भोपाल : मंगलवार रात से कई वॉट्सएप ग्रुप्स पर मध्यप्रदेश पुलिस नाम से एपीके यानी एंड्रॉयड एप डाउनलोड करने के मैसेज आ रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि एप इंस्टॉल करने पर किसी भी मामले में तत्काल मध्यप्रदेश पुलिस की मदद और अधिकारियों के नंबर मिल जाएंगे. लेकिन एप इंस्टॉल करने पर लोगों के मोबाइल हैक हो रहे हैं. यहां तक कि फेसबुक, इंस्टाग्राम और तमाम सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी हैकर्स के पास पहुंच जा रही है. इतना ही नहीं एप इंस्टॉल करने वाले व्यक्ति के बैंक अकाउंट तक खाली हो जा रहे हैं.
क्या एप से मोबाइल हैक हो सकता है?
इसका जवाब है हां, गूगल एप्स की सिक्योरिटी पॉलिसी के मुताबिक किसी भी अनजाने सोर्स से एपीके (apk) यानी एंड्रॉयड एप इंस्टॉल करना खतरनाक हो सकता है. ऐसे एप्स आपके मोबाइल के कई कंट्रोल हैकर्स के हाथ में दे सकते हैं. हैकर्स और साइबर अपराधी ऐसे एप्स के जरिए आपके मोबाइल के ओटीपी तक रीड कर सकते हैं. ऐसे में वे आपके बैंक और क्रेडिट कार्ड की जानकारी चुराकर ओटीपी के जरिए आपका अकाउंट खाली कर सकते हैं और आपको पता भी नहीं चलेगा. इसके साथ ही ये एप्स आपके मोबाइल फोन के कैमरे और गैलरी तक का एक्सेस प्राप्त कर आपकी निजी तस्वीरें और वीडियो भी चुरा सकते हैं.
साइबर सेल ने दी सतर्क रहने की सलाह
वॉट्सएप ग्रुप्स पर मध्यप्रदेश पुलिस नाम से वायरल हो रही एंड्रायड एप के संबंध में जब ईटीवी भारत ने साइबर सेल की टेक्नीकल टीम के प्रभारी सब इंस्पेक्टर हेमंत पाठक से बात की तो उन्होंने कहा, '' इन दिनों इस तरह के फ्रॉड की हजारों घटनाएं रोज सामने आ रही हैं. अनोन सोर्स की एंड्रॉयड एप्स में यूजर को भ्रमित करने के लिए कोई भी नाम दिया जा सकता है. लेकिन उसके अंदर क्या प्रोगामिंग की गई है और वो आपके मोबाइल को किस तरह से नुकसान पहुंचा सकती हैं ये प्रोग्रामिंग पर निर्भर करता है. एमपी पुलिस के नाम से एप वायरल हो रही है ये हमने भी सुना है. साइबर अपराधी रिमोट लोकेशन पर बैठकर हजारों किलोमीटर दूर बैठकर ये फ्रॉड कर रहे हैं. लोगों को सलाह दी जाती है कि वे अपने मोबाइल फोन पर किसी भी अननोन सोर्स से एंड्रायड या आईओएस एप्लीकेशन डाउनलोड न करें और ना ही किसी भी अनजाने लिंक पर क्लिक करें.''
ब्रांड के नाम से भी हो रहे फर्जीवाड़े
साइबर सेल से प्राप्त जानकारी के अनुसार साइबर ठग इन दिनों जानेमाने ब्रांड के नाम से लोगों को लेटेस्ट ऑफर और डिस्काउंट जैसे मैसेज इनबॉक्स में भेज रहे हैं. इन मैसेजों की भाषा उस ब्रांड से इतनी मिलती जुलती होती है कि लोग अक्सर इनके झांसे में आ जाते हैं और इनमें दिए लिंक्स पर क्लिक कर या तो ठगी का शिकार हो जाते हैं या फिर साइबर ठगों को अपने मोबाइल का एक्सेस दे बैठते हैं.
क्यों जल्द पकड़ में नहीं आते साइबर अपराधी?
साइबर सेल के मुताबिक ज्यादातर मामलों में साइबर अपराधी रिमोट लोकेशन और मल्टीपल आईपी ए़़ड्रेस का इस्तेमाल कर साइबर अपराध करते हैं. ऐसे में इन्हें आसानी से ढूंढ़ पाना संभव नहीं होता है. कई साइबर अपराध तो पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में बैठकर भारत में किए जाते हैं. यही वजह है कि साइबर क्राइम से बचना और इस विषय में जागरुक रहना ही फिलहाल बचाव का एकमात्र तरीका है. साइबर सेल प्रभारी सविता सिंह और टेक टीम प्रभारी सब इंस्पेक्टर हेमंत पाठक ने बताया कि जल्द ही साइबर सेल द्वारा अवेयरनेस प्रोग्राम भी शुरू किया जाएगा, जिससे रील्स के माध्यम से लोगों और खासतौर पर युवाओं को साइबर क्राइम से बचने के तरीके बताए जा सकें.