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कामख्या से चलकर थावे पहुंची थीं मां भवानी, जानें इसके पीछे की वजह - Navaratri 2024

Thawe Bhavani in Gopalganj: देश की 52 शक्तिपीठों में से एक थावे मंदिर के पीछे एक प्राचीन कहानी है. यहां मां भवानी अपने भक्त रहषु के बुलावे पर कामख्या से चलकर यहां पहुंची थीं.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

Thawe Bhavani in Gopalganj
गोपालगंज में स्थापित मां थावे भवानी (ETV Bharat)

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिले में स्थापित सुप्रसिद्ध मां थावे भवानी की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. पौराणिक और एतिहासिक मान्यताओं को समेटे इसका इतिहास 16वीं सदी चेरो वंश के समय का बताया जाता है. हथुआ के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया था. तब से लेकर आज तक यह मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां उतर प्रदेश, नेपाल समेत विभिन्न जिलों के श्रद्धालु आकर मां की पुजा अर्चना करते हैं.

मां के मंदिर के पास है भक्त रहषु का मंदिर: दरअसल सिद्धपीठ थावे भवानी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब हजारों साल पहले देवी प्रकट हुई थी. वो पिंडी के रूप में मौजूद है और आज तक श्रद्धालुओं के द्वारा उनकी पूजा अर्चना की जाती है. साथ ही मां के मंदिर के पास ही देवी के सच्चे भक्त रहषु का भी मंदिर है. मान्यता है कि श्रद्धालुओं को देवी दर्शन के बाद भक्त रहषु के मंदिर में भी जाना होता है, नहीं तो देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है.

थावे भवानी की कहानी (ETV Bharat)

जंगल में रहता था मां का सच्चा भक्त रहषु: मंदिर के पुजारी संजय पांडेय के अनुसार, यहां भक्त रहषु की पुकार पर देवी कामाख्या से थावे पहुंची थीं. राजधानी पटना से करीब 180 किलोमीटर की दूरी पर गोपालगंज जिले के थावे में ये मंदिर स्थित है. मंदिर पर पहुंचने के लिए सड़क और रेल मार्ग है, जहां भक्त आसानी से पहुंच सकते है.

चेरो वंश के राजा मनन सेन से जुड़ा हैं इतिहास: मंदिर के पुजारी संजय पांडेय बताते हैं कि पूर्वजों के अनुसार, इस मंदिर का इतिहास भक्त रहषु और चेरो वंश के राजा मनन सेन से जुड़ा हुआ है. यहां काफी साल पहले चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था. इसी राज्य में मां का भक्त रहषु भी थावे के जंगल में रहता था. वह जंगल में उपजे खरपतवार को जमाकर उस पर बाघ के गले में सांप का रस्सी बनाकर उससे चावल निकालता था. जिससे अपने परिवार का भरण पोषण करता था.

Thawe Bhavani in Gopalganj
नवरात्रि में थावे भवानी की पूजा (ETV Bharat)

राजा ने रहषु को दरबार में बुलाया: पुजारी संजय पांडेय कहते हैं कि इस मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. एक बार यहां अकाल पड़ा, लोग खाने को तरसने लगे लेकिन रहषु चावल खरपतवार से निकाल कर लोगों को दे रहा था. जब यह बात राजा मनन सेन तक पहुंची तो उन्होंने रहषु को दरबार में बुलाया और चावल पैदा करने से संबंधित बात पूछी. रहषु ने बताया कि यह सब कुछ मां भवानी की कृपा से हो रहा है.

राजा के कहने पर भक्त रहषु ने मां को बुलाया: वहीं राजा ने कहा, मैं भी तो मां का भक्त हूं, तुम मां को बुलाओ, मैं मां को देखना चाहता हूं. भक्त रहषु ने कई बार राजा को यह बताया कि अगर मां यहां आई तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, पर राजा नहीं माना. मजबूर रहषु ने मां को पुकारा जिसके बाद मां अपने भक्त के बुलावे पर असम के कामख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थी.

Thawe Bhavani in Gopalganj
यहां प्रगट हुई थी मां (ETV Bharat)

कामख्या से चलकर थावे पहुंची थी मां भवानी: कहा जाता है कि मां कामख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिले में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं. जिसके बाद मां ने रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिए. इसके बाद ही राजा के सभी भवन गिर गए. वहीं राजा और भक्त रहषु को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से ही यहां देवी की पूजा हो रही है. अति प्राचीन दुर्गा मंदिर होने की वजह से यह भक्तों की श्रद्धा का बड़ा केंद्र माना जाता है.

