गया: देश के वस्त्र उद्योगों में बिहार के गया के मानपुर पटवा टोली का नाम है. पटवा टोली को बिहार का मैनचेस्टर कहा जाता है. कभी यहां बिना बिजली वाले हैंडलूम यानी हाथों से वस्त्र बनाने की शुरुआत हुई थी. हैंडलूम से हुई शुरुआत आज व्यापक वस्त्र उद्योग के रूप में विस्तारित है.
बिहार का मैनचेस्टर है गया का पटवा टोली: गया का पटवा टोली बिहार का मैनचेस्टर है. यहां का वस्त्र उद्योग देश में प्रसिद्ध है. यहां के बने वस्त्र देश के दर्जन भर राज्यों में जाते है. पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा और दक्षिण पूर्व राज्यों में यहां निर्मित वस्त्रों की बिक्री होती है. प्रतिदिन करोड़ों का कारोबार होता है. गया के पटवा टोली में आज 11000 पावरलूम है, 1000 औद्योगिक इकाइयां, सैकड़ों हैंडलूम हैं. तकरीबन 35000 लोगों को पटवा टोली के वस्त्र उद्योग ने रोजगार दिया है.
इन वस्त्रों का होता है निर्माण: गया के पटवा टोली में व्यापक पैमाने पर गमछे, बेडशीट, धोती, आदिवासी साड़ी, पीतांबरी, गद्दे का कपड़ा, रजाई का खोल समेत अन्य वस्त्रों का निर्माण होता है. गया के पटवा टोली में दिन ही नहीं रात में भी खट-खट की आवाज गूंजती है. यहां दिन और रात दोनों समय वस्त्रों के निर्माण का काम चलता है. पटवा टोली में निर्मित वस्त्र दर्जन भर राज्यों में बिक्री होते हैं.
बांग्लादेश तक जाता है पटवा टोली का वस्त्र: पटवा टोली में निर्मित वस्त्र बांग्लादेश तक जाता है. पश्चिम बंगाल के माध्यम से बांग्लादेश तक यहां के निर्मित वस्त्र पहुंचते हैं. यहां काफी किफायती दामों में वस्त्रों की बिक्री होती है, जो बाजारों में ऊंचे मूल्य पर सेल होते हैं. गया के पटवा टोली में प्रतिदिन करोड़ों रुपए के वस्त्रों का कारोबार होता है.
बिहार का मैनचेस्टर को धागा मिल की जरूरत: पटवा टोली का वस्त्र उद्योग जिस तेजी से बढ़ा है, उस तेजी से यहां सरकारी सुविधा नहीं मिली है. हालांकि, बिजली के रूप में कुछ अनुदान सरकार से अब मिलने लगा है, लेकिन बिहार में जिस तरह से पटवा टोली का वस्त्र उद्योग विस्तारित हुआ है, उससे कहा जा सकता है, कि यहां एक धागा मिल यदि स्थापित हो जाता तो यहां के वस्त्र उद्योग में और चार चांद लग जाते.
इंजीनियर का बना हब: मानपुर के पटवा टोली में जाते ही खटखट की आवाज सुनाई देने लगती है. यह आवाज आम लोगों के लिए उबाऊ होती है, लेकिन पटवा टोली के बुनकर समाज के लोग इसके आदी हैं. अब उन्हें यह आवाज उबाऊ नहीं लगती, बल्कि इसी खटखट के कारण उनकी तरक्की हो रही है. खटखट की आवाज के बीच यहां के 500 से अधिक छात्र छात्राएं इंजीनियर बन गए. यहां के गोपाल पटवा बताते हैं कि खटखट की आवाज सफलता का राज है. इसे सफलता का राज कहा जा सकता है, क्योंकि इसके बीच ही यहां के बच्चों ने पढ़ाई की और सफल होकर इंजीनियर बने. आज यहां के छात्र-छात्राएं इंजीनियर बनकर देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहरा रहे हैं.
"आज यहां शिक्षा का अलख जग गया है. यहां अशिक्षित को खोजना मुश्किल है. यहां की एक लड़की भी अशिक्षित अब नहीं है. यहां के लोगों का मंत्र है, आधी रोटी खाएंगे बच्चों को पढ़ाएंगे. धागा मिल खुलने से न सिर्फ लोगों को रोजगार का अवसर मिलता, बल्कि पटवा टोली का वस्त्र उद्योग और भी चर्चित हो जाता. क्योंकि यहां से माल सस्ते में मिलना शुरू हो जाता और सूरत, लुधियाना, पानीपत की तरह पटवा टोली का उद्योग प्रसिद्ध हो जाता."- गोपाल पटवा, बुनकर समाज के नेता
कितना बदला पटवा टोली?: पहले यहां हैंडलूम जो कि बिना बिजली संचालित होता है, उसी से काम होता था. पहले सैकड़ों हैंडलूम ही थे. उसी से वस्त्र उद्योग की शुरुआत हुई थी. िहार के मैनचेस्टर के रूप में गया का पटवा टोली शुमार था. आज यहां का वस्त्र उद्योग काफी विस्तारित है और देश भर में प्रसिद्ध है. पहले हाथ से ही वस्त्र तैयार होते थे. अब इसका पूरी तरह से नवीनीकरण हो चुका है.
प्रतिदिन करोड़ों का कारोबार: एक दशक पहले 5000 पावरलूम हुआ करते थे. अभी 11000 पावर लूम, 1000 औद्योगिक इकाइयां, सैकड़ों हैंडलूम से वस्त्र निर्माण होता है. अब यहां आधुनिक मशीन भी आ रही है, जिससे ज्यादा वस्त्रो का निर्माण हो रहा है और खटखट के शोर से भी थोड़ी राहत मिलने लगी है. यहां प्रतिदिन करोड़ों का कारोबार होता है. कई ट्रक माल यहां से देश के राज्यों में निर्यात होते हैं.
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