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मखाना बास्केट बनेंगे गोरखपुर, कुशीनगर, महाराजगंज जैसे जिले, खेती के लिए किसानों को 40000 रुपए सब्सिडी

GOOD NEWS FOR UP FARMERS; यूपी के तराई जिलों की जलवायु अच्छी, सुपर फूड से किसान होंगे मालामाल

mithila makhana farming cultivation yogi government provide facilities up farmers rate
यूपी में मखाने की खेती को मिलेगा बढ़ावा. (photo credit: etv bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 9, 2024, 7:31 AM IST

Updated : Oct 9, 2024, 12:55 PM IST

गोरखपुर: बिहार के मिथिलांचल की आबोहवा सुपर फूड मखाना (Makhana) के उत्पादन के लिए बेहद ही अनुकूल साबित हो रही है. यही वजह है कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश की योगी सरकार भी इसमें जुट गई है. सरकार इसके लिए सतत प्रोत्साहन की योजनाएं लागू कर रही है. इसमें किसानों को अनुदान देने की व्यवस्था बनाई है. गोरखपुर जिले की जलवायु इसके लिए पूरी तरह अनुकूल पाई गई है. इसके बाद सरकार ने पहले चरण में गोरखपुर, कुशीनगर और महाराजगंज जिले में 33 हेक्टेयर(करीब 132 बीघा) में इस फसल के उत्पादन का लक्ष्य रखते हुए, उद्यान विभाग के अधिकारियों को किसानों को प्रोत्साहित करने और फसल का बीजारोपण करने के लिए लगा दिया है. देवरिया जिले में पिछले वर्ष मखाना की खेती पिछले वर्ष शुरू हो चुकी है. बता दें कि बाजार में इस वक्त मिथिला के मखाना का भाव 1300 रुपए प्रति किलो चल रहा है. यह किसानों की आमदनी का बड़ा जरिया है.


बिहार की जलवायु बेहद अनुकूलः मखाना की खेती करने वाले बिहार के मिथिलांचल के समतुल्य जलवायु वाले पूर्वांचल में इसकी भरपूर संभावना देखी रही है. यही वजह है सरकार ने पूर्वांचल के 14 जिलों में अनुदान पर मखाना की खेती के लिए लक्ष्य तय कर दिया है. वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि गोरखपुर मंडल की जलवायु में मिथिला जैसी उत्पादकता देने का सामर्थ्य है. मखाना की खेती ऐसी जगहों के लिए अधिक उपयुक्त हैं जहां खेतों में काफी पानी जमा रहता है. गोरखपुर मंडल में तालाबों की पर्याप्त संख्या तो है ही मंडल के कई ब्लॉक ऐसे हैं जहां लो लैंड एरिया में बारिश का पानी खेतों में काफी समय तक भरा रहता है. इन खेतों के किसान मखाना की खेती अपनाकर मालामाल हो सकते हैं। सरकार की तरफ से मखाना खेती के लिए अनुदान की व्यवस्था भी इसी मंशा से की गई है. इस पहल का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है.

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योगी सरकार किसानों को करेगी प्रोत्साहित. (photo credit: etv bharat gfx)


देवरिया में पिछले साल ही शुरू हुई खेतीः गोरखपुर मंडल के देवरिया जिले में मखाना की खेती का प्रयोग गत वर्ष ही शुरू हो चुका है. यहां के कई प्रगतिशील किसान और मत्स्यपालक राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा से मखाना का बीज मंगाकर खेती कर रहे हैं. इस तरह देवरिया मखाना खेती की शुरुआत करने वाला पूर्वांचल का पहला जिला बन चुका है. इस साल देवरिया में करीब पांच हेक्टेयर रकबे में मखाना की फसल तैयार है. अब सरकार मंडल के अन्य जिलों के किसानों को भी इससे जोड़ने में जुट गई है.

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गोरखपुर मंडल की जलवायु मखाने की खेती के अनुकूल. (photo credit: etv bharat)

कुशीनगर को भी खेती का लक्ष्य मिलाः मसलन देवरिया के बगल में कुशीनगर जिले में 13 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती कराने का लक्ष्य मिला है. इसमें से अबतक 8 हेक्टेयर से अधिक रकबे में खेती करने के लिए 16 किसानों का प्रस्ताव उद्यान विभाग ने मंजूर भी कर लिया है. गोरखपुर में 10 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती कराने का उद्यान विभाग को दिया गया है. राजकीय उद्यान के अधीक्षक पारसनाथ बताते हैं कि कुल लक्ष्य में 20 प्रतिशत से यानी गोरखपुर में 2 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती के लिए अनुसूचित जाति के किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. 8 हेक्टेयर रकबा सामान्य वर्ग के किसानों के लिए लक्षित है. इसी तरह महराजगंज जिले में भी उद्यान विभाग को 10 हेक्टेयर में मखाना की खेती कराने का लक्ष्य शासन से मिला है. पहले साल करीब 25 किसान इससे जुड़ेंगे.

