बीकानेर. आज मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी है. आज ही के दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी को नृसिंह मंदिरों में मेला भरता है. बीकानेर के लखोटिया चौक स्थित नृसिंह मंदिर के साथ एक विशेष संयोग जुड़ा हुआ है. दरअसल इस मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति पाकिस्तान के मुल्तान से लाई हुई है. सालों से मंदिर स्थापना से ही यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है. हालांकि तब मुल्तान भारत का ही हिस्सा हुआ करता था.
मुल्तान में ही प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह : बीकानेर शहर के भीतरी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का इतिहास बहुत रोचक है. बताया जाता है कि जिस समय भगवान नृसिंह ने पृथ्वी पर अवतार लिया था, वह जगह मुल्तान में थी, जो अब पाकिस्तान में है. यह एक संयोग है कि यह मूर्ति मुल्तान से ही लाई हुई है और भगवान नृसिंह का अवतार भी मुल्तान में हुआ था. माना जाता है कि हिरण्यकश्यप का राज्य मुल्तान में ही था. हालांकि यहां के कुछ लोग कहते हैं कि बीकानेर की स्थापना से पहले ही यह मंदिर स्थापित है, जबकि कई लोगों का मानना है कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है.
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कागज-मिट्टी के मुखौटों से मंचन : मेला आयोजन से जुड़े चंद्रशेखर श्रीमाली कहते हैं कि भगवान नृसिंह के हाथों हिरण्यकश्यप के वध की लीलाओं का मंचन हर साल होता है और मेला भी भरता है. पिछले सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है. इसमें खास बात यह है कि भगवान नृसिंह और हिरण्यकश्यप के पात्र जिन मुखौटों को पहनते हैं, वे कागज और मिट्टी से बने हैं, जो पसीने को सोख लेता है. बताया जाता है कि सैकड़ों सालों से ये मुखौटे पहने जाते रहे हैं और आज भी इनका वहीं रूप है.
नागा साधुओं से जुड़ा इतिहास : स्थानीय निवासी विजय कुमार बताते हैं कि जिस स्थान पर आज मंदिर है, कभी वहां पानी की तलाई हुआ करती थी. यहां नागा साधु तपस्या करते थे उस वक्त मुल्तान से आए लोगों ने भगवान नृसिंह की मूर्ति नागा साधुओं को दी थी जिसके बाद भगवान नृसिंह के मंदिर की स्थापना यहां हुई.