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गुना में कई गुना बड़ी जीत 'महाराज' के लिए क्यों जरूरी, क्या 2019 की हार को भुना पायेंगे सिंधिया - SCINDIA VS Rao Yadavendra Singh

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jun 3, 2024, 3:38 PM IST

बीजेपी में आने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह पहला अहम चुनाव है. 2020 में 22 विधायकों के साथ बीजेपी में आए सिंधिया को राज्यसभा का तोहफा पार्टी ने हाथोंहाथ दिया, लेकिन ये चुनाव नतीजा बताएगा कि बीजेपी में उनका भविष्य क्या होगा.

GUNA CONSTITUENCY FINAL RESULT
गुना लोकसभा सीट सिंधिया और राव यादवेंद्र में सीधी टक्कर (ETV Bharat)

Guna Election Results 2024 Live: अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के अंतिम चरण के मतदान हो चुके हैं और अब इंतजार नतीजों का है. सबकी निगाहें इस समय ऐसी सीटों पर टिकी हैं. जहां कई वीआईपी चुनाव मैदान में हैं. ऐसी ही सीट है मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट, जहां से केंद्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया बीजेपी के प्रत्याशी हैं. मतदान हो चुका है, किस्मत ईवीएम में कैद है, लेकिन चुनाव बड़ा है खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए. क्योंकि इसके नतीजे सिंधिया का बीजेपी में भविष्य तय करेंगे.

सिंधिया के लिए महत्वपूर्ण है गुना की जीत

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि,'ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपने लोकसभा क्षेत्र गुना से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप सिंधिया 2019 का चुनाव हार गए थे. यह सिंधिया परिवार के पुरुषों में पहली हार थी, उनके लिए, इसलिए उसी लोकसभा क्षेत्र से दोबारा चुनाव जीतना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.'

हाथोंहाथ सिंधिया को मिला राज्यसभा का तोहफा

देव श्रीमाली का कहना है कि 'हारने के बावजूद बीजेपी के नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भरोसा जताया और उन्हें बीजेपी में लेकर आये. हालांकि इसका फायदा भी मिला कि मध्य प्रदेश में सिंधिया की बदौलत कांग्रेस की सरकार गिराई जा सकी, लेकिन पार्टी ने इसके बाद उन्हें जिस ऊंचाई पर पहुंचाया. हाथोहाथ उन्हें लेकर पहले राज्यसभा सदस्य बनाया. इसके बाद केंद्र सरकार में मंत्री पद दिया डायरेक्ट कैबिनेट मंत्री बना दिया.'

SCINDIA VS YADAVENDRA WHO IS WINNER
गुना शिवपुरी बीजेपी प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया (ETV Bharat)

बीजेपी ने दिया सिंधिया को बढ़ावा, अब साबित करने की उनकी बारी

एमपी के सारे बड़े नेताओं को पीछे खींचा गया. जिसके पीछे का कारण सिंधिया को आगे बढ़ाना माना जाता है. अब पार्टी ने तो उन्हें आगे बढ़ा दिया है, लेकिन अब सिंधिया को ये साबित करना है कि वे कितने अच्छे मतों से चुनाव जीतकर जाते हैं. इससे साबित कर सकेंगे कि उनकी जनता में कितनी पकड़ है और जिस उम्मीद से बीजेपी उन्हें अपने साथ लेकर गई है, इसलिए उनके जीवन के लिए भी यह महत्वपूर्ण चुनाव है.

दल बदलने से कांग्रेस को चंबल नहीं पड़ा खास फर्क

चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस को सिंधिया के जाने से 2023 के विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ा है. चुनाव से पहले 2022 में भी कांग्रेस के पास ग्वालियर चम्बल अंचल में 18 सीटें थीं और बीजेपी के पास 16 सीटें थी. जबकि 2023 के चुनाव के बाद कांग्रेस के पास 16 और बीजेपी के पास 18 सीटें हैं. हालांकि अब रामनिवास रावत के बीजेपी में आने से यहां 19 सीटें बीजेपी के पास और कांग्रेस के पास अभी भी 15 सीट हैं.