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योगी सरकार दे रही मखाने की खेती को बढ़ावा. (photo credit: etv bharat)

40 प्रतिशत लागत की भरपाई अनुदान सेः उद्यान विभाग में पंजीकरण कराकर मखाना की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये का अनुदान देगी. एक हेक्टेयर में मखाना की खेती करने में करीब एक लाख रुपये की लागत आती है. ऐसे में लागत की 40 प्रतिशत भरपाई तो अकेले सरकारी अनुदान से ही हो जाएगी. एक हेक्टेयर के तालाब या पानी लगे खेत में औसतन प्रति हेक्टेयर 25 से 29 क्विंटल पैदावार हासिल होती है. वर्तमान में अच्छी क्वालिटी के मखाना का प्रति किलो थोक भाव औसतन 1200-1300 रुपए प्रति किलो तक है.




उत्पादन में लगते दस माहः मखाना की खेती तालाब या औसतन तीन फीट पानी भरे खेत में होती है. नवंबर महीने में इसकी नर्सरी डाली जाती है और चार माह बाद (फरवरी-मार्च में) इसकी रोपाई की जाती है. रोपाई के करीब पांच महीने बाद पौधों में फूल लगने लगते हैं. अक्टूबर-नवम्बर में इसकी कटाई शुरू होती है. नर्सरी डालने से लेकर कटाई तक कुल दस माह का समय फसल तैयार होने में लगता. मखाना की खेती उन किसानों के लिए तो और भी फायदेमंद है जो पहले से अपने निजी तालाबों में मछली पालन करते हैं.



सुपरफूड क्यों कहा जाता है: पोषक तत्वों का खजाना होने का कारण मखाना की ख्याति एक सुपरफूड के रूप में बढ़ रही है. कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य और प्रतिरक्षण प्रणाली को मजबूत करने के लिए जागरूकता काफी बढ़ी है. इसके चलते मखाना की मांग में भी काफी तेजी से वृद्धि हुई है. लो कैलोरी होने के साथ मखाना में प्रोटीन, फॉस्फोरस, फाइबर, आयरन और कैल्शियम भरपूर पाया जाता है. इसका सेवन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के साथ हृदय, उच्च रक्तचाप और मधुमेह नियंत्रण के लिए मुफीद माना जाता है.



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गोरखपुर: बिहार के मिथिलांचल की आबोहवा सुपर फूड मखाना (Makhana) के उत्पादन के लिए बेहद ही अनुकूल साबित हो रही है. यही वजह है कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रदेश की योगी सरकार भी इसमें जुट गई है. सरकार इसके लिए सतत प्रोत्साहन की योजनाएं लागू कर रही है. इसमें किसानों को अनुदान देने की व्यवस्था बनाई है. गोरखपुर जिले की जलवायु इसके लिए पूरी तरह अनुकूल पाई गई है. इसके बाद सरकार ने पहले चरण में गोरखपुर, कुशीनगर और महाराजगंज जिले में 33 हेक्टेयर(करीब 132 बीघा) में इस फसल के उत्पादन का लक्ष्य रखते हुए, उद्यान विभाग के अधिकारियों को किसानों को प्रोत्साहित करने और फसल का बीजारोपण करने के लिए लगा दिया है. देवरिया जिले में पिछले वर्ष मखाना की खेती पिछले वर्ष शुरू हो चुकी है. बता दें कि बाजार में इस वक्त मिथिला के मखाना का भाव 1300 रुपए प्रति किलो चल रहा है. यह किसानों की आमदनी का बड़ा जरिया है.


बिहार की जलवायु बेहद अनुकूलः मखाना की खेती करने वाले बिहार के मिथिलांचल के समतुल्य जलवायु वाले पूर्वांचल में इसकी भरपूर संभावना देखी रही है. यही वजह है सरकार ने पूर्वांचल के 14 जिलों में अनुदान पर मखाना की खेती के लिए लक्ष्य तय कर दिया है. वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया है कि गोरखपुर मंडल की जलवायु में मिथिला जैसी उत्पादकता देने का सामर्थ्य है. मखाना की खेती ऐसी जगहों के लिए अधिक उपयुक्त हैं जहां खेतों में काफी पानी जमा रहता है. गोरखपुर मंडल में तालाबों की पर्याप्त संख्या तो है ही मंडल के कई ब्लॉक ऐसे हैं जहां लो लैंड एरिया में बारिश का पानी खेतों में काफी समय तक भरा रहता है. इन खेतों के किसान मखाना की खेती अपनाकर मालामाल हो सकते हैं। सरकार की तरफ से मखाना खेती के लिए अनुदान की व्यवस्था भी इसी मंशा से की गई है. इस पहल का उद्देश्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है.

