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मदर्स डे : अंबिकापुर की इस मां ने बच्चों को जन्म तो नहीं दिया, लेकिन कई बच्चों की संवारी जिंदगी - Mothers Day 2024 - MOTHERS DAY 2024

मदर्स डे पर हम आपको एक ऐसी मां से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने बच्चों को जन्म तो नहीं दिया, लेकिन एक मां की तरह ही दूसरों के बच्चों का जीवन संवार रही हैं. हम बात कर रहे हैं अम्बिकापुर की समाजसेविका वंदना दत्ता की. जिन्होंने करीब 47 साल पहले ही अपना जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया. उन्होंने 15 बच्चों को पढ़ा लिखा कर उनका जीवन संवारा है.

Mothers day 2024
मातृ दिवस 2024 (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 12, 2024, 9:17 AM IST

Updated : May 12, 2024, 11:00 AM IST

अम्बिकापुर की समाजसेविका वंदना दत्ता (ETV Bharat Chhattisgarh)

सरगुजा : अम्बिकापुर की समाजसेविका वंदना दत्ता ने करीब 47 साल पहले समाज सेवा के क्षेत्र कदम रखा. 66 वर्षीय वंदना दत्ता को जरुरत मंद बच्चों से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने विवाह ही नहीं किया और जीवन के संघर्ष में बच्चों की ताकत बन गई. आज कई ऐसे बच्चे हैं, जो इन्हें मां, बुआ या दीदी कहते हैं. यहीं बच्चे उनका परिवार हैं. इनमे से कई बच्चे सरकारी ओहदे पर भी कार्यरत हैं. कुछ करियर बना रहे हैं तो कुछ की प्राइवेट सेक्टर में जॉब कर रहे हैं.

अभी भी तीन बच्चों का कर रही परवरिश: वंदना दत्ता के पास अभी 3 बच्चे रह रहे हैं, जिसमें एक एक बच्चा शिवम 11वीं की पढ़ाई कर रहा है. दूसरी जयंती बीए की पढ़ाई पूरी कर चुकी है. उन्हीं के एक विद्या मंदिर नामक स्कूल, जहां 8वीं कक्षा तक के बच्चों को निम्न शुल्क में पढ़ाया जाता है, वहां बतौर शिक्षिका का कार्य कर रही है.

"जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा": वंदना दत्ता के विषय मे युवक नीरज ओझा बताते हैं "ये मेरी मां हैं, जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. जब मैं छोटा था तो यहां अपनी बुआ के यहां आया था. लोग बताते हैं कि मैं बचपन से पढ़ाई में अच्छा था, फिर ये बोलीं की पढ़ाऊंगी अपने पास रखूंगी. तब 2004 से मैं यहीं हूं. आज सब कुछ बढ़िया है. मैं तमिलनाडु में एक प्राइवेट मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूं.

"बचपन मे मैं बदमाशी करता था. खेल खेल में ही इनका महंगा घड़ी तोड़ दिया था. ऐसे समय में उनकी डांट भी पड़ती थी, लेकिन प्यार भी बहुत मिला. मेरे मम्मी-पापा यूपी सोनभद्र जिले में रहते हैं. पिता जी पूजा-पाठ कराते हैं और मां हाउस वाइफ हैं." - नीरज ओझा

"वंदना दीदी ने पढ़ाया-लिखाया, काम सिखाया": वंदना दत्ता के घर पर रहकर पढ़ाई करने वाली जयंती बताती हैं, "मैं यहां 2007 से आई हूं, वंदना दीदी ने ही पढ़ाया-लिखाया, हर काम सिखाया. अब मैं एक ऐसी स्कूल में पढ़ाती हूं, वहां बच्चों को बहुत मामूली शुल्क पर पढ़ाया जाता है. इस स्कूल में पैसा नहीं होने की स्थिति में मुफ्त पढ़ाई भी कराई जाती है."

80 के दशक से कर रही बच्चों की परवरिश: मां बनकर बच्चों का जीवन संवारने वाली वंदना दत्ता ने बताया, "करीब सन 1978-79 की बात है. मैं महिला मंडल स्कूल में हेड मास्टर थी. एक बच्ची मेरे पास टीसी लेने आई. जैसा की चलन था कि टीसी नहीं देना है, तो मैंने भी मना किया. लेकिन उस बच्ची ने कहा कि मैं नहीं पढ़ पाऊंगी मैं जिनके घर में रहती हूं, उनका ट्रांसफर हो गया है. तो मैंने उसको कह दिया कि ठीक है, तुम मेरे घर में रहना. वो लड़की अगले दिन अपना बैग पैक करके मेरे घर आ गई. बस यहीं से ये सिलसिला शुरू हुआ."

