ETV Bharat / state

अजमेर में अंदरकोटियान बिरादरी के लोग पेश करते हैं कर्बला की जंग का मंजर, 800 सालों से निभा रहे हाईदौस खेलने की परंपरा - Muharram 2024

अजमेर में 800 सालों से मोहर्रम पर हाईदौस खेलने की परंपरा रही है. अंदरकोटियान बिरादरी के लोग आज भी हाईदौस खेलते हैं. मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस देश में केवल अजमेर और पाकिस्तान के हैदराबाद के खाता चौक में ही खेला जाता है. देखिए यह खास रिपोर्ट...

HIDEOUS GAME IN AJMER
अजमेर में हाईदौस खेल (PHOTO : ETV BHARAT)
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 16, 2024, 11:45 AM IST

अजमेर में हाईदौस खेल (VIDEO : ETV BHARAT)

अजमेर. मोहर्रम के अवसर पर अजमेर में 800 बरस पुरानी हाईदौस की परंपरा को अंदरकोटियान बिरादरी के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आए हैं. इस खास परम्परा का कनेक्शन पाकिस्तान से भी है. विभाजन के वक्त यहां से गए बिरादरी के लोग पाकिस्तान के हैदराबाद में खाता चौक में हाईदौस खेलते हैं. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की शहादत को याद को ताजा रखने के लिए बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते है.

मोहर्रम के अवसर पर कई जगह ताजिए निकाले जाते हैं, लेकिन अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के समीप 800 बरस से अंदरकोटियान बिरादरी के लोग मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस खेलने की परंपरा को जीवित रखें हुए है. दी सोसाइटी पंचायत अंदरकोटियान के सदर शमीर खान बताते हैं कि मोहर्रम की 9 तारीख यानी 16 जुलाई की रात को बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते हैं. अगले दिन जौहर की नमाज के बाद 17 जुलाई को अंदरकोट क्षेत्र में ढाई दिन के झोपड़े के समीप हाईदौस खेला जाता है. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की याद में हाईदौस खेला जाता है. 800 बरस पहले बुजुर्गों ने हाई दौस की परंपरा की शुरूआत की थी. पीढ़ी दर पीढ़ी बिरादरी के लोग विरासत के तौर पर परंपरा को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं.

परंपरा का पाकिस्तान से कनेक्शन : उन्होंने बताया कि मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस देश में केवल अजमेर और पाकिस्तान के हैदराबाद के खाता चौक में खेला जाता है. सदर शामीर खान बताते हैं कि हाईदौस खेलने की परंपरा अजमेर से शुरू हुई थी. विभाजन के बाद बिरादरी के कुछ लोग पाकिस्तान जाकर बस गए. वहां उन लोगों ने हाईदौस खेलने की परंपरा को कायम रखा हुआ है.

डोले शरीफ की निकलती है सवारी : हाईदौस खेलने के साथ ही डोले शरीफ की सवारी निकाली जाती है. मोहर्रम की 9 तारीख की रात को ढाई दिन के झोपड़े से डोले शरीफ की सवारी शुरू होती है जो सीढ़ियों से होकर हताई चौक तक सवारी को लाया जाता है. उसके बाद हाईदौस खेला जाता है. उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की माता बीबी फातमा का यह डोला शरीफ होता है. बिरादरी के लोगों की ढोला शरीफ में गहरी आस्था है. सवारी के दौरान बिरादरी के लोग ढोला शरीफ की जियारत करते हैं और मन्नते मांगते हैं. बिरादरी के लोगों का अकीदा ( विश्वास ) है कि ढोला शरीफ की जियारत से उनकी हर जायज मन्नत पूरी होती है.

सदर शामीर खान बताते हैं कि अगले दिन जोहर की नमाज के बाद परंपरागत रूप से तोप चलाई जाती है. उसके बाद डोला शरीफ की सवारी की शुरुआत होती है. हताई चौक से त्रिपोलिया गेट तक ढोले शरीफ की सवारी पहुचती है. यहां से हाईदौस खेलने की भी शुरुआत होती है. आगे अलम ( झंडे ) रहता है और पीछे हाईदौस खेलते हुए सैकड़ों बिरादरी के लोग चलते हैं. डोले शरीफ की सवारी आम्बा बावड़ी तक जाती है जहां डोले शरीफ को सैराब ( ठंडा ) किया जाता है.

