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मेरठ का कुश्ती स्टेडियम है पहलवानों की फैक्ट्री, 25 बेटियां ला चुकी हैं अंतरराष्ट्रीय मेडल, बेटों ने भी बढ़ाया मान - Wrestling Stadium Meerut - WRESTLING STADIUM MEERUT

मेरठ का रुस्तम-ए-जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम (Wrestling Stadium Meerut) को पहलवानों की फैक्ट्री के नाम से भी लोग जानते हैं. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में स्थापित इस कुश्ती स्टेडियम से दांव पेंच सीखकर कई बेटों के साथ बेटियों ने भी कीर्तिमान स्थापित किए हैं. अब तक यहां की 25 बेटियां तो इंटरनेशनल मेडल भी ला चुकी हैं.

रुस्तम-ए-जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम में प्रशिक्षण लेते पहलवान.
रुस्तम-ए-जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम में प्रशिक्षण लेते पहलवान. (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 10, 2024, 4:38 PM IST

मेरठ के कुश्ती स्टेडियम की खूबियों पर स्पेशल रिपोर्ट. (Video Credit : ETV Bharat)

मेरठ : पहलवानी का नाम आते ही दारा सिंह का नाम जहन में आता है. ऐसे में मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के रुस्तम-ए- जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. यूपी वेस्ट के नामचीन रुस्तम-ए- जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम से पहलवानी सीखने वाली कई बेटियों और बेटों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है.

स्टेडियम में दांव पेंच आजमाते पहलवान.
स्टेडियम में दांव पेंच आजमाते पहलवान. (Photo Credit: ETV Bharat)

कोच डॉ. जबर सिंह बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय पहलवान सुशील कुमार इसी विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. काफी समय तक जब कुश्ती में देश मेडल की बाट जोह रहा था तो उस सूखे को यहां प्रशिक्षण लेने वाली बेटी अलका तोमर ने खत्म किया था. कुश्ती सीखने के लिए यहां आने वाली सबसे पहली बेटी अलका तोमर थी, लेकिन जब उसने अलग अलग प्रतियोगिताओं में एक के बाद एक मेडल जीते तो उसके बाद से फिर बेटियों को पहलवानी सिखाने के लिए लोग यहां आए. यह सिलसिला तब से अभी तक जारी है. यहां से दांव पेंच सीखकर अब तक 25 महिला पहलवान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं.

कोच से कुश्ती से टिप्स लेते प्रशिक्षु पहलवान.
कोच से कुश्ती से टिप्स लेते प्रशिक्षु पहलवान. (Photo Credit: ETV Bharat)


कोच जबर सिंह गर्व के मुताबिक ओलंपिक को छोड़कर दुनिया की सभी प्रतियोगिताओं में सारे मेडल अलका ने अपने नाम किए हैं. अलका तोमर ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में 39 साल पुराना रिकॉर्ड को तोड़ कर गोल्ड मेडल देश को दिलाया था. वहीं अब तो उसकी कई परिवार की और रिश्तेदारी की बेटियां भी अपने शानदार प्रदर्शन से बहुत कुछ पा चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय मेडल पाने वाली बेटियों के बारे में वह बताते हैं कि रुस्तम-ए-जमां दारा सिंह कुश्ती स्टडियम से पहलवानी के गुर सीखने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिन महिला पहलवानों ने भारत का मान बढ़ाया है. उनमें अलका तोमर के अलावा गार्गी यादव, इंदु तोमर, शीतल, दिव