"कुछ दिन बाद उसी लड़की ने एक और लड़की को अपने घर में रखने की गुजारिश की. वह भी पढ़ना चाहती थी, उसके पिता भीख मांगते थे, फिर वो भी आ गई. ऐसा करते करते करीब 15 बच्चे मेरे साथ रहकर पढ़े और आज सब अपने अपने काम में हैं. कुछ बड़े पदों पर हैं, लेकिन वो मेरे संपर्क में नहीं रहते हैं. सुनी हूं कि अच्छी अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं. क्या पता क्यों सम्पर्क नहीं करते हैं वो लोग." - वंदना दत्ता, समाज सेविका

वंदना के पास हमेशा रहते हैं 3-4 बच्चे: मैं अकेली कभी नहीं रही हूं. लगातार मेरे पास 4-5 बच्चे रहते ही हैं. 1978 से कभी ऐसा नहीं हुआ है कि यहां एक भी बच्चा ना हो." नीरज के विषय में वंदना दत्ता कहती हैं "इसके साथ बड़ा अच्छा अनुभव है. ये 4 साल का था, तब अपनी बुआ के यहां आया था, तभी से मेरे साथ रहने लगा. उस समय यहां बहुत सारे बच्चे रहा करते थे. अब तो चेन्नई में रहता है, बोला है कि यहां से जाकर फ्लाइट का टिकट भेज कर मुझे चेन्नई बुलायेगा और वहां से रामेश्वरम और कन्याकुमारी घुमाने ले जायेगा.

अम्बिकापुर की वंदना दत्ता इन बच्चों की परवरिश के साथ ही कपडे इकट्ठे करके गरीब बस्तियों में देना, सड़क में रहने वालों को भोजन कराना, जरूरत के अनुसार लोगों की मदद करना, ऐसे कई समाज सेवा के काम हैं, जो वंदना दत्ता करती हैं. बड़ी बात ये है कि इनके घर पर रहने वाले बच्चों पर काम का बोझ ना पड़े, इसलिए उन्होंने एक हाउस कीपिंग स्टाफ भी घर में रखा है. ताकि यहां रहने वाले बच्चों को पढ़ाई के लिए अधिक वक्त मिल सके.

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अम्बिकापुर की समाजसेविका वंदना दत्ता (ETV Bharat Chhattisgarh)

सरगुजा : अम्बिकापुर की समाजसेविका वंदना दत्ता ने करीब 47 साल पहले समाज सेवा के क्षेत्र कदम रखा. 66 वर्षीय वंदना दत्ता को जरुरत मंद बच्चों से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने विवाह ही नहीं किया और जीवन के संघर्ष में बच्चों की ताकत बन गई. आज कई ऐसे बच्चे हैं, जो इन्हें मां, बुआ या दीदी कहते हैं. यहीं बच्चे उनका परिवार हैं. इनमे से कई बच्चे सरकारी ओहदे पर भी कार्यरत हैं. कुछ करियर बना रहे हैं तो कुछ की प्राइवेट सेक्टर में जॉब कर रहे हैं.

अभी भी तीन बच्चों का कर रही परवरिश: वंदना दत्ता के पास अभी 3 बच्चे रह रहे हैं, जिसमें एक एक बच्चा शिवम 11वीं की पढ़ाई कर रहा है. दूसरी जयंती बीए की पढ़ाई पूरी कर चुकी है. उन्हीं के एक विद्या मंदिर नामक स्कूल, जहां 8वीं कक्षा तक के बच्चों को निम्न शुल्क में पढ़ाया जाता है, वहां बतौर शिक्षिका का कार्य कर रही है.

"जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा": वंदना दत्ता के विषय मे युवक नीरज ओझा बताते हैं "ये मेरी मां हैं, जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. जब मैं छोटा था तो यहां अपनी बुआ के यहां आया था. लोग बताते हैं कि मैं बचपन से पढ़ाई में अच्छा था, फिर ये बोलीं की पढ़ाऊंगी अपने पास रखूंगी. तब 2004 से मैं यहीं हूं. आज सब कुछ बढ़िया है. मैं तमिलनाडु में एक प्राइवेट मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूं.

