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श्रीनगर के खोला गांव में धूमधाम से संपन्न हुआ नंदा पाती कौथिग, मायके पहुंचीं बहन-बेटियां, विदाई पर निकले आंसू - Srinagar Nanda Paati Kauthig

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Sep 12, 2024, 12:47 PM IST

Maa Nanda Paati Kauthig organized in Srinagar कुमाऊं के साथ ही गढ़वाल में भी नंदा महोत्सव की धूम है. गढ़वाल में नंदा पाती कौथिग के रूप में मां नंदा का महोत्सव मनाया जाता है. श्रीनगर गढ़वाल के पास खोला गांव में नंदा पाती कौथिग धूमधाम के साथ संपन्न हुआ. क्या है नंदा पाती कौथिग जानिए इस खबर में.

Maa Nanda Paati Kauthig
नंदा पाती कौथिग (Photo- ETV Bharat)

श्रीनगर: हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां नंदा उत्तराखंड की लोक संस्कृति में इस प्रकार रची-बसी हैं कि उनके बिना पर्वतीय लोक संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती. मां नंदा के प्रति लोगों का प्रेम यहां की लोक संस्कृति में स्पष्ट दिखाई देता है.

नंदा पाती कौथिग संपन्न (Video- ETV Bharat)

उत्तराखंड में भादो के महीने में नंदा के लोकोत्सवों की एक विशेष पहचान है. इस दौरान पूरा क्षेत्र नंदा के जयकारों से गूंजता हुआ, लोकोत्सव में डूब जाता है. उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में नंदाष्टमी मनाने की अलग-अलग परंपराएं हैं.

Maa Nanda Paati Kauthig
पाती के लिए पेड़ लाते युवा (Photo- ETV Bharat)

गढ़वाल और कुमाऊं में नंदाष्टमी को लेकर अलग अलग परंपराएं: कुमाऊं में जहां नंदाष्टमी के अवसर पर केले के पेड़ से मां नंदा की सुंदर प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती है, वहीं गढ़वाल क्षेत्र में लोग नंदाष्टमी के दिन 'पाती कौतिक या कौथिग' यानी मेला मनाते हैं. इस दिन जंगल से चीड़ का पेड़ लाया जाता है और मां नंदा को विदा करने के लिए कलेवा तैयार किया जाता है.

Maa Nanda Paati Kauthig
नंदा पाती के अवसर पर नाचते लोग (Photo- ETV Bharat)

श्रीनगर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित खोला गांव और उसके आसपास के क्षेत्र में लोग 'पाती कौथिग' को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. खोला गांव के पंडित चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्रामीण महिलाएं सुबह से ही मां नंदा की विदाई के लिए चौक में कलेवा तैयार करती हैं. कलेवा में रोट और प्रसाद के साथ-साथ सीजन के फल और सब्जियां शामिल होती हैं.

Maa Nanda Paati Kauthig
नंदा पाती कौथिक में बजते ढोल दमाऊं (Photo- ETV Bharat)

ऐसे मनाया जाता है नंदा पाती कौतिक: गांव के पुरुष और युवा गाजे-बाजे के साथ गांव से कुछ दूर जंगल से चीड़ का पेड़ लाते हैं. चीड़ का पेड़ लाने के बाद, ग्रामीण उसकी छाल उतारते हैं और उसे घी, दूध और मक्खन से नहलाते हैं. इसके बाद चीड़ के पेड़ पर कलेवा, प्रसाद, फल और सीजन की सब्जियां सजाई जाती हैं. फिर ग्रामीणों द्वारा एक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें गांव के पुरुष पेड़ पर चढ़कर कलेवा और फलों को तोड़ते हैं.

Maa Nanda Paati Kauthig
महिलाओं ने बनाया कलेवा (Photo- ETV Bharat)

इसके बाद कलेवा और प्रसाद को ग्रामीणों में वितरित किया जाता है. इसके साथ ही मां नंदा को पूरे विधि-विधान के साथ ससुराल के लिए विदा किया जाता है. नंदा को ससुराल भेजते समय ग्रामीणों की आंखों से आंसू छलक उठते हैं. नवमी के दिन पूरे विधि विधान के साथ चीड़ के पेड़ को उतारा जाता है और ग्रामीणों को प्रसाद वितरित कर पाती कौथिग का समापन होता है.

Maa Nanda Paati Kauthig
पाती कौथिग का सबको रहता है इंतजार (Photo- ETV Bharat)
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नंदा पाती कौथिग संपन्न (Video- ETV Bharat)

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Maa Nanda Paati Kauthig
पाती के लिए पेड़ लाते युवा (Photo- ETV Bharat)

गढ़वाल और कुमाऊं में नंदाष्टमी को लेकर अलग अलग परंपराएं: कुमाऊं में जहां नंदाष्टमी के अवसर पर केले के पेड़ से मां नंदा की सुंदर प्रतिमा बनाकर उसकी पूजा की जाती है, वहीं गढ़वाल क्षेत्र में लोग नंदाष्टमी के दिन 'पाती कौतिक या कौथिग' यानी मेला मनाते हैं. इस दिन जंगल से चीड़ का पेड़ लाया जाता है और मां नंदा को विदा करने के लिए कलेवा तैयार किया जाता है.

Maa Nanda Paati Kauthig
नंदा पाती के अवसर पर नाचते लोग (Photo- ETV Bharat)

श्रीनगर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित खोला गांव और उसके आसपास के क्षेत्र में लोग 'पाती कौथिग' को बड़े धूमधाम से मनाते हैं. खोला गांव के पंडित चंडी प्रसाद घिल्डियाल ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्रामीण महिलाएं सुबह से ही मां नंदा की विदाई के लिए चौक में कलेवा तैयार करती हैं. कलेवा में रोट और प्रसाद के साथ-साथ सीजन के फल और सब्जियां शामिल होती हैं.

Maa Nanda Paati Kauthig
नंदा पाती कौथिक में बजते ढोल दमाऊं (Photo- ETV Bharat)

ऐसे मनाया जाता है नंदा पाती कौतिक: गांव के पुरुष और युवा गाजे-बाजे के साथ गांव से कुछ दूर जंगल से चीड़ का पेड़ लाते हैं. चीड़ का पेड़ लाने के बाद, ग्रामीण उसकी छाल उतारते हैं और उसे घी, दूध और मक्खन से नहलाते हैं. इसके बाद चीड़ के पेड़ पर कलेवा, प्रसाद, फल और सीजन की सब्जियां सजाई जाती हैं. फिर ग्रामीणों द्वारा एक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें गांव के पुरुष पेड़ पर चढ़कर कलेवा और फलों को तोड़ते हैं.

Maa Nanda Paati Kauthig
महिलाओं ने बनाया कलेवा (Photo- ETV Bharat)

इसके बाद कलेवा और प्रसाद को ग्रामीणों में वितरित किया जाता है. इसके साथ ही मां नंदा को पूरे विधि-विधान के साथ ससुराल के लिए विदा किया जाता है. नंदा को ससुराल भेजते समय ग्रामीणों की आंखों से आंसू छलक उठते हैं. नवमी के दिन पूरे विधि विधान के साथ चीड़ के पेड़ को उतारा जाता है और ग्रामीणों को प्रसाद वितरित कर पाती कौथिग का समापन होता है.

Maa Nanda Paati Kauthig
पाती कौथिग का सबको रहता है इंतजार (Photo- ETV Bharat)
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