1714 में थावे दुर्गा मंदिर की हुई थी स्थापना: एक अन्य मान्यता के अनुसार, हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने वर्ष 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की थी. जब वे चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से दसवीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित हथुआ वापस लौट रहे थे. इसी दौरान थावे जंगल में एक विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल कर आराम करने के समय उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं. स्वप्न में आये तथ्यों के अनुरूप राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर विजय हासिल की और कल्याणपुर, हुसेपुर, सेलारी, भेलारी, तुरकहा और भुरकाहा को अपने राज के अधीन कर लिया.

Thawe Bhavani in Gopalganj
थावे भवानी मंदिर में श्रद्धालु (ETV Bharat)

ऐसे मिली मां दुर्गा की मुर्ती: विजय हासिल करने के बाद उस वृक्ष के चार कदम उत्तर दिशा में राजा ने खुदाई कराई, जहां दस फुट नीचे वन दुर्गा की मुर्ती मिली और वहीं मंदिर की स्थापना की गई. प्रसिद्ध शक्तिपीठ थावे भवानी मंदिर में वैष्णव विधि से पूजा अर्चना की जाती है. यहां मां को नारियल, चुनरी, पेड़ा और कई प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. हालांकि यहां अन्य जगहों के जैसे मंदिर में नारियल की बलि नहीं दी जाती है. भक्त नारियल चढ़ा कर अपने घर लेकर जाते हैं.

यहां की निशा पूजा होती है खास: निशा पूजा के दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और पूजा के दौरान चढ़ाए गए अक्षत भी अपने आप में खास माने जाते हैं. ऐसी मान्यता है की इस अक्षत से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है, साथ ही उस घर में समृद्धि आती है. इस पूजा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस मौके पर मध्य रात्रि में आयोजित होने वाली माता की पूजा काफी खास मानी जाती है. इसे लेकर सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर परिसर में लगनी शुरू हो जाती है.

Thawe Bhavani in Gopalganj
थावे भवानी मंदिर में उमड़ी भीड़ (ETV Bharat)

मध्य रात्रि होता है मां का श्रृंगार: निशा पूजा के दिन मध्य रात्रि में ही धूम-धाम से माता का भव्य श्रृंगार किया जाता है. मंदिर के गर्भ गृह में पूजा के बाद रातभर मंदिर का द्वार श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है. मंदिर के मुख्य पुजारी के नेतृत्व में पूजा-अर्चना के बाद भक्तों के बीच प्रसाद का भी वितरण किया जाता है. विद्वान बताते हैं कि महानिशा काल में महागौरी के पूजन का विशेष महत्व है. इस तिथि को रात में ध्यान और पूजन करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है. महागौरी सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं. सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार हथुआ राज घराने की महारानी निशा पूजा के बाद हवन का कार्य शुरू करती है.

"यहां माता स्वयं प्रकट हुई थी, इसकी जांच के लिए खुदाई भी हुई, फिर भी इसका कोई पता नहीं चल सका. यहां निशा पूजा के दिन मध्य रात्रि में आयोजित होने वाली माता की पूजा काफी खास मानी जाती है. इसे लेकर सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर परिसर में लगनी शुरू हो जाती है."- संजय पांडेय, मुख्य पुजारी

क्या कहते हैं श्रद्धालु: इस संदर्भ में पूजा करने आए श्रद्धालु राहुल ने बताया कि मां थावे वाली भवानी को लेकर पूरे देशवासियों की बहुत बड़ी आस्था है. मां की महिमा यह है कि यहां जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी हर मन्नत पूरी होती है. दशहरा ही नहीं अन्य समयो में प्राय देखा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की मन्नत पूरी हुई है.

"अगर कोई गलती कर के मां के चरण में गिरता है तो मां उसे क्षमा प्रदान करती है. यहां हर तरह की मन्नतें पूरी हुई है, नौकरी, विवाह, केस मुकदमा जिसकी जिस तरह की मन्नत है वो मां पूरी करती है. अगर पवित्र मन से जो कोई मां से मांगता है मां उसकी हर कामना पूरी करती है." - राहुल कुमार, श्रद्धालु

पढ़ें-शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और 9 दिनों का महत्व - Navaratri 2024

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिले में स्थापित सुप्रसिद्ध मां थावे भवानी की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. पौराणिक और एतिहासिक मान्यताओं को समेटे इसका इतिहास 16वीं सदी चेरो वंश के समय का बताया जाता है. हथुआ के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया था. तब से लेकर आज तक यह मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां उतर प्रदेश, नेपाल समेत विभिन्न जिलों के श्रद्धालु आकर मां की पुजा अर्चना करते हैं.

