नालंदाः कहा जा रहा है कि बिहार में नौकरी की बहार है. सीएम नीतीश कुमार से लेकर पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दावा कर रहे हैं कि बिहार में लाखों-लाख की संख्या में शिक्षकों की बहाली हुई है. बीपीएससी के जरिये शिक्षकों की बहाली हो रही है, लेकिन क्या सिर्फ शिक्षकों की बहाली ही हो रही है या बच्चों की पढ़ाई भी हो रही है. मुख्यमंत्री के गृह जिले नालंदा से सरकारी स्कूल की जो तस्वीर आई है उससे तो ये साफ दिख रहा है कि इस जुगाड़ से तो बिहार नहीं पढ़ पाएगा.
2 कमरे 8 कक्षाएंः नालंदा जिले के इस्लामपुर प्रखंड के अंतर्गत एक सरकारी स्कूल है केवाली में. पहले ये प्राइमरी स्कूल था, अब इसे उत्क्रमित कर मध्य विद्यालय बना दिया गया है. अब स्कूल कितना बदहाल है, एक-एक कर जान-समझ लीजिए ! सबसे पहले बात करते हैं कमरों की. तो पूरे स्कूल में दो कमरे हैं और कक्षाएं कितनी हैं-आठ. इतना ही नहीं इन्हीं दो कमरों में से एक कमरे के आधे हिस्से में मिड डे मील के लिए किचन भी बना हुआ है. मतलब 250 छात्रों की पढ़ाई के लिए स्कूल में कुल जमा डेढ़ कमरे हैं.
बिजली-पंखे नदारद, बच्चे-शिक्षक बेहालः आपने तो जान ही लिया कि कुल डेढ़ कमरों में 8 कक्षाओं की पढ़ाई चल रही है. अब स्कूल में उपलब्ध दूसरी सुविधाओं के बारे में भी जान लीजिए. स्कूल में बिजली की व्यवस्था नहीं है, जाहिर है बिजली की व्यवस्था नहीं है तो पंखे कहां से आएंगे. मतलब स्कूल में अंधेरे का साम्राज्य है, गर्मी प्रचंड है और उमस जानलेवा. उस पर डेढ़ कमरे में ही आठों कक्षाओं के बच्चे ठूंसे पड़े हैं. उमस से बेहाल हैं, शिक्षक भी गर्मी से परेशान हैं. अब सोचिये ! कैसे और कितनी पढ़ाई होती होगी ये अंदाज लगाना कतई मुश्किल नहीं है.
ताड़ के पेड़ पर जुगाड़ वाला बोर्डः अंधेरा, गर्मी, उमस के बाद अब बात कर लेते हैं ब्लैक बोर्ड की. ऐसा नहीं है कि क्लास रूम में ब्लैक बोर्ड नहीं है, लेकिन वो अब ब्लैक से व्हाइट हो चले हैं. वहीं इन क्लास रूम में गर्मी और उमस के कारण जब शिक्षकों-छात्रों का सब्र जवाब दे देता है तो भाग कर स्कूल के बाहर आते हैं और जमीन पर दरी बिछाकर पढ़ाई शुरू करते हैं. स्कूल में शायद फंड नहीं होगा जिससे कि ऐसा बोर्ड खरीदा जा सके जिसे बाहर लगाकर भी पढ़ाया जा सके तो ऐसे में वाकई पढ़ाने की इच्छा रखनेवाली स्कूल की एक शिक्षिका ने इसका जुगाड़ ढूंढ़ लिया और ताड़ के पेड़ को ही ब्लैक बोर्ड बना दिया.
