भोपाल। ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट जीतकर संसद में पहुंचे तो मध्यप्रदेश के कोटे की राज्यसभा सीट खाली हो गई. राज्यसभा में पहुंचने के लिए मध्यप्रदेश के कई दिग्गज नेता लगातार लामबंदी कर रहे थे. इन सबकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है. जातिगत समीकरण को देखते हुए माना जा रहा था कि इस सीट के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर विरोधी रहे केपी यादव को मौका मिलेगा. इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में शिकस्त खाने वाले पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी इसी उम्मीद में बैठे थे. ग्वालियर में खासी पकड़ रखने वाले जयभान सिंह पवैया भी लगातार दावेदारी ठोक रहे थे. लग भी रहा था कि इन तीनों में से किसी एक को मौका मिलेगा.
अब क्या करेंगे सिंधिया को हराने वाले केपी यादव
राज्यसभा सीट के लिए सबसे प्रबल दावेदार केपी यादव को माना जा रहा था. क्योंकि वह सिटिंग सांसद थे और सिंधिया की खातिर बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया. लोकसभा चुनाव 2024 में गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर प्रचार करने आए अमित शाह की बातों से भी ऐसा लगा था कि केपी यादव को बीजेपी राज्यसभा भेजेगी. क्योंकि टिकट कटने के बाद भी केपी यादव पार्टी के वफादार सिपाही के तौर पर चुनाव प्रचार में जुटे रहे. इसीलिए सिंधिया के प्रचार में गुना आए अमित शाह ने जनसभा में लोगों को भरोसा दिया था "केपी यादव की चिंता आप लोग न करें, उनकी चिंता हम करेंगे." गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर केपी यादव का जनाधार व यादव वोट बैंक को देखते हुए ये तय माना जा रहा था कि केपी यादव ने टिकट कटने के बाद भी बगावत नहीं की. इसलिए उनका राज्यसभा में जाना तय है.
नरोत्तम मिश्रा के हाथ भी लगी निराशा
सिंधिया से खाली हुई सीट पर नरोत्तम मिश्रा की नजरें भी लगी हुई थीं. दतिया से विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी नरोत्तम मिश्रा का कद कम नहीं हुआ. नरोत्तम को पार्टी ने दलबदल अभियान समिति का मुखिया बनाया और उन्होंने थोक के भाव में कांग्रेस नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया. नतीजा लोकसभा चुनाव की सभी 29 सीटें बीजेपी ने जीत ली. नरोत्तम मिश्रा का राजनीतिक कौशल और दिल्ली में आलाकमान तक तगड़ी पहुंच को देखते हुए लग रहा था कि उन्हें राज्यसभा में भेजा जा सकता है. लेकिन नरोत्तम मिश्रा को निराशा हाथ लगी. इसके अलावा ग्वालियर और इसके आसपास खासा जनाधार रखने वाले व हार्डकोर हिंदुत्व के पैरोकार जयभान सिंह पवैया भी राज्यसभा में पहुंचने के लिए सपने देख रहे थे. उन्हें भी खाली हाथ ही रहना पड़ा.
वादाखिलाफी के बाद अब क्या करेंगे केपी यादव
मध्यप्रदेश से खाली हुई एकमात्र राज्यसभा की सीट पर बाहरी को उम्मीदवार बनाने के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार मनीष दीक्षित कहते हैं "बीजेपी हमेशा चौंकाने वाले फैसले लेती है और फिर ऐसा ही हुआ. सिंधिया से खाली हुई राज्यसभा की सीट पर केपी यादव का पहला दावा था. क्योंकि अमित शाह ने उन्हें भरे मंच से आश्वासन दिया था. लेकिन केपी यादव को नजरअंदाज कर दिया गया. नरोत्तम मिश्रा के साथ ही और कुछ नेता भी दावेदारी भी बीजेपी आलाकमान ने नकार दी. ऐसा लग रहा है कि बीजेपी ये मानकर चल रही है कि मध्यप्रदेश में किसी भी नेता की नाराजगी से कोई असर नहीं पड़ने वाला. इसलिए राष्ट्रीय परिदृश्य को सामने रखकर बीजेपी ने फैसला लिया. जहां तक केपी यादव के आगे की राजनीति की बात है तो फिलहाल वह वैट एंड वॉच की स्थिति में रहेंगे. केपी यादव को प्रदेश संगठन में कोई पद देकर क्षतिपूर्ति की कोशिश हो सकती है. जहां तक नरोत्तम मिश्रा व जयभान सिंह पवैया के भविष्य का सवाल है तो ये भी प्रदेश संगठन में एडजस्ट किए जा सकते हैं."
ALSO READ: जॉर्ज कुरियन ही क्यों, मध्यप्रदेश के पहले क्रिश्चियन राज्यसभा मेंबर बनने की इनसाइड स्टोरी केरल से एमपी का टिकट! मोदी कैबिनेट के एकमात्र क्रिश्चियन मंत्री मध्यप्रदेश से जाएंगे राज्यसभा |
कौन हैं राज्यसभा सदस्य बनने वाले जॉर्ज कुरियन
गौरतलब है कि जॉर्ज कुरियन केरल में बीजेपी के काफी वरिष्ठ नेता हैं. केवल 19 साल की उम्र में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. कुरियन को मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया है मोदी सरकार में वह इकलौते ईसाई मंत्री हैं. वह मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री हैं. इससे पहले कुरियन ने बीजेपी संगठन में कई अहम पदों की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है. कुरियन के सांसद बनने के बाद केंद्र सरकार में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी और बढ़ जाएगी. बता दें कि अभी मोदी सरकार में मध्यप्रदेश से कुल 6 सांसद मंत्री पद पर हैं. अब ये संख्या 7 हो जाएगी. मध्य प्रदेश से कुल 11 राज्यसभा सांसद चुने जाते हैं.