देहरादून: कहते हैं राजनीति में कभी कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता. राजनीति कब किस करवट बैठेगी यह कोई नहीं बता सकता. राजनेताओं में मतभेद तो होते ही हैं, लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए. उत्तराखंड की राजनीति में इन दिनों कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत की मुलाकात चर्चाओं में बनी है. जिसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. वहीं बीते दिन हरीश रावत ने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि मुख्यमंत्री धामी की जेब में गुजिया रखी है, जो मेरे भाई और मेरे पड़ोसी त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए भेजी है.
होली में राजनीति का तड़का: होली ऐसा त्यौहार है, जहां लोग हर गिला-शिकवा भुलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं. रंग लगाते हैं और मिठाई खिलाते हैं. लेकिन इस बार की होली न केवल चुनावी है, बल्कि राजनेताओं के लिए यह होली बेहद खास है. इसमें राजनीति का तड़का लग जाए तो चर्चाएं तेज होना लाजिमी है.बीते दिन होली में कांग्रेस नेता हरीश रावत हरिद्वार से लोकसभा प्रत्याशी और उनके बेटे वीरेंद्र रावत के प्रतिद्वंदी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर पहुंचे और उन्हें रंग गुलाल लगाकर होली की बधाई दी. लेकिन आप सोच रहे होंगे कि इसमें नई बात क्या है? अमूमन राजनेता होली के दिन एक दूसरे के घर जाते रहते हैं.
दोनों नेताओं के होली सेलिब्रेशन का वीडियो आया सामने: लेकिन पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत हरिद्वार से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजेपी के टिकट पर हरिद्वार से चुनावी मैदान में है. ऐसे में दोनों के बीच राजनीतिक जंग लोकसभा मतदान तक चलेगी. होली का जो वीडियो सामने आया है, उसमें हरीश रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत के यहां जाकर पहले तो बारी बारी से सबको रंग लगाते हैं. एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हैं और फिर अचानक कुछ ऐसा कैमरे में कैद हो जाता है जो सभी के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है.
भीड़ से अलग चर्चा के निकाले जा रहे सियासी मायने: दरअसल, हरीश रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत का हाथ पकड़कर भीड़ से अलग ले जाते हैं. दोनों नेता कई देर बातें करते दिखाई दिए. हरीश रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत को जिस वक्त भीड़ से अलग ले जाते दिख रहे हैं, उस वक्त किसी को भी उनके पास आने से रोक दिया जाता है. होली के दिन इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. राजनीति के जानकारी इस वीडियो को देखकर अपने-अपने स्तर से प्रतिक्रिया दे रहे हैं.
कैमरे के सामने नहीं छुपाते दोनों दोस्ती: वैसे त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरीश रावत की नजदीकियां यह कहें दोस्ताना कोई नया नहीं है. जब भी समय मिलता है दोनों एक दूसरे के पास पहुंच जाते हैं. साल 2018 में जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे, तब वो हरीश रावत की आम पार्टी में पहुंच गए थे. हरीश रावत का जन्मदिन हो या फिर त्रिवेंद्र सिंह रावत का जन्मदिन दोनों एक दूसरे के घर जाकर उन्हें बधाई देना नहीं भूलते हैं. साल 2024 में भी जनवरी महीने में हरीश रावत त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर पहुंचे थे और उन्हें पहाड़ी उत्पाद भेंट किए थे. साल 2020 में महामारी के दौरान हरीश रावत ने मुलाकात करके कई सूत्रीय ज्ञापन भी दिया था.अक्सर सार्वजनिक कार्यक्रम में दोनों नेता जहां भी मिलते हैं, कैमरे के सामने अपनी मुलाकातों को छुपाते नहीं है.
मुलाकात के राजनीतिक जानकार क्या निकाल रहे मायने: राजनीतिक जानकार आदेश त्यागी कहते हैं कि ऐसी बहुत सारी मुलाकातें होती हैं, जब पक्ष और सत्ता पक्ष के नेता आपस में मिलते हैं और होली के दिन एक दूसरे को रंग लगाना बनता है. लेकिन पूर्व सीएम हरीश रावत जैसे कद्दावर नेता जब पूर्व सीएम व हरिद्वार लोकसभा प्रत्याशी त्रिवेंद्र सिंह रावत के यहां जाते हैं और जब उनका बेटा उनके सामने प्रतिद्वंदी है, तो बड़ी बात है. अब इस मुलाकात में क्या बात हुई होगी यह तो दोनों नेता ही जानते हैं. लेकिन इतना जरूर है कि इस तरह की मुलाकातों और अलग से की गई बातों के जब वीडियो व फोटो बाहर आते हैं तो बीजेपी और कांग्रेस का कार्यकर्ता कंफ्यूज हो जाते हैं.
कार्यकर्ताओं का टूटता है मनोबल: कार्यकर्ता यही सोचता है कि आखिरकार वो जिस नेता की कमियों को लेकर वो जनता के बीच जाते हैं. लेकिन वरिष्ठ नेता ही इस तरह की मुलाकात करेंगे तो भला प्रतिद्वंदी होने का फायदा ही क्या? आदेश त्यागी कहते हैं कि कुछ ना कुछ बात तो है, क्योंकि वीरेंद्र रावत को एक दो गांव के लोग जानते होंगे, लेकिन हरिद्वार के लोग उनसे अनभिज्ञ हैं. बस उनकी पहचान यही है कि वह हरीश रावत के बेटे हैं. अब हरीश रावत अपने बेटे के बारे में जितनी मर्जी उपलब्धि गिनाए, लेकिन हकीकत यही है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत और वीरेंद्र रावत में जमीन आसमान का अंतर है.
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