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Special : बीकानेर के इस प्राचीन नृसिंह मंदिर का मुल्तान कनेक्शन, 300 साल पहले लाई गई थी प्रतिमा - Narasimha Chaturdashi 2024 - NARASIMHA CHATURDASHI 2024

Narasimha Chaturdashi 2024, नृसिंह चतुर्दशी को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था. इसी दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध करते हुए भक्त प्रह्लाद को बचाया था. बीकानेर में भी नृसिंह चतुर्दशी के दिन नृसिंह मंदिरों में मेले का आयोजन होता है. बीकानेर में भगवान नृसिंह के करीब पांच मंदिर हैं, जिनमें सबसे पुराने मंदिर में एक नृसिंह मंदिर खास है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां की मूर्ति पाकिस्तान के मुल्तान से लाई हुई है.

NARASIMHA CHATURDASHI 2024
बीकानेर का नृसिंह मंदिर (फोटो : ईटीवी भारत बीकानेर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 21, 2024, 11:12 AM IST

बीकानेर का नृसिंह मंदिर (वीडियो : ईटीवी भारत बीकानेर)

बीकानेर. आज मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी है. आज ही के दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी को नृसिंह मंदिरों में मेला भरता है. बीकानेर के लखोटिया चौक स्थित नृसिंह मंदिर के साथ एक विशेष संयोग जुड़ा हुआ है. दरअसल इस मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति पाकिस्तान के मुल्तान से लाई हुई है. सालों से मंदिर स्थापना से ही यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है. हालांकि तब मुल्तान भारत का ही हिस्सा हुआ करता था.

मुल्तान में ही प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह : बीकानेर शहर के भीतरी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का इतिहास बहुत रोचक है. बताया जाता है कि जिस समय भगवान नृसिंह ने पृथ्वी पर अवतार लिया था, वह जगह मुल्तान में थी, जो अब पाकिस्तान में है. यह एक संयोग है कि यह मूर्ति मुल्तान से ही लाई हुई है और भगवान नृसिंह का अवतार भी मुल्तान में हुआ था. माना जाता है कि हिरण्यकश्यप का राज्य मुल्तान में ही था. हालांकि यहां के कुछ लोग कहते हैं कि बीकानेर की स्थापना से पहले ही यह मंदिर स्थापित है, जबकि कई लोगों का मानना है कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है.

इसे भी पढ़ें- आज है वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी, नरसिंह जयंती के दिन बन रहा है रवि योग - Narasingha Jayanti 22 May

कागज-मिट्टी के मुखौटों से मंचन : मेला आयोजन से जुड़े चंद्रशेखर श्रीमाली कहते हैं कि भगवान नृसिंह के हाथों हिरण्यकश्यप के वध की लीलाओं का मंचन हर साल होता है और मेला भी भरता है. पिछले सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है. इसमें खास बात यह है कि भगवान नृसिंह और हिरण्यकश्यप के पात्र जिन मुखौटों को पहनते हैं, वे कागज और मिट्टी से बने हैं, जो पसीने को सोख लेता है. बताया जाता है कि सैकड़ों सालों से ये मुखौटे पहने जाते रहे हैं और आज भी इनका वहीं रूप है.

नागा साधुओं से जुड़ा इतिहास : स्थानीय निवासी विजय कुमार बताते हैं कि जिस स्थान पर आज मंदिर है, कभी वहां पानी की तलाई हुआ करती थी. यहां नागा साधु तपस्या करते थे उस वक्त मुल्तान से आए लोगों ने भगवान नृसिंह की मूर्ति नागा साधुओं को दी थी जिसके बाद भगवान नृसिंह के मंदिर की स्थापना यहां हुई.

बीकानेर का नृसिंह मंदिर (वीडियो : ईटीवी भारत बीकानेर)

बीकानेर. आज मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी है. आज ही के दिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. मंगलवार को नृसिंह चतुर्दशी को नृसिंह मंदिरों में मेला भरता है. बीकानेर के लखोटिया चौक स्थित नृसिंह मंदिर के साथ एक विशेष संयोग जुड़ा हुआ है. दरअसल इस मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति पाकिस्तान के मुल्तान से लाई हुई है. सालों से मंदिर स्थापना से ही यह मूर्ति मंदिर में स्थापित है. हालांकि तब मुल्तान भारत का ही हिस्सा हुआ करता था.

मुल्तान में ही प्रकट हुए थे भगवान नृसिंह : बीकानेर शहर के भीतरी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर का इतिहास बहुत रोचक है. बताया जाता है कि जिस समय भगवान नृसिंह ने पृथ्वी पर अवतार लिया था, वह जगह मुल्तान में थी, जो अब पाकिस्तान में है. यह एक संयोग है कि यह मूर्ति मुल्तान से ही लाई हुई है और भगवान नृसिंह का अवतार भी मुल्तान में हुआ था. माना जाता है कि हिरण्यकश्यप का राज्य मुल्तान में ही था. हालांकि यहां के कुछ लोग कहते हैं कि बीकानेर की स्थापना से पहले ही यह मंदिर स्थापित है, जबकि कई लोगों का मानना है कि यह मंदिर करीब 300 साल पुराना है.

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कागज-मिट्टी के मुखौटों से मंचन : मेला आयोजन से जुड़े चंद्रशेखर श्रीमाली कहते हैं कि भगवान नृसिंह के हाथों हिरण्यकश्यप के वध की लीलाओं का मंचन हर साल होता है और मेला भी भरता है. पिछले सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है. इसमें खास बात यह है कि भगवान नृसिंह और हिरण्यकश्यप के पात्र जिन मुखौटों को पहनते हैं, वे कागज और मिट्टी से बने हैं, जो पसीने को सोख लेता है. बताया जाता है कि सैकड़ों सालों से ये मुखौटे पहने जाते रहे हैं और आज भी इनका वहीं रूप है.

नागा साधुओं से जुड़ा इतिहास : स्थानीय निवासी विजय कुमार बताते हैं कि जिस स्थान पर आज मंदिर है, कभी वहां पानी की तलाई हुआ करती थी. यहां नागा साधु तपस्या करते थे उस वक्त मुल्तान से आए लोगों ने भगवान नृसिंह की मूर्ति नागा साधुओं को दी थी जिसके बाद भगवान नृसिंह के मंदिर की स्थापना यहां हुई.

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