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योगी सरकार किसानों को करेगी प्रोत्साहित. (photo credit: etv bharat gfx)


देवरिया में पिछले साल ही शुरू हुई खेतीः गोरखपुर मंडल के देवरिया जिले में मखाना की खेती का प्रयोग गत वर्ष ही शुरू हो चुका है. यहां के कई प्रगतिशील किसान और मत्स्यपालक राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा से मखाना का बीज मंगाकर खेती कर रहे हैं. इस तरह देवरिया मखाना खेती की शुरुआत करने वाला पूर्वांचल का पहला जिला बन चुका है. इस साल देवरिया में करीब पांच हेक्टेयर रकबे में मखाना की फसल तैयार है. अब सरकार मंडल के अन्य जिलों के किसानों को भी इससे जोड़ने में जुट गई है.

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गोरखपुर मंडल की जलवायु मखाने की खेती के अनुकूल. (photo credit: etv bharat)

कुशीनगर को भी खेती का लक्ष्य मिलाः मसलन देवरिया के बगल में कुशीनगर जिले में 13 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती कराने का लक्ष्य मिला है. इसमें से अबतक 8 हेक्टेयर से अधिक रकबे में खेती करने के लिए 16 किसानों का प्रस्ताव उद्यान विभाग ने मंजूर भी कर लिया है. गोरखपुर में 10 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती कराने का उद्यान विभाग को दिया गया है. राजकीय उद्यान के अधीक्षक पारसनाथ बताते हैं कि कुल लक्ष्य में 20 प्रतिशत से यानी गोरखपुर में 2 हेक्टेयर रकबे में मखाना की खेती के लिए अनुसूचित जाति के किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. 8 हेक्टेयर रकबा सामान्य वर्ग के किसानों के लिए लक्षित है. इसी तरह महराजगंज जिले में भी उद्यान विभाग को 10 हेक्टेयर में मखाना की खेती कराने का लक्ष्य शासन से मिला है. पहले साल करीब 25 किसान इससे जुड़ेंगे.

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योगी सरकार दे रही मखाने की खेती को बढ़ावा. (photo credit: etv bharat)

40 प्रतिशत लागत की भरपाई अनुदान सेः उद्यान विभाग में पंजीकरण कराकर मखाना की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये का अनुदान देगी. एक हेक्टेयर में मखाना की खेती करने में करीब एक लाख रुपये की लागत आती है. ऐसे में लागत की 40 प्रतिशत भरपाई तो अकेले सरकारी अनुदान से ही हो जाएगी. एक हेक्टेयर के तालाब या पानी लगे खेत में औसतन प्रति हेक्टेयर 25 से 29 क्विंटल पैदावार हासिल होती है. वर्तमान में अच्छी क्वालिटी के मखाना का प्रति किलो थोक भाव औसतन 1200-1300 रुपए प्रति किलो तक है.




उत्पादन में लगते दस माहः मखाना की खेती तालाब या औसतन तीन फीट पानी भरे खेत में होती है. नवंबर महीने में इसकी नर्सरी डाली जाती है और चार माह बाद (फरवरी-मार्च में) इसकी रोपाई की जाती है. रोपाई के करीब पांच महीने बाद पौधों में फूल लगने लगते हैं. अक्टूबर-नवम्बर में इसकी कटाई शुरू होती है. नर्सरी डालने से लेकर कटाई तक कुल दस माह का समय फसल तैयार होने में लगता. मखाना की खेती उन किसानों के लिए तो और भी फायदेमंद है जो पहले से अपने निजी तालाबों में मछली पालन करते हैं.



सुपरफूड क्यों कहा जाता है: पोषक तत्वों का खजाना होने का कारण मखाना की ख्याति एक सुपरफूड के रूप में बढ़ रही है. कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य और प्रतिरक्षण प्रणाली को मजबूत करने के लिए जागरूकता काफी बढ़ी है. इसके चलते मखाना की मांग में भी काफी तेजी से वृद्धि हुई है. लो कैलोरी होने के साथ मखाना में प्रोटीन, फॉस्फोरस, फाइबर, आयरन और कैल्शियम भरपूर पाया जाता है. इसका सेवन पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के साथ हृदय, उच्च रक्तचाप और मधुमेह नियंत्रण के लिए मुफीद माना जाता है.



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Last Updated : Oct 9, 2024, 12:55 PM IST
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