गया: बिहार के गया जिले के खिजरसराय प्रखंड अंतर्गत मकसूदपुर कोठी कभी मगध की शान हुआ करती थी. लेकिन आपसी विवाद के कारण यह खंडहर में तब्दील हो गया. लेकिन एक बार फिर इस प्राचीन और ऐतिहासिक किले की रौनक लौटी और जिसे देखने आज भी लोग दूर-दूर से लोग आते हैं. किले में इस्लामी और राजपूत वास्तुकला की विशेषताएं हैं. यह कभी 52 आंगन, जमीन से 3 मंजिल ऊपर और जमीन के नीचे कई कमरों और सुरंगों का एक चक्रव्यूह था.
मकसूदपुर कोठी की अनूठी कहानी : मकसूदपुर किले से पुश्त दर पुश्त कई राजाओं का इतिहास जुड़ा बताया जाता है. मकसूदपुर कोठी की रियासत दूर-दूर तक फैली थी. यहां का इतिहास करीब साढे तीन सौ साल पुराना है. फिलहाल यहां की सारी रियासत मां काली के नाम से है. 40 बीघे से भी अधिक जमीन है. इसके अलावा जो भी संपत्ति हैं, वह सभी मां काली के नाम से है. इस रियासत के वंशज और रिटायर्ड अधिकारी अजय सिंह अभी इसके सेवक के रूप में देख-रेख करते हैं.
''किले का उपयोग 1934 तक मकसूदपुर राजाओं के निवास के रूप में किया जाता था. यहां स्थित मां काली की प्रतिमा और यहां स्थापित अन्य मंदिरों के प्रति राजा रामेश्वर की इतनी आस्था थी, कि उन्होंने मकसूदपुर कोठी की संपत्ति को छिन-भिन्न होने से बचाने के लिए अपनी चार बेटियों के बीच बंटवारा नहीं किया, बल्कि पूरी संपत्ति मां भगवती (काली मां) के नाम कर दी.'' - अजय सिंह, मकसूदपुर किले के वंशज
मां काली के नाम से है करोड़ों की संपत्ति : यहां रहकर पिछले 25 सालों से किले की देख-रेख करने वाले छोटेलाल बताते हैं कि यहां की सारी संपत्ति मां काली के नाम से है. राजा रामेश्वर की चार बेटियां थी. कोई पुत्र नहीं था. वे दो भाई थे. बेटो की शादी के बाद संपत्ति के छिन्न-भिन्न हो जाने का खतरा था. वहीं, रियासत में आस्था के प्रतीक कई मंदिर थे, जिसमें एक मंदिर मां काली की थी. मां काली की बड़ी और मनोरम प्रतिमा यहां स्थापित है.
इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु : गांव वालों का मानना है, कि यह प्रतिमा मनोकामना पूर्ण करने वाली है. भक्तों के कष्ट को तुरंत मिटा देती है. यहां स्थापित मां काली की महिमा अपरंपार है, लेकिन मां काली के दर्शन अब विशेष त्योहारों में ही हो पाते हैं, क्योंकि यह मंदिर अब किले के अंदर है, जहां आम लोगों की आसानी से पहुंचने की इजाजत नहीं है. विशेष त्योहारों में इस इलाके में दूर-दूर से लोग यहां स्थापित मां काली की प्रतिमा के दर्शन के लिए आते हैं.
दुर्गापूजा और छठ में बड़ी संख्या में लोग जुटते है : स्थानीय लोग बताते हैं कि किले के अंदर जो घाट मौजूद है, उनका उपयोग हम लोग दशहरा और छठ पूजा के दौरान करते है. दशहरा पूजा में यहां लगने वाले मेले में आसपास के क्षेत्रों के लोगों के लिए यह एक बड़ा आकर्षण होता है. वहीं छठ पूजा के दौरान यहां घाटों पर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए क्षेत्र के श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है. आसपास के मैदान में नौ शिखर वाला नौरतन मंदिर है, जो राधा-कृष्ण और आठ अन्य देवताओं के साथ-साथ छोटे हनुमान मंदिर और सूर्य मंदिर को समर्पित है.
