यह अतिप्रिय है और इसका भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सारे कष्ट, भय आदि दूर कर देती हैं.
पूजा का फलः इस दिन मां कालरात्रि की पूजा करने से सारे पापों से मुक्ति मिलती है. भक्तों के दुश्मनों का नाश होता है. मां की भक्ति के लिए ऊपर दिए हुए श्लोक को याद कर जप करना चाहिए. इसके अलावा ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः का जाप करना चाहिए.
मां की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली मां जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि मां तेरी जय॥
बिहार में यहां है मंदिरः बिहार के सारण जिले के मदसूदनपुर डुमरी महिसौथा-पकटोला रोड, सौरिया बुजुर्ग में स्थित है. माना जाता है कि बिहार का यह इकलौता मंदिर 500 साल से अधिक की है. यहां हर साल पूरे बिहार से लोग माथा टेकने के लिए आते हैं. नवरात्रि के मौके पर भक्तों की काफी भीड़ जुटती है.
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