गोरखपुर : मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMUT) के शोध छात्र ने सिंगल-डबल टनल की खोदाई और उसके आसपास के भवन को छति से बचाने का फार्मूला खोज निकाला है. छात्र ने रिडक्शन फैक्टर तकनीक को विकसित किया है. इस पर आधारित उनके शोधपत्र को अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर ने भी मान्यता दी है. टनल खोदाई को दौरान और इसकी वजह से होने वाले हादसों के मद्देनजर उनकी यह तकनीक काफी कारगर मानी जा रही है.
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थी डॉ. पीयूष कुमार ने सिंगल या डबल टनल की खोदाई से आसपास के भवनों को नुकसान से बचाने की तकनीक विकसित की है. इसे लेकर छात्र के कुल 9 शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं. छात्र ने इस तकनीक को सिविल इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर के निर्देशन में विकसित किया.
नींव और भूमिगत सुरंग के इंटरैक्शन पर किया काम : शोध निदेशक डॉक्टर विनय भूषण चौहान ने बताया कि हमने अपने शोध कार्य में नींव और भूमिगत सुरंग के अंतःक्रिया (इंटरैक्शन) पर कार्य किया है. यह इमारतों की नींव की भार वहन क्षमता, धंसाव (सेटलमेंट) के स्वरूप पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है. इससे संरचना की सुरक्षा और दीर्घकालिक स्थायित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इस विषय पर केंद्रित रहते हुए हमने अपने शोध कार्य में नींव और भूमिगत सुरंग के बीच एक न्यूनतम सापेक्ष दूरी की सिफारिश की.
हमने पाया कि यदि भूमिगत सुरंग तय निश्चित दूरी के अलग स्थित होती है तो यह नींव की भार वहन क्षमता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालती. इस महत्वपूर्ण निष्कर्ष से यह स्पष्ट हो गया कि सही तय दूरी को सुनिश्चित करके संरचनाओं की नींव और भूमिगत सुरंग के बीच अंतःक्रिया को रोका जा सकता है. इससे इमारतों की सुरक्षा और स्थायित्व में सुधार होता है. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि हमारे शोध कार्य का उद्देश्य किसी नई सुरंग निर्माण तकनीक (टनल कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी) का विकास करना नहीं था.
रिडक्शन फैक्टर से होगा नुकसान का आकलन : आसान शब्दों में रिडक्शन फैक्टर तकनीक यह बताती है कि भूमिगत टनल किस तरीके के किसी भवन की नींव को प्रभावित कर सकता है. यह आसपास के मकानों को कितने प्रतिशत नुकसान पहुंचा सकता है. टनल की खोदाई का कितना प्रभाव मकानो पर पड़ेगा, इसे कैसे कम किया जा सकता हैं. निदेशक ने बताया कि हमने किसी भी प्रकार की सुरंग निर्माण तकनीक का ईजाद नहीं किया है. इसके बजाय, हमारा शोध नींव और भूमिगत सुरंग के बीच होने वाली अंतःक्रिया (इंटरैक्शन) पर केंद्रित रहा. यह मौजूदा समय में बनाई जा रही सुरंगों की सुरक्षा और संरचनात्मक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है. हमने नींव और भूमिगत सुरंग के बीच इंटरैक्शन और तय दूरी को ध्यान में रखते हुए, नींव की भार वहन क्षमता में संभावित कमी का आकलन करने के लिए एक रिडक्शन फैक्टर तैयार किया है. यह फैक्टर सुरंग की उपस्थिति एवं सुरंग की नींव से दूरी के साथ ही साथ जमीन के गुणधर्मों (जैसे मिट्टी या चट्टान की कठोरता) पर निर्भर करता है.
अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में 9 शोध पत्र प्रकाशित : शोधार्थी डॉ. पीयूष कुमार ने बताया कि इस रिडक्शन फैक्टर का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि जब नींव और सुरंग के बीच की दूरी कम हो जाती है, तो नींव की भार वहन क्षमता में कितने प्रतिशत तक की कमी आ सकती है. यह फैक्टर सुरंग निर्माण के दौरान नींव की स्थिरता और संरचनात्मक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सटीक और विश्वसनीय निर्णय लेने में मदद करता है. इस शोध कार्य पर 9 शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं. इन प्रकाशनों के माध्यम से हमारे निष्कर्षों को वैज्ञानिक समुदाय से मान्यता मिली है.
उनके शोध की यह प्रक्रिया पेटेंट के दौर से भी गुजरेगी जिससे उनकी तकनीक को कोई और इस्तेमाल न कर सके. शोधार्थी पीयूष ने कहा कि उनके इस शोध कार्य की सफलता में शोध निर्देशक का बहुत बड़ा योगदान है. माता-पिता का भी भरपूर आशीर्वाद मिला. पत्नी ने भी सहयोग किया.
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