क्या कहते हैं स्कूल के शिक्षकः ? ताड़ के पेड़ को ब्लैक बोर्ड बनाकर पढ़ाई को लेकर स्कूल के शिक्षक निशांत प्रताप से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि हमलोगों के पास संसाधन की कमी है. ऐसे में हमलोगों का मकसद रहता है कि संसाधनों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, तो हो सकता है कि मैडम पढ़ा रही थी तो ब्लैक बोर्ड नहीं होने के कारण बच्चों को समझाने के लिए ताड़ के पेड़ ही लिखा होगा ताकि उसे बच्चे नोट कर सकें.
'बोर्ड नहीं था मैडम ताड़ के पेड़ पर पढ़ा रही थीं:' ताड़ के पेड़ को बोर्ड बनाकर पढ़ाने की बात पर शिक्षक ने तो सधा सा जवाब दिया लेकिन छात्रों ने खुल कर मैडम की मजबूरी समझा दी. छात्रों ने बताया कि जब क्लास में गर्मी लगने लगी तो हमलोगों ने मैडम से बाहर पढ़ाने का अनुरोध किया. मैडम जब बाहर पढ़ाने लगीं तो ताड़ के पेड़ पर ही लिखने लगीं. बच्चे कितने मजबूर हैं वो इस बात से समझा जा सकता है कि धूप आने से पहले एक पीरियड की पढ़ाई बाहर कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही धूप आती है उसी बिजली-पंखे विहीन क्लास रूम में पढ़ाई करनी पड़ती है.
"ताड़ के पेड़ को ब्लैक बोर्ड बनाकर पढ़ाई की खबर के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी और डीपीओ की टीम खुद यहां आई थी और पदाधिकारी यहां की स्थिति का निरीक्षण कर गये हैं. जिसके बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी ने तत्काल दो कमरे बनाने और फिर पुरानी बिल्डिंग की जगह नयी बिल्डिंग बनाने के निर्देश दिए हैं."-निशांत प्रताप, शिक्षक, उत्क्रमित मध्य विद्यालय, केवाली
'विवाद की वजह से अटका काम': वहीं इस मामले पर जिला शिक्षा पदाधिकारी राज कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि बच्चे ताड़ के पेड़ के नीचे न पढ़ें उसके लिए इंजीनियर से बात कर एस्टीमेट बनवा रहे हैं ताकि बिजली-पानी की समस्या दूर हो सके और सुचारू रूप से पढ़ाई हो सके.लेकिन हकीकत यह है कि दो गांवों के बीच स्कूल का विवाद है.
"दोनों गांव के लोग अपने ही गांव में स्कूल संचालित करवाना चाहते हैं. मामला सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के बाद निचली अदालत के जरिए जिला परिषद को सुलह करने के लिए दिया गया. जांच के बाद दुरुस्त करवाने की बात आई तो दूसरे दिन बगल के गांव वाले आकर बोलने लगे कि पहले हमारा स्कूल तैयार करें. इस स्कूल में 5 कमरे बनाने का फंड मिला था लेकिन इसी विवाद की वजह से अटका हुआ है.फिर भी हमारी कोशिश है कि दो गांवों के बीच विवाद में बच्चों का भविष्य न बिगड़े."-राज कुमार, जिला शिक्षा पदाधिकारी
ऐसे तो नहीं पढ़ेगा-बढ़ेगा बिहार !: ऐसा नहीं है कि शिक्षकों की बहाली के सरकारी दावे झूठे हैं. शिक्षकों की बहाली हो रही है, स्कूल में सुविधाएं उपलब्ध कराने के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन ये भी सच है कि अभी भी बड़ी संख्या में स्कूल बदहाली का दंश झेल रहे हैं. मुख्यमंत्री के गृह जिले के इस स्कूल की बदहाली इस सच्चाई को पूरी तरह बयां भी कर रही है. जब नालंदा में ये हाल है तो दूसरी जगहों की क्या स्थिति होगी, जरा सोचकर देखिये ! मिड डे मील बांटिये, पोशाक बांटिये, लेकिन स्कूल बिल्डिंग के साथ-साथ बिजली-पंखे भी तो जरूरी हैं.