भोपाल: महिला किसान दिवस पर प्रदेश के 30 जिलों की महिला किसान राजधानी भोपाल पहुंची हुई थीं. इस दौरान कई महिला किसानों ने अपनी यथास्थिति के बारे में बात की. उन्होंने अपनी परिस्थिति से सरकार और समाज को रू-ब-रू कराया. बालाघाट के परसवाड़ा के डोगरिया गांव की शिवकुमारी पंचतिलक का कहना है कि, दिन रात वह अपने पति के साथ खेती करती हैं. लेकिन फसल की आमदनी में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होती. दूसरी महिला किसान प्रमिला उइके कहती हैं कि हम मजदूर से ज्यादा कुछ नहीं हैं. भोपाल आई सभी महिलाओं को महिला किसान का नाम जरूर दिया गया है, लेकिन यहां करीब 80 फीसदी महिलाओं की एक ही मांग थी कि, अगर उन्हें महिला किसान कहा जाता है तो, उन्हें जमीन से लेकर पैदावार से होने वाली कमाई में बराबर की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
पति से हिस्सा मांगो तो पंचायत बैठ जाती है
शिवकुमारी पंचतिलक भोपाल में बुलाए गए उस किसान सम्मेलन का हिस्सा हैं, जिसमें प्रदेश भर की महिला किसानों को बुलाया गया है. वो यहां अपने खेत में होने वाले जैविक उत्पाद लेकर आई हैं. स्व सहायता समूह से मिली ट्रेनिंग के बाद शिवकुमारी ने अपने खेत में जैविक धान उगाया है. वो एक होनहार किसान हैं. तकनीक जानती हैं. उन्हें बाजार की समझ भी है. लेकिन उसका सवाल ये है कि, इस सबके बाद भी वो केवल कहने के लिए किसान हैं. उन्हें महिला किसान का दर्जा तो दे दिया गया है लेकिन अधिकार नहीं दिया गया.
शिवकुमारी कहती हैं, "खेत में मैं अपने पति से ज्यादा मेहनत करती हूं. जुताई को छोड़ दीजिए तो कौन सा काम है जो मैं नहीं कर सकती. बल्कि अब तो टैक्ट्रर भी महिलाएं चला रही हैं. लेकिन मैं खुद को किसान तब तक नहीं कह सकती जब तक मेरी अपनी जमीन नहीं होगी. उपज से होने वाला मुनाफे में मेरा अधिकार नहीं होगा. शिवकुमारी कहती है, मैं माता-पिता के यहां भी खेती-किसानी करती थी. लेकिन वहां भी मजदूर ही थी. यहां शादी के बाद अपने खेत में जुटी हूं तो यहां भी सारी खेती करने के बाद भी किसान नहीं बन पाई."
शिवकुमारी आगे कहती हैं, "किसान सम्मान निधि में मेरा नाम नहीं है. अगर मैं ये आवाज उठाऊं कि जमीन में आधा हिस्सा मेरा है तो गांव में पंचायत बैठ जाएगी और कहा जाएगा कि ये आधा हिस्सा मांग रही है. मैं यहां भोपाल इसलिए आई हूं कि जो बड़े लोग हैं वो सुने कि महिला को किसान कह देने भर से वो किसान नहीं बन जाएगी. उसकी स्थिति को समझना पड़ेगा और उनके लिए काम करना पड़ेगा."
'मेहनत हमारी पर मुनाफे पर हमारा अधिकार नहीं'
प्रमिला उइके के पास दो एकड़ जमीन है. जमीन में दिन रात वो मेहनत करती है लेकिन कहती हैं, जब मुनाफा होता है तो वो अपने पति से अपना हिस्सा नहीं मांग सकती. आठ घंटे खेत में काम करके पति पूरा मुनाफा अपने पास रखता है और पत्नी अगर अपना हक मांगे तो कह दिया जाता है कि दो टाइम की रोटी मिल रही है ना वही बहुत है. इस हिसाब से हम महिला किसान कहां हुईं. हम तो अपने खेतों में मजदूरी कर रहे हैं.
स्व सहायता समूह से जुड़कर जैविक खेती से बाजार तक की लिंक
इस सम्मेलन में आई महिलाएं महिला स्व सहायता समूह की बदौलत किसान दीदी बनी हैं. जिन्हें बाकायदा पहले जैविक खेती की ट्रेनिंग दी गई है. वो खेत में तैयार हुए उत्पाद को इसी समूह के जरिए बाजार तक पहुंचाती हैं. विमला कहती हैं, "ऐसे देखिए तो हम अपने खेत की उपज को उगाने से लेकर बाजार तक पहुंचाने में सारा काम कर रहे हैं. लेकिन हिस्सेदारी में हम कहीं नहीं है. वे कहती हैं, इस महिला किसान सम्मेलन में प्रदेश भर से आई महिलाओं में पांच प्रतिशत ऐसी महिलाएं होंगी जिनकी अपनी जमीन है. बाकी किसी का भी मालिकाना हक उसकी अपनी जमीन पर नहीं है."
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भोपाल में जुटी 30 से ज्यादा जिलों की महिला किसान
भोपाल में महिला किसान दिवस के मौके पर प्रदेश के 30 से ज्यादा जिलों की महिला किसान जैविक उत्पाद लेकर पहुंची थीं. यहां उन्होंने कृषि उत्पादों को बिक्री के लिए भी रखा. महिला किसान दिवस के मौके पर ये मेला महिलाओं को सशक्त करने के उद्देश्य से लगाया गया. कार्यक्रम का आयोजन महिला किसान अधिकार मंच रूरल एंड एग्रीकल्चर नेटवर्क मध्य प्रदेश स्टेट डेवलपमेंट इनिशिएटिव के सहयोग से किया गया.