इसे भी पढ़ें : मोहर्रम के अवसर पर अदा की गई मेहंदी की रस्म, मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस - Muharram 2024

कर्बला की जंग का मंजर करते है पेश : पदाधिकारी अकबर खान बताते हैं कि हाईदौस के दौरान बिरादरी के लोग कर्बला की जंग का मंजर पेश करते हैं. एक बड़ा घेरा बनाकर हाथों में तलवारें लहराते हुए बिरादरी के लोग चीखते चिल्लाते हुए हाईदौस खेलते हैं. इस दौरान कई लोग जख्मी भी हो जाते हैं, जिनका मौके पर ही उपचार किया जाता है. हाईदौस के दौरान मेडिकल टीम साथ ही चलती है. हाईदौस देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. कई गणमान्य नागरिक, राजनीति से जुड़े लोग और प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी भी मौजूद रहते हैं, जिनका बिरादरी की ओर से इस्तकबाल किया जाता है.

इसे भी पढ़ें : अलवर में बदलेगा सैकड़ों साल पुराना रिवाज, जगन्नाथ जी की यात्रा को देखते हुए नहीं निकलेगा ताजिया का मातमी जुलूस - Mourning procession of tazia

प्रशासन देता है तलवारे : पदाधिकारी अकबर खान बताते हैं कि प्रशासन की ओर से हाईदौस खेलने के लिए 100 तलवारें दी जाती है. बिरादरी के 100 लोगों को दो दिन के लिए तलवार का लाइसेंस दिया जाता है. हाईदौस सम्पन्न होने के बाद बिरादरी के लोग तलवारों को वापस जमा करवा देते हैं. आज़ादी के बाद से यह सिलसिला चला आ रहा है. आज़ादी से पहले अंग्रेज हुकूमत के वक़्त भी हाईदौस खेला जाता था. बाकायदा इसकी स्वीकृति अंग्रेज हुकूमत के अधिकारी दिया करते थे. अकबर बताते हैं कि सुरक्षा के लिए पुलिस का जब्ता तैनात रहता है, लेकिन हाईदौस के दौरान व्यवस्थाए बिरादरी के लोग ही संभालते हैं.

कन्वीनर रिजवान खान बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लिए मोहर्रम का विशेष महत्व है. बिरादरी के लोगों को बुजुर्गों से विरासत के तौर पर हाईदौस की परंपरा मिली है उसे निभाते चले आ रहे हैं. बिरादरी के लोग हजरत इमाम हुसैन और उनके साथ शहिद हुए 72 लोगों की शहादत को याद करते हुए कर्बला की जंग का मंजर पेश करते हैं. उन्होंने बताया कि हमारी तरह यह परंपरा अगली पीढ़ी तक पंहुचे और आगे भी परंपरा कायम रहे, इस प्रयास के साथ हाईदौस खेला जाता है और बिरादरी के लोग अपने बच्चों को भी हजरत इमाम हुसैन और उनके साथ शहिद हुए 72 लोगों की शहादत के बारे में बताते हैं.

अजमेर में हाईदौस खेल (VIDEO : ETV BHARAT)

अजमेर. मोहर्रम के अवसर पर अजमेर में 800 बरस पुरानी हाईदौस की परंपरा को अंदरकोटियान बिरादरी के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आए हैं. इस खास परम्परा का कनेक्शन पाकिस्तान से भी है. विभाजन के वक्त यहां से गए बिरादरी के लोग पाकिस्तान के हैदराबाद में खाता चौक में हाईदौस खेलते हैं. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की शहादत को याद को ताजा रखने के लिए बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते है.

मोहर्रम के अवसर पर कई जगह ताजिए निकाले जाते हैं, लेकिन अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह के समीप 800 बरस से अंदरकोटियान बिरादरी के लोग मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस खेलने की परंपरा को जीवित रखें हुए है. दी सोसाइटी पंचायत अंदरकोटियान के सदर शमीर खान बताते हैं कि मोहर्रम की 9 तारीख यानी 16 जुलाई की रात को बिरादरी के लोग हाईदौस खेलते हैं. अगले दिन जौहर की नमाज के बाद 17 जुलाई को अंदरकोट क्षेत्र में ढाई दिन के झोपड़े के समीप हाईदौस खेला जाता है. हजरत ईमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए 72 लोगों की याद में हाईदौस खेला जाता है. 800 बरस पहले बुजुर्गों ने हाई दौस की परंपरा की शुरूआत की थी. पीढ़ी दर पीढ़ी बिरादरी के लोग विरासत के तौर पर परंपरा को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं.

परंपरा का पाकिस्तान से कनेक्शन : उन्होंने बताया कि मोहर्रम के अवसर पर हाईदौस देश में केवल अजमेर और पाकिस्तान के हैदराबाद के खाता चौक में खेला जाता है. सदर शामीर खान बताते हैं कि हाईदौस खेलने की परंपरा अजमेर से शुरू हुई थी. विभाजन के बाद बिरादरी के कुछ लोग पाकिस्तान जाकर बस गए. वहां उन लोगों ने हाईदौस खेलने की परंपरा को कायम रखा हुआ है.

