हजारीबागः झारखंड, बिहार और बंगाल का पहला मल्टी टॉपिक एग्रीकल्चर फार्मिंग मॉडल हजारीबाग में तैयार किया जा रहा है. इस मॉडल में मत्स्य पालन के साथ-साथ मोती, मखाना और पानी फल सिंघाड़ा की खेती भी की जाएगी. हजारीबाग के मत्स्य विभाग में पिछले दिनों किसानों को मत्स्य पालन के साथ-साथ मोती, मखाना और पानी फल सिंघाड़ा की खेती की ट्रेनिंग दी गई थी.
प्रशिक्षण प्राप्त कर जीवन संवारने में जुटे किसान
अब प्रशिक्षण लेकर हजारीबाग के किसान अपना जीवन संवारने में जुटे हैं. किसान अब एक ही तालाब में मत्स्य पालन के साथ-साथ मखाना, पानी फल सिंघाड़ा और मोती की खेती कर रहे हैं. उम्मीद है कि इससे किसानों को पहले से अधिक मुनाफा होगा. मत्स्य पालन करने वाले कृषकों के जीवन में यह प्रक्रिया क्रांति लाएगी. यह व्यवसाय के लिए यह काफी लाभप्रद सिद्ध होगा.
मुंबई के वैज्ञानिक ने किसानों को दी थी ट्रेनिंग
मल्टी टॉपिक एग्रीकल्चर फार्मिंग मॉडल (IMTA) को लेकर नेशनल फिशरीज इंस्टीट्यूट एजुकेशन मुंबई के वैज्ञानिक डॉ. प्रेम कुमार ने हजारीबाग के किसानों को मत्स्य पालन की नवीनतम प्रणाली की जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि यह प्रणाली मत्स्य पालन करने वाले कृषकों के लिए काफी हितकारी साबित होने जा रहा है. व्यवसाय की दृष्टिकोण से यह प्रणाली काफी उन्नत साबित होगी. इस प्रणाली से कृषकों को अलग प्रक्रिया से मत्स्य पालन का प्रशिक्षण दिया गया था.
तालाब में मछली के साथ तीन उत्पादों की होगी खेती
वहीं विभागीय निदेशक एनएच त्रिवेदी ने कहा था कि यह प्रणाली मत्स्य पालकों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. मत्स्य पालक एक साथ कई उत्पादों की खेती कर पाएंगे. इस योजना से किसानों की आय दोगुनी होगी और आर्थिक रूप से किसान संपन्न बनेंगे.
योजना के तहत इस किसान के तालाब का चयन
पायलट प्रोजेक्ट के तहत कटकमसांडी के मत्स्य पालन राजेंद्र रविदास अपने तालाब में शुरू करने जा रहे हैं. उन्होंने विश्वास जताया इस उन्नत तरीके से तालाब में मत्स्य पालन के साथ-साथ मोती और पानी फल सिंघाड़ा की खेती करने से आय में वृद्धि होगी. इस बात को लेकर राजेंद्र रविदास ने खुशी जाहिर कि है पूरे जिले में उनके तालाब को इस योजना के लिए चुना गया है.
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