"बचपन मे मैं बदमाशी करता था. खेल खेल में ही इनका महंगा घड़ी तोड़ दिया था. ऐसे समय में उनकी डांट भी पड़ती थी, लेकिन प्यार भी बहुत मिला. मेरे मम्मी-पापा यूपी सोनभद्र जिले में रहते हैं. पिता जी पूजा-पाठ कराते हैं और मां हाउस वाइफ हैं." - नीरज ओझा

"वंदना दीदी ने पढ़ाया-लिखाया, काम सिखाया": वंदना दत्ता के घर पर रहकर पढ़ाई करने वाली जयंती बताती हैं, "मैं यहां 2007 से आई हूं, वंदना दीदी ने ही पढ़ाया-लिखाया, हर काम सिखाया. अब मैं एक ऐसी स्कूल में पढ़ाती हूं, वहां बच्चों को बहुत मामूली शुल्क पर पढ़ाया जाता है. इस स्कूल में पैसा नहीं होने की स्थिति में मुफ्त पढ़ाई भी कराई जाती है."

80 के दशक से कर रही बच्चों की परवरिश: मां बनकर बच्चों का जीवन संवारने वाली वंदना दत्ता ने बताया, "करीब सन 1978-79 की बात है. मैं महिला मंडल स्कूल में हेड मास्टर थी. एक बच्ची मेरे पास टीसी लेने आई. जैसा की चलन था कि टीसी नहीं देना है, तो मैंने भी मना किया. लेकिन उस बच्ची ने कहा कि मैं नहीं पढ़ पाऊंगी मैं जिनके घर में रहती हूं, उनका ट्रांसफर हो गया है. तो मैंने उसको कह दिया कि ठीक है, तुम मेरे घर में रहना. वो लड़की अगले दिन अपना बैग पैक करके मेरे घर आ गई. बस यहीं से ये सिलसिला शुरू हुआ."

"कुछ दिन बाद उसी लड़की ने एक और लड़की को अपने घर में रखने की गुजारिश की. वह भी पढ़ना चाहती थी, उसके पिता भीख मांगते थे, फिर वो भी आ गई. ऐसा करते करते करीब 15 बच्चे मेरे साथ रहकर पढ़े और आज सब अपने अपने काम में हैं. कुछ बड़े पदों पर हैं, लेकिन वो मेरे संपर्क में नहीं रहते हैं. सुनी हूं कि अच्छी अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं. क्या पता क्यों सम्पर्क नहीं करते हैं वो लोग." - वंदना दत्ता, समाज सेविका

वंदना के पास हमेशा रहते हैं 3-4 बच्चे: मैं अकेली कभी नहीं रही हूं. लगातार मेरे पास 4-5 बच्चे रहते ही हैं. 1978 से कभी ऐसा नहीं हुआ है कि यहां एक भी बच्चा ना हो." नीरज के विषय में वंदना दत्ता कहती हैं "इसके साथ बड़ा अच्छा अनुभव है. ये 4 साल का था, तब अपनी बुआ के यहां आया था, तभी से मेरे साथ रहने लगा. उस समय यहां बहुत सारे बच्चे रहा करते थे. अब तो चेन्नई में रहता है, बोला है कि यहां से जाकर फ्लाइट का टिकट भेज कर मुझे चेन्नई बुलायेगा और वहां से रामेश्वरम और कन्याकुमारी घुमाने ले जायेगा.

अम्बिकापुर की वंदना दत्ता इन बच्चों की परवरिश के साथ ही कपडे इकट्ठे करके गरीब बस्तियों में देना, सड़क में रहने वालों को भोजन कराना, जरूरत के अनुसार लोगों की मदद करना, ऐसे कई समाज सेवा के काम हैं, जो वंदना दत्ता करती हैं. बड़ी बात ये है कि इनके घर पर रहने वाले बच्चों पर काम का बोझ ना पड़े, इसलिए उन्होंने एक हाउस कीपिंग स्टाफ भी घर में रखा है. ताकि यहां रहने वाले बच्चों को पढ़ाई के लिए अधिक वक्त मिल सके.

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Last Updated : May 12, 2024, 11:00 AM IST
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