2018 के चुनाव में दिखा था सिंधिया असर

2018 के विधानसभा चुनाव में माना जाता था कि उस चुनाव में सिंधिया की अहम भूमिका थी. जिसकी वजह से उस चुनाव में 34 में से 26 सीटें कांग्रेस के पास आयी थीं. उस दौरान माना जा रहा था कि सिंधिया कांग्रेस के सीएम चेहरा थे, लेकिन बाद के हालात सबके सामने हैं. लगभग डेढ़ साल बाद सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और उनके समर्थक 22 कांग्रेसी विधायक उनके साथ बीजेपी में चले गये, लेकिन उपचुनाव में ज्यादा असर उनका दिखायी नहीं दिया था.

बड़ी जीत से भुनाना चाहते हैं सिंधिया 2019 की हार

अब अगर गुना लोकसभा की बात करें तो सिंधिया ने इस बार अपने आपको चुनाव में पूरी तरह झोंक दिया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना शिवपुरी की जनता को भी पूरा समय दिया. इसके पीछे मंशा साफ है कि सिंधिया ये साबित करना चाहते हैं कि गुना शिवपुरी अशोकनगर में उनके पास बड़ा जनाधार है. वे एक बड़ी जीत के साथ 2019 की हार को भुनाना चाहते हैं.

यहां पढ़ें...

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क्या जानता ने किया सिंधिया को स्वीकार

क्या गुना शिवपुरी की जनता ने सिंधिया के दल बदलने के फैसले को स्वीकार कर लिया है? तो राजनीति विशेषज्ञ मानते हैं कि गुना शिवपुरी अशोकनगर में दलगत राजनीति नहीं है. यहां सिंधिया राजवंश ही एकमात्र पार्टी रही है. अगर 1952 से आज तक के चुनाव देखे जायें तो चाहे राजमाता विजयाराजे सिंधिया रहीं हों, माधवराव सिंधिया रहे हों या उनके समर्थित प्रत्याशी या 2019 का चुनाव छोड़ दें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद यहां से चुनाव जीतते आए हैं. कहा जाता है कि जय विलास पैलेस का एक दरवाजा बीजेपी और दूसरा कांग्रेस में खुलता था. इसलिए वहां कार्यकर्ता या पदाधिकारी स्तर पर भी यह महसूस ही नहीं होता था कि कौन किस पार्टी का है. क्योंकि सब सिंधिया के लिए काम करते थे. ऐसे इस बात को मानने में कोई गुरेज नहीं की सिंधिया का वर्चस्व गुना लोकसभा क्षेत्र की जानता पर अभी भी बना हुआ है, लेकिन चार जून के नतीजे ही स्पष्ट रूप से इस संशय को दूर कर पायेंगे.

Guna Election Results 2024 Live: अठारहवीं लोकसभा के चुनाव के अंतिम चरण के मतदान हो चुके हैं और अब इंतजार नतीजों का है. सबकी निगाहें इस समय ऐसी सीटों पर टिकी हैं. जहां कई वीआईपी चुनाव मैदान में हैं. ऐसी ही सीट है मध्य प्रदेश की गुना लोकसभा सीट, जहां से केंद्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया बीजेपी के प्रत्याशी हैं. मतदान हो चुका है, किस्मत ईवीएम में कैद है, लेकिन चुनाव बड़ा है खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए. क्योंकि इसके नतीजे सिंधिया का बीजेपी में भविष्य तय करेंगे.

सिंधिया के लिए महत्वपूर्ण है गुना की जीत

वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि,'ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अपने लोकसभा क्षेत्र गुना से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप सिंधिया 2019 का चुनाव हार गए थे. यह सिंधिया परिवार के पुरुषों में पहली हार थी, उनके लिए, इसलिए उसी लोकसभा क्षेत्र से दोबारा चुनाव जीतना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.'

हाथोंहाथ सिंधिया को मिला राज्यसभा का तोहफा

देव श्रीमाली का कहना है कि 'हारने के बावजूद बीजेपी के नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भरोसा जताया और उन्हें बीजेपी में लेकर आये. हालांकि इसका फायदा भी मिला कि मध्य प्रदेश में सिंधिया की बदौलत कांग्रेस की सरकार गिराई जा सकी, लेकिन पार्टी ने इसके बाद उन्हें जिस ऊंचाई पर पहुंचाया. हाथोहाथ उन्हें लेकर पहले राज्यसभा सदस्य बनाया. इसके बाद केंद्र सरकार में मंत्री पद दिया डायरेक्ट कैबिनेट मंत्री बना दिया.'