मां के मंदिर के पास है भक्त रहषु का मंदिर: दरअसल सिद्धपीठ थावे भवानी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब हजारों साल पहले देवी प्रकट हुई थी. वो पिंडी के रूप में मौजूद है और आज तक श्रद्धालुओं के द्वारा उनकी पूजा अर्चना की जाती है. साथ ही मां के मंदिर के पास ही देवी के सच्चे भक्त रहषु का भी मंदिर है. मान्यता है कि श्रद्धालुओं को देवी दर्शन के बाद भक्त रहषु के मंदिर में भी जाना होता है, नहीं तो देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है.

थावे भवानी की कहानी (ETV Bharat)

जंगल में रहता था मां का सच्चा भक्त रहषु: मंदिर के पुजारी संजय पांडेय के अनुसार, यहां भक्त रहषु की पुकार पर देवी कामाख्या से थावे पहुंची थीं. राजधानी पटना से करीब 180 किलोमीटर की दूरी पर गोपालगंज जिले के थावे में ये मंदिर स्थित है. मंदिर पर पहुंचने के लिए सड़क और रेल मार्ग है, जहां भक्त आसानी से पहुंच सकते है.

चेरो वंश के राजा मनन सेन से जुड़ा हैं इतिहास: मंदिर के पुजारी संजय पांडेय बताते हैं कि पूर्वजों के अनुसार, इस मंदिर का इतिहास भक्त रहषु और चेरो वंश के राजा मनन सेन से जुड़ा हुआ है. यहां काफी साल पहले चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था. इसी राज्य में मां का भक्त रहषु भी थावे के जंगल में रहता था. वह जंगल में उपजे खरपतवार को जमाकर उस पर बाघ के गले में सांप का रस्सी बनाकर उससे चावल निकालता था. जिससे अपने परिवार का भरण पोषण करता था.

Thawe Bhavani in Gopalganj
नवरात्रि में थावे भवानी की पूजा (ETV Bharat)

राजा ने रहषु को दरबार में बुलाया: पुजारी संजय पांडेय कहते हैं कि इस मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. एक बार यहां अकाल पड़ा, लोग खाने को तरसने लगे लेकिन रहषु चावल खरपतवार से निकाल कर लोगों को दे रहा था. जब यह बात राजा मनन सेन तक पहुंची तो उन्होंने रहषु को दरबार में बुलाया और चावल पैदा करने से संबंधित बात पूछी. रहषु ने बताया कि यह सब कुछ मां भवानी की कृपा से हो रहा है.

राजा के कहने पर भक्त रहषु ने मां को बुलाया: वहीं राजा ने कहा, मैं भी तो मां का भक्त हूं, तुम मां को बुलाओ, मैं मां को देखना चाहता हूं. भक्त रहषु ने कई बार राजा को यह बताया कि अगर मां यहां आई तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, पर राजा नहीं माना. मजबूर रहषु ने मां को पुकारा जिसके बाद मां अपने भक्त के बुलावे पर असम के कामख्या स्थान से चलकर यहां पहुंची थी.

Thawe Bhavani in Gopalganj
यहां प्रगट हुई थी मां (ETV Bharat)

कामख्या से चलकर थावे पहुंची थी मां भवानी: कहा जाता है कि मां कामख्या से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटन देवी के नाम से जानी गई), आमी (छपरा जिले में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहुंची थीं. जिसके बाद मां ने रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दिए. इसके बाद ही राजा के सभी भवन गिर गए. वहीं राजा और भक्त रहषु को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से ही यहां देवी की पूजा हो रही है. अति प्राचीन दुर्गा मंदिर होने की वजह से यह भक्तों की श्रद्धा का बड़ा केंद्र माना जाता है.

