लखनऊ : आसिफी इमामबाड़े से पहली मोहर्रम को निकले शाही मोम की जरीह के जुलूस में बैण्डों पर बजती मातमी धुन अजादारों को अय्यामे अजा के आगाज की खबर देने के साथ ही गमगीन कर रही थी. आसिफी इमामबाड़े से शाही शानो-शौकत से निकला जुलूस रूमी गेट, घंटाघर, सतखंडा के सामने से होता हुआ देर रात हुसैनाबाद स्थित छोटा इमामबाड़ा पहुंचा. जहां अकीदतमंदों ने जुलूस में शामिल तबर्रुकात की जियारत कर दुआएं मांगी.
हुसैनाबाद एंड एलाइड ट्रस्ट की ओर से सोमवार शाम आसिफी इमामबाड़े से शाही मोम की जरीह का जुलूस निकाला गया. जुलूस से पहले इमामबाड़े में हुई मजलिस को मौलाना मोहम्मद अली हैदर ने खिताब किया. मजलिस के बाद इमामबाड़ा परिसर में गश्त कर जुलूस निकाला गया. जुलूस में आगे-आगे स्याह फाटक था, जिसके पीछे शाही बाजे और शहनाई पर बजती मातमी धुन अजादारों को गमगीन कर रही थी. जुलूस में शामिल पीएसी और होमगार्ड के बैंडों से भी मातमी धुनें बज रही थीं और मर्सियाख्वां इमाम हुसैन की मदीने से रुखसती के हाल के मर्सिये पढ़ रहे थे.
जुलूस में आगे हाथी-ऊंटों पर शाही निशान ताज, शेरदहां, माही, सूरज-चांद और रंग-बिरंगे झंडे लिए लोग बैठे थे. जिसके पीछे मातमी बैंड, चौबदार, इमाम हुसैन के भाई हजरत अब्बास की निशानी अलम लिए लोग चल रहे थे. जुलूस में शामिल 22 फिट की शाही मोम और 17 फिट की अबरक की जरीह और इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक जुलजनाह की जियारत कर अकीदतमंदों ने दुआएं मांगी. जुलूस में बड़े-बड़े परचम और अलम लिए अजादार शामिल थे.
जुलूस के दौरान मार्ग पर सड़क के दोनों ओर बड़ी संख्या में अकीदतमंद इंतजार कर रहे थे. जैसे ही जुलूस पास पहुंचता अकीदतमंद जुलूस में शामिल तबर्रुकात की जियारत कर दुआएं मांगते. जुलूस रूमी गेट, घंटाघर, सतखंडा के सामने से होता हुआ देर रात हुसैनाबाद स्थित छोटा इमामबाड़ा पहुंचा, जहां अकीदतमंदों ने तबर्रुकात की जियारत की और दुआएं मांगीं.
इमाम हुसैन अ.स की अज़ादारी हमेशा कायम रहेगी : जवाद
इमामबाड़ा गुफ़रानमआब में मुहर्रम की पहली मजलिस को मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने खिताब किया. उन्होंने रिवायत के मुताबिक पहली मजलिस में अयातुल्लाह सैय्यद दिलदार अली गुफ़रानमआब की इल्मी और अज़ाई ख़िदमात को बयान किया. मौलाना ने हिंदुस्तान में शियों के इतिहास पर गुफ़्तुगू की और कहा कि हिंदुस्तान में शियत हज़रत गुफ़रानमआब के एहसान मंद हैं. कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में शियों का पहला हौज़ा ए इल्मिया (शैक्षणिक संस्थान) हज़रत गुफ़रानमआब ने स्थापित किया था जो लखनऊ की विशिष्टताओं में से एक है. ऐतिहासिक संदर्भ में देखा जाए तो हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, ईरान लखनऊ के बाद वजूद में आया.
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