डोले शरीफ की निकलती है सवारी : हाईदौस खेलने के साथ ही डोले शरीफ की सवारी निकाली जाती है. मोहर्रम की 9 तारीख की रात को ढाई दिन के झोपड़े से डोले शरीफ की सवारी शुरू होती है जो सीढ़ियों से होकर हताई चौक तक सवारी को लाया जाता है. उसके बाद हाईदौस खेला जाता है. उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की माता बीबी फातमा का यह डोला शरीफ होता है. बिरादरी के लोगों की ढोला शरीफ में गहरी आस्था है. सवारी के दौरान बिरादरी के लोग ढोला शरीफ की जियारत करते हैं और मन्नते मांगते हैं. बिरादरी के लोगों का अकीदा ( विश्वास ) है कि ढोला शरीफ की जियारत से उनकी हर जायज मन्नत पूरी होती है.

सदर शामीर खान बताते हैं कि अगले दिन जोहर की नमाज के बाद परंपरागत रूप से तोप चलाई जाती है. उसके बाद डोला शरीफ की सवारी की शुरुआत होती है. हताई चौक से त्रिपोलिया गेट तक ढोले शरीफ की सवारी पहुचती है. यहां से हाईदौस खेलने की भी शुरुआत होती है. आगे अलम ( झंडे ) रहता है और पीछे हाईदौस खेलते हुए सैकड़ों बिरादरी के लोग चलते हैं. डोले शरीफ की सवारी आम्बा बावड़ी तक जाती है जहां डोले शरीफ को सैराब ( ठंडा ) किया जाता है.

इसे भी पढ़ें : मोहर्रम के अवसर पर अदा की गई मेहंदी की रस्म, मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलूस - Muharram 2024

कर्बला की जंग का मंजर करते है पेश : पदाधिकारी अकबर खान बताते हैं कि हाईदौस के दौरान बिरादरी के लोग कर्बला की जंग का मंजर पेश करते हैं. एक बड़ा घेरा बनाकर हाथों में तलवारें लहराते हुए बिरादरी के लोग चीखते चिल्लाते हुए हाईदौस खेलते हैं. इस दौरान कई लोग जख्मी भी हो जाते हैं, जिनका मौके पर ही उपचार किया जाता है. हाईदौस के दौरान मेडिकल टीम साथ ही चलती है. हाईदौस देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. कई गणमान्य नागरिक, राजनीति से जुड़े लोग और प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारी भी मौजूद रहते हैं, जिनका बिरादरी की ओर से इस्तकबाल किया जाता है.

इसे भी पढ़ें : अलवर में बदलेगा सैकड़ों साल पुराना रिवाज, जगन्नाथ जी की यात्रा को देखते हुए नहीं निकलेगा ताजिया का मातमी जुलूस - Mourning procession of tazia

प्रशासन देता है तलवारे : पदाधिकारी अकबर खान बताते हैं कि प्रशासन की ओर से हाईदौस खेलने के लिए 100 तलवारें दी जाती है. बिरादरी के 100 लोगों को दो दिन के लिए तलवार का लाइसेंस दिया जाता है. हाईदौस सम्पन्न होने के बाद बिरादरी के लोग तलवारों को वापस जमा करवा देते हैं. आज़ादी के बाद से यह सिलसिला चला आ रहा है. आज़ादी से पहले अंग्रेज हुकूमत के वक़्त भी हाईदौस खेला जाता था. बाकायदा इसकी स्वीकृति अंग्रेज हुकूमत के अधिकारी दिया करते थे. अकबर बताते हैं कि सुरक्षा के लिए पुलिस का जब्ता तैनात रहता है, लेकिन हाईदौस के दौरान व्यवस्थाए बिरादरी के लोग ही संभालते हैं.

कन्वीनर रिजवान खान बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय के लिए मोहर्रम का विशेष महत्व है. बिरादरी के लोगों को बुजुर्गों से विरासत के तौर पर हाईदौस की परंपरा मिली है उसे निभाते चले आ रहे हैं. बिरादरी के लोग हजरत इमाम हुसैन और उनके साथ शहिद हुए 72 लोगों की शहादत को याद करते हुए कर्बला की जंग का मंजर पेश करते हैं. उन्होंने बताया कि हमारी तरह यह परंपरा अगली पीढ़ी तक पंहुचे और आगे भी परंपरा कायम रहे, इस प्रयास के साथ हाईदौस खेला जाता है और बिरादरी के लोग अपने बच्चों को भी हजरत इमाम हुसैन और उनके साथ शहिद हुए 72 लोगों की शहादत के बारे में बताते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.