जबलपुर। चिकित्सकीय लापरवाही के मामले में पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर खारिज करने की मांग को लेकर डॉक्टर ने हाईकोर्ट की शरण ली. याचिका में जिला न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने की मांग की गई. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने पाया कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करते समय डॉक्टर्स की विशेषज्ञ समिति से रिपोर्ट प्राप्त नहीं की. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए एकलपीठ ने डॉक्टर के खिलाफ दर्ज एफआईआर तथा जिला न्यायालय में लंबित प्रकरण को खारिज करने के आदेश जारी किए.
पथरी के इलाज में लापरवाहीपूर्वक इंजेक्शन लगाने का आरोप
कटनी निवासी डॉ.राजेश बत्रा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया कि पुलिस ने विनय हलधर की शिकायत पर उसके खिलाफ चिकित्सकीय लापरवाही बरतने की धारा 338 के तहत प्रकरण दर्ज किया था. विनय का आरोप है कि वह पेटदर्द होने के कारण उपचार के लिए धर्मलोक अस्पताल आया था. मेडिकल परीक्षण के बाद डॉक्टर ने उसे पथरी बताई थी. पथरी के ऑपरेशन के दौरान उसे दाहिने पैर में कथित रूप से लापरवाहीपूर्वक इंजेक्शन लगाया गया था. विनय जब डिस्चार्ज होकर घर वापस लौट तो उसके पैर ने काम करना बंद कर दिया.
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मरीज का उपचार के दौरान पैर काटना पड़ा था
विनय वापस धर्मलोक अस्पताल में भर्ती हुआ. यहां से उसे नागपुर रेफर कर दिया गया. नागपुर से वापस लौटने के बाद पुनः दो दिन के वह धर्मलोक अस्पताल में भर्ती रहा. इसके बाद उसने मेडिकल कॉलेज जबलपुर में उपचार करवाया. उपचार के दौरान डॉक्टर्स को उसका पैर काटना पडा. आवेदक डॉक्टर की तरफ से तर्क दिया गया कि पुलिस ने डॉक्टरों की विषेषज्ञ समिति से रिपोर्ट प्राप्त किये बिना ही उसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया गया. एकलपीठ ने अनावेदक पीड़ित को स्वतंत्रता दी है कि वह डॉक्टरों की विशेषज्ञ समिति से संपर्क करे.