करेली (विश्वजीत सिंह राजपूत): गुड़ को गरीबों की मिठाई कहा जाता है. गुड़ को पाचक माना जाता है. खाने के बाद गुड़ खाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है. ठंड में गुड़ शरीर को गर्मी प्रदान करता है. आयुर्वेद के अनुसार कफ रोगों के लिए गुड़ एक महत्वपूर्ण दवाई है. भारत में बच्चों के जन्म के बाद महिलाओं को गुड़ देने या गुड़ के लड्डू देने की परंपरा बहुत पुरानी है. भारत में कई स्थानों पर गुड़ बनता है, मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के करेली का गुड़ भी देश में अपनी खास पहचान रखता है. इसको यह पहचान कैसे मिली, आईए जानते हैं...
फिर चलन में आया गुड़
गुड़ एक ऐसी मिठाई है. जिसे पूरे देश में खाया जाता है. शक्कर के आने के बाद गुड़ का चलन कुछ कम जरूर हुआ था, लेकिन बीते कुछ दिनों में लोगों ने शक्कर से होने वाली परेशानियों और बीमारियों की वजह से एक बार फिर गुड़ को अपनी जीवन शैली में शामिल किया है. दुनिया में सबसे अधिक गुड़ भारत में बनाया जाता है. सभी स्थानों के गुड़ की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं. सभी स्थानों पर गुड़ बनाने की परंपराएं भी अलग-अलग हैं. इसलिए इनके स्वाद भी अलग-अलग हैं.
भारत में गुड़ के लिए मशहूर शहर
उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर, आंध्र प्रदेश का अमकापल्ली, महाराष्ट्र का कोल्हापुर पूरे भारत में गुड़ की खास पहचान के लिए जाने जाते हैं. इन्हीं नाम में एक नाम मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के करेली का भी शामिल है. करेली का गुड़ करेली के नाम से ही बेचा जाता है.
गोंड आदिवासियों ने शुरू किया था गुड़ बनाना
लंबे समय से गुड़ कारोबार से जुड़े ब्रजेश राजपूत बताते हैं कि "करेली में गुड़ बनाने की परंपरा का कोई लिखित इतिहास तो नहीं है, लेकिन करेली के आसपास गुड़ बनाने के लिए आसपास के जंगलों से गोंड आदिवासी आते थे. इनका बनाया गुड़ अपनी रंग रूप और स्वाद में देश के दूसरे स्थान से आए हुए गुड़ से अलग होता है. इसका रंग कोल्हापुर और मुजफ्फरनगर जैसे गुड़ जितना सफेद नहीं होता, क्योंकि इन दोनों ही शहरों में गुड़ व्यावसायिक तरीके से बनाया जाता है. इसलिए गुड़ के कलर को साफ करने के लिए कुछ रसायनों का इस्तेमाल भी किया जाता है.
करेली के आसपास गुड़ बनाने की परंपरा में रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसलिए इसका रंग बहुत सफेद या बहुत पीला नहीं होता. बल्कि यह थोड़े कॉफी के कलर जैसा होता है. इसके थोड़े गहरे रंग की वजह से इसका स्वाद भी अलग होता है. कोल्हापुर और मुजफ्फरनगर की तुलना में करेली गुड़ को बनाने वाले माहिर कलाकार इसे थोड़ा ज्यादा पकाते हैं. इसलिए यह ज्यादा दिनों तक स्टोर किया जाता है.
हवा में मीठी खुशबू
करेली के आसपास ऐसी हजारों कुल्हौर हैं, जिन पर गुड़ बनाया जाता है. जब गनने के रस को 3 घंटे तक पकाया जाता है तो इसे एक भीनी भीनी खुशबू हवा में घुल जाती है इसलिए करेली के आसपास से गुजरने वाली सड़कों पर इस भीनी भीनी खुशबू को महसूस किया जा सकता है. इसलिए लोग करेली के पास से गुजरने वाले हाईवे को मीठा हाईवे कहते हैं.
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करेली के गुड़ की बढ़ती मांग की वजह से करेली के आसपास एक दर्जन से ज्यादा बड़ी मंडियां है. जहां यह गुड़ बिकता है और लाखों किसान गन्ने की फसल उगाते हैं. केवल गुड़ के सीजन में नरसिंहपुर में स्थानीय लोगों के अलावा जिले और राज्य के बाहर से आने वाले लाखों लोगों को रोजगार मिलता है. सरकार को भी इस कारोबार में अच्छा खासा राजस्व टैक्स के माध्यम से इकट्ठा होता है.