जोधपुर. राजस्थान में आने वाले समय में बड़े क्षेत्रों का सर्वे कर यह बताया जा सकेगा कि वहां जल प्रबंधन कैसा हो सकता है ? खासकर कृषि जल प्रबंधन में यह कारगर साबित होगा. राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) इसके लिए स्वात प्रणाली का उपयोग कर हाइड्रोलॉजिकल माडलिंग पर काम कर रहा है. इसका पहला कार्य लूणी नदी के बेसिन में शुरू हुआ है, जहां सर्वे और अध्ययन का काम चल रहा है. इसे बढ़ावा देने के लिए एनआईएच कृषि एवं जल प्रबंधन क्षेत्र के शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण भी दे रहा है.
जोधपुर स्थित काजरी में इसको लेकर कार्यशाला चल रही है. काजरी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. प्रियब्रत सांतरा ने बताया कि वाटर शेड में यह तकनीक काम आती है. बारिश के बाद पानी कितना जमीन में जाता है और कितना बहता है, इसकी मॉडलिंग इसमें होती है. इसके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि क्षेत्र में कितना पानी कृषि व अन्य कार्यों के लिए उपलब्ध हो सकता है. मॉडलिंग की डाटा रिपोर्ट के आधार पर पानी के सही इस्तेमाल व जलसंरक्षण संरचनाओं के निर्माण लाभदायक होगा.
डेम, एनिकट बनाने में मिलेगी मदद : राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक मलखान सिंह जाटव ने बताया कि स्वात तकनीक से वाटर बजटिंग हो सकती है. वर्तमान में हम लूणी बेसिन में जल की कितनी उपलब्धता है, इसका अनुमान लगाने पर काम कर रहे हैं. अलग-अलग चरणों में इसे पूरा किया जाएगा. इस तकनीक में हर तरह के डाटा जुटाते हैं, जिनसे क्लाइमेंट चेंज होने के समय क्या स्थितियां बनेगी उसके बारे में भी पुर्वानुमान दिया जाता है. सभी तरह के डाटा के माध्यम से भविष्य में एनकिट, डेम किस क्षेत्र में बनाना उपयोगी रहेगा. इससे वहां जल संरक्षण कितना रहेगा और भूजल स्तर कितना बढ़ेगा, इसको ध्यान में रखते हुए निर्णय किया जा सकेगा.
क्या होता है स्वात टूल : स्वात (सॉयल एंड वाटर असेसमेंट टूल) के माध्यम से क्षेत्र में पानी के बहाव, ठहराव, मिट्टी की क्षमता का पहले सर्वे और अध्ययन किया जाता है. यह देखा जाता है कि उस क्षेत्र में जो पानी आ रहा है प्राकृतिक स्रोत से वह कहां जाता है ? या जमीन के ऊपर रुकता है. इन सब तथ्यों के डाटा तैयार करने के बाद रिपोर्ट तैयार कर प्राकृतिक जल के सरंक्षण के लिए के जल सरंचना की सिफारिश की जाती है, जिससे बड़े इलाके के लिए पेयजल और कृषि के लिए जल प्रबंधन किया जा सके.