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14 साल की उम्र में हादसे में कटे दोनों हाथ, सोच,जुनून और हौसले से शिक्षक बनकर बदली पूरी जिंदगी - Morena Disabled Teacher Inspiration

कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में हो तो ईश्वर भी आपको रास्ता दिखाता है. मुरैना में भी ऐसे ही एक शिक्षक हैं जिसने दोनों हाथों से विकलांग होने के बावजूद हार और निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और मेहनत करते हुए सरकारी शिक्षक बनकर आज समाज में सभी के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.

MORENA DISABLED TEACHER INSPIRATION
लोगों के लिए मिसाल बने दिव्यांग प्रदीप बघेल (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 5, 2024, 11:08 AM IST

मुरैना: भले ही प्रदीप ने हादसे में दोनों हाथ गंवा दिए लेकिन हौसला नहीं खोया. स्कूल की पढ़ाई की फिर कॉलेज से पीजी किया और सरकारी शिक्षक बनकर अब बच्चों को पढ़ा रहे हैं. दिव्यांग प्रदीप के जुनून ने अपनी पूरी जिंदगी को बदल दिया. प्रदीप दूसरे शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा बने हुए हैं. दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद वे बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर लिखकर पढ़ाते हैं और अपने ज्यादातर काम खुद ही करते हैं.

दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद प्रदीप बघेल बने शिक्षक (ETV Bharat)

'जिद्द करो दुनिया बदलो'

मुरैना से 65 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़गढ़ जनपद के रामनगर गांव में सरकारी शिक्षक हैं. प्रदीप के दोनों हाथ बचपन में पशुओं के लिए चारा काटने वाली मशीन में चले गए और वो दोनों हाथ गवां बैठे. हादसे के दिन उन्होंने सोच लिया था कि अब मेरा पूरा जीवन थम गया है और अब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. भिंड जिले के रहने वाले दिव्यांग प्रदीप ने अपनी सोच को बदला और जुनून और हौसले से पूरी जिंदगी की बाजी को ही पलट दिया. वो कहते हैं जिद्द करो दुनिया बदलो. अपनी जिद और जुनून के आगे दिव्यांग प्रदीप वह सब काम करते है जो सामान्य व्यक्ति करते हैं. ड्राइविंग को छोड़कर प्रदीप छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

खेती के काम में भी बंटाते हैं हाथ

प्रदीप लैपटॉप और मोबाइल को इस तरीके से चलाते हैं जैसे कोई सामान्य व्यक्ति चला रहा है. अपने दोनों हाथों से पेन पकड़कर साफ लेखनी में भी लिखते हैं. इसी प्रकार से बच्चों को भी ब्लैक बोर्ड पर चॉक से बच्चों को ऐसे पढ़ाते हैं जैसे सामान्य शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं. प्रदीप बताते हैं कि वह अपनी मां के साथ खेती के कामों में भी हाथ बटाते हैं.

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भिंड के रहने वाले हैं प्रदीप

रामनगर गांव के प्राइमरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक प्रदीप बघेल भिंड जिले के मिमसाई गांव के हैं. प्रदीप बघेल ने बताया कि "14 साल की उम्र में गांव में चारा काटते समय दोनों हाथ कट गए थे. विकलांगता का दंश ऐसा कि खुद के कामकाज निपटाने के लिए भी दूसरों पर आश्रित हो गए लेकिन हिम्मत नहीं हारी. नए सिरे से हौसला समेटकर पढ़ाई शुरू की और ग्रेजुएशन करके एग्जाम फाइट कर प्राथमिक शिक्षक पद पर चयनित हुए." प्रदीप आज दूसरे शिक्षकों और लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं.

मुरैना: भले ही प्रदीप ने हादसे में दोनों हाथ गंवा दिए लेकिन हौसला नहीं खोया. स्कूल की पढ़ाई की फिर कॉलेज से पीजी किया और सरकारी शिक्षक बनकर अब बच्चों को पढ़ा रहे हैं. दिव्यांग प्रदीप के जुनून ने अपनी पूरी जिंदगी को बदल दिया. प्रदीप दूसरे शिक्षकों के लिए भी प्रेरणा बने हुए हैं. दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद वे बच्चों को ब्लैकबोर्ड पर लिखकर पढ़ाते हैं और अपने ज्यादातर काम खुद ही करते हैं.

दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद प्रदीप बघेल बने शिक्षक (ETV Bharat)

'जिद्द करो दुनिया बदलो'

मुरैना से 65 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़गढ़ जनपद के रामनगर गांव में सरकारी शिक्षक हैं. प्रदीप के दोनों हाथ बचपन में पशुओं के लिए चारा काटने वाली मशीन में चले गए और वो दोनों हाथ गवां बैठे. हादसे के दिन उन्होंने सोच लिया था कि अब मेरा पूरा जीवन थम गया है और अब मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा. भिंड जिले के रहने वाले दिव्यांग प्रदीप ने अपनी सोच को बदला और जुनून और हौसले से पूरी जिंदगी की बाजी को ही पलट दिया. वो कहते हैं जिद्द करो दुनिया बदलो. अपनी जिद और जुनून के आगे दिव्यांग प्रदीप वह सब काम करते है जो सामान्य व्यक्ति करते हैं. ड्राइविंग को छोड़कर प्रदीप छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं.

खेती के काम में भी बंटाते हैं हाथ

प्रदीप लैपटॉप और मोबाइल को इस तरीके से चलाते हैं जैसे कोई सामान्य व्यक्ति चला रहा है. अपने दोनों हाथों से पेन पकड़कर साफ लेखनी में भी लिखते हैं. इसी प्रकार से बच्चों को भी ब्लैक बोर्ड पर चॉक से बच्चों को ऐसे पढ़ाते हैं जैसे सामान्य शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं. प्रदीप बताते हैं कि वह अपनी मां के साथ खेती के कामों में भी हाथ बटाते हैं.

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भिंड के रहने वाले हैं प्रदीप

रामनगर गांव के प्राइमरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक प्रदीप बघेल भिंड जिले के मिमसाई गांव के हैं. प्रदीप बघेल ने बताया कि "14 साल की उम्र में गांव में चारा काटते समय दोनों हाथ कट गए थे. विकलांगता का दंश ऐसा कि खुद के कामकाज निपटाने के लिए भी दूसरों पर आश्रित हो गए लेकिन हिम्मत नहीं हारी. नए सिरे से हौसला समेटकर पढ़ाई शुरू की और ग्रेजुएशन करके एग्जाम फाइट कर प्राथमिक शिक्षक पद पर चयनित हुए." प्रदीप आज दूसरे शिक्षकों और लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं.

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