SCINDIA VS YADAVENDRA WHO IS WINNER
गुना शिवपुरी बीजेपी प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया (ETV Bharat)

बीजेपी ने दिया सिंधिया को बढ़ावा, अब साबित करने की उनकी बारी

एमपी के सारे बड़े नेताओं को पीछे खींचा गया. जिसके पीछे का कारण सिंधिया को आगे बढ़ाना माना जाता है. अब पार्टी ने तो उन्हें आगे बढ़ा दिया है, लेकिन अब सिंधिया को ये साबित करना है कि वे कितने अच्छे मतों से चुनाव जीतकर जाते हैं. इससे साबित कर सकेंगे कि उनकी जनता में कितनी पकड़ है और जिस उम्मीद से बीजेपी उन्हें अपने साथ लेकर गई है, इसलिए उनके जीवन के लिए भी यह महत्वपूर्ण चुनाव है.

दल बदलने से कांग्रेस को चंबल नहीं पड़ा खास फर्क

चुनाव की दृष्टि से कांग्रेस को सिंधिया के जाने से 2023 के विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा अंतर नहीं पड़ा है. चुनाव से पहले 2022 में भी कांग्रेस के पास ग्वालियर चम्बल अंचल में 18 सीटें थीं और बीजेपी के पास 16 सीटें थी. जबकि 2023 के चुनाव के बाद कांग्रेस के पास 16 और बीजेपी के पास 18 सीटें हैं. हालांकि अब रामनिवास रावत के बीजेपी में आने से यहां 19 सीटें बीजेपी के पास और कांग्रेस के पास अभी भी 15 सीट हैं.

2018 के चुनाव में दिखा था सिंधिया असर

2018 के विधानसभा चुनाव में माना जाता था कि उस चुनाव में सिंधिया की अहम भूमिका थी. जिसकी वजह से उस चुनाव में 34 में से 26 सीटें कांग्रेस के पास आयी थीं. उस दौरान माना जा रहा था कि सिंधिया कांग्रेस के सीएम चेहरा थे, लेकिन बाद के हालात सबके सामने हैं. लगभग डेढ़ साल बाद सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और उनके समर्थक 22 कांग्रेसी विधायक उनके साथ बीजेपी में चले गये, लेकिन उपचुनाव में ज्यादा असर उनका दिखायी नहीं दिया था.

बड़ी जीत से भुनाना चाहते हैं सिंधिया 2019 की हार

अब अगर गुना लोकसभा की बात करें तो सिंधिया ने इस बार अपने आपको चुनाव में पूरी तरह झोंक दिया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना शिवपुरी की जनता को भी पूरा समय दिया. इसके पीछे मंशा साफ है कि सिंधिया ये साबित करना चाहते हैं कि गुना शिवपुरी अशोकनगर में उनके पास बड़ा जनाधार है. वे एक बड़ी जीत के साथ 2019 की हार को भुनाना चाहते हैं.

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क्या जानता ने किया सिंधिया को स्वीकार

क्या गुना शिवपुरी की जनता ने सिंधिया के दल बदलने के फैसले को स्वीकार कर लिया है? तो राजनीति विशेषज्ञ मानते हैं कि गुना शिवपुरी अशोकनगर में दलगत राजनीति नहीं है. यहां सिंधिया राजवंश ही एकमात्र पार्टी रही है. अगर 1952 से आज तक के चुनाव देखे जायें तो चाहे राजमाता विजयाराजे सिंधिया रहीं हों, माधवराव सिंधिया रहे हों या उनके समर्थित प्रत्याशी या 2019 का चुनाव छोड़ दें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद यहां से चुनाव जीतते आए हैं. कहा जाता है कि जय विलास पैलेस का एक दरवाजा बीजेपी और दूसरा कांग्रेस में खुलता था. इसलिए वहां कार्यकर्ता या पदाधिकारी स्तर पर भी यह महसूस ही नहीं होता था कि कौन किस पार्टी का है. क्योंकि सब सिंधिया के लिए काम करते थे. ऐसे इस बात को मानने में कोई गुरेज नहीं की सिंधिया का वर्चस्व गुना लोकसभा क्षेत्र की जानता पर अभी भी बना हुआ है, लेकिन चार जून के नतीजे ही स्पष्ट रूप से इस संशय को दूर कर पायेंगे.

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