तिलिस्मी प्रेम-गाथा 'चंद्रकांता' का गया कनेक्शन : चंद्रकांता सीरियल बनाने वाली नीरजा गुलेरी अजय सिंह की बहन है. इस तरह मकसूदपुर कोठी से चंद्रकांता सीरियल बनाने वाली नीरजा गुलेरी का जुड़ाव है. फिलहाल काली मंदिर समेत किले के अंदर और बाहरी परिसर में रहे सभी मंदिरों की की देख-रेख अजय सिंह कर रहे हैं. फिलहाल वे गया और देहरादून में रहते हैं.
पीतांबर सिंह थे पहले राजा : मकसूदपुर कोठी टिकारी राज से भी जुड़ा बताया जाता है. बताया जाता है कि इसके पहले राजा पीतांबर सिंह बहादुर थे, जिनका शासन 1763 से 1824 तक चला. इसके बाद चौथे और पांचवें राजा के रूप में रामेश्वर प्रसाद नारायण सिंह बहादुर और चंदेश्वर नारायण सिंह बहादुर 1902 से 1941 तक मकसूदपुर कोठी के राजा रहे.
मां भगवती के नाम कर दी सारी संपत्ति : ग्रामीण उदय सिंह बताते हैं कि रामेश्वर प्रसाद की चार बेटियां थी, उन्होंने अपनी मकसूदपुर कोठी की विरासत को अपनी बेटियों के बीच नहीं बांटा. क्योंकि उन्हें संपत्ति के छिन्न -भिन्न हो जाने की आशंका थी. ऐसे में उन्होंने सन् 1942 में मां भगवती के नाम मकसूदपुर कोठी की सारी संपत्ति लिखी. आज भी यह पूरी संपत्ति काली मां के नाम से है. यहां कई मंदिर है, तालाब भी है, लेकिन यह किला अब खंडहरनुमा होता जा रहा है.
''यहां मां काली की प्रतिमा जिससे राजा की काफी आस्था थी, यही वजह रही कि उन्होंने अपनी चार बेटियों के बीच संपत्ति बंटवारा न कर मां भगवती के नाम यह संपत्ति सुपुर्द कर दी. आज ट्रस्ट के माध्यम से इसकी देख-रेख हो रही है और जो भी संपत्ति की आय आती है, उसका खर्च मां भगवती और मंदिरों की देखरेख में जाता है. गांव के लोगों की भी मदद में इसका उपयोग किया जाता है.'' - उदय सिंह, ग्रामीण
रियासत थी मकसूदपुर और चैनपुर : उदय सिंह और उनकी पत्नी अनुरागिनी कुमारी बताती है कि, ''मकसूदपुर और चैनपुर रियासत थी. कितना जगह अब भी मकसूदपुर कोठी की प्रॉपर्टी है, यह हमें भी नहीं पता है. यहां काली जी का मंदिर है. राधा कृष्ण बलराम हनुमान जी, सूर्य भगवान, दक्षमंदी देवी (काली मां) समेत देवी- देवताओं की मूर्तियां है. शुरू से बंटवारा नहीं हुआ. राजा रामेश्वर प्रसाद ने मकसूदपुर कोठी की संपत्ति को काली जी के नाम से कर दिया.''
राजा ने सोचा, बेटियों की शादी के बाद कौन देखेगा? : राजा रामेश्वर की चार बेटी थी. संपत्ति छिन्न-भिन्न हो जाने का डर था, तो मंदिर की, काली जी की देखरेख कौन करेगा, इसी को लेकर ऐसा किया. उदय सिंह और अनुरागिनी कुमारी बताते हैं कि ''यह भी कहा गया कि जब तक बेटी जीवित रहेगी, सभी को 500-500 रूपए महीना मिलेगा. उनकी मृत्यु के बाद कुछ नहीं मिलेगा. इसका वसीयत लिखा गया. अजय सिंह की बहन नीरजा गुलेरी है.''
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