1714 में थावे दुर्गा मंदिर की हुई थी स्थापना: एक अन्य मान्यता के अनुसार, हथुआ के राजा युवराज शाही बहादुर ने वर्ष 1714 में थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना की थी. जब वे चंपारण के जमींदार काबुल मोहम्मद बड़हरिया से दसवीं बार लड़ाई हारने के बाद फौज सहित हथुआ वापस लौट रहे थे. इसी दौरान थावे जंगल में एक विशाल वृक्ष के नीचे पड़ाव डाल कर आराम करने के समय उन्हें अचानक स्वप्न में मां दुर्गा दिखीं. स्वप्न में आये तथ्यों के अनुरूप राजा ने काबुल मोहम्मद बड़हरिया पर आक्रमण कर विजय हासिल की और कल्याणपुर, हुसेपुर, सेलारी, भेलारी, तुरकहा और भुरकाहा को अपने राज के अधीन कर लिया.

Thawe Bhavani in Gopalganj
थावे भवानी मंदिर में श्रद्धालु (ETV Bharat)

ऐसे मिली मां दुर्गा की मुर्ती: विजय हासिल करने के बाद उस वृक्ष के चार कदम उत्तर दिशा में राजा ने खुदाई कराई, जहां दस फुट नीचे वन दुर्गा की मुर्ती मिली और वहीं मंदिर की स्थापना की गई. प्रसिद्ध शक्तिपीठ थावे भवानी मंदिर में वैष्णव विधि से पूजा अर्चना की जाती है. यहां मां को नारियल, चुनरी, पेड़ा और कई प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. हालांकि यहां अन्य जगहों के जैसे मंदिर में नारियल की बलि नहीं दी जाती है. भक्त नारियल चढ़ा कर अपने घर लेकर जाते हैं.

यहां की निशा पूजा होती है खास: निशा पूजा के दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है और पूजा के दौरान चढ़ाए गए अक्षत भी अपने आप में खास माने जाते हैं. ऐसी मान्यता है की इस अक्षत से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है, साथ ही उस घर में समृद्धि आती है. इस पूजा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. इस मौके पर मध्य रात्रि में आयोजित होने वाली माता की पूजा काफी खास मानी जाती है. इसे लेकर सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर परिसर में लगनी शुरू हो जाती है.

Thawe Bhavani in Gopalganj
थावे भवानी मंदिर में उमड़ी भीड़ (ETV Bharat)

मध्य रात्रि होता है मां का श्रृंगार: निशा पूजा के दिन मध्य रात्रि में ही धूम-धाम से माता का भव्य श्रृंगार किया जाता है. मंदिर के गर्भ गृह में पूजा के बाद रातभर मंदिर का द्वार श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है. मंदिर के मुख्य पुजारी के नेतृत्व में पूजा-अर्चना के बाद भक्तों के बीच प्रसाद का भी वितरण किया जाता है. विद्वान बताते हैं कि महानिशा काल में महागौरी के पूजन का विशेष महत्व है. इस तिथि को रात में ध्यान और पूजन करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है. महागौरी सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं. सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार हथुआ राज घराने की महारानी निशा पूजा के बाद हवन का कार्य शुरू करती है.

"यहां माता स्वयं प्रकट हुई थी, इसकी जांच के लिए खुदाई भी हुई, फिर भी इसका कोई पता नहीं चल सका. यहां निशा पूजा के दिन मध्य रात्रि में आयोजित होने वाली माता की पूजा काफी खास मानी जाती है. इसे लेकर सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतार मंदिर परिसर में लगनी शुरू हो जाती है."- संजय पांडेय, मुख्य पुजारी

क्या कहते हैं श्रद्धालु: इस संदर्भ में पूजा करने आए श्रद्धालु राहुल ने बताया कि मां थावे वाली भवानी को लेकर पूरे देशवासियों की बहुत बड़ी आस्था है. मां की महिमा यह है कि यहां जो भी सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी हर मन्नत पूरी होती है. दशहरा ही नहीं अन्य समयो में प्राय देखा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की मन्नत पूरी हुई है.

"अगर कोई गलती कर के मां के चरण में गिरता है तो मां उसे क्षमा प्रदान करती है. यहां हर तरह की मन्नतें पूरी हुई है, नौकरी, विवाह, केस मुकदमा जिसकी जिस तरह की मन्नत है वो मां पूरी करती है. अगर पवित्र मन से जो कोई मां से मांगता है मां उसकी हर कामना पूरी करती है." - राहुल कुमार, श्रद्धालु

पढ़ें-शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त और 9 दिनों का महत्व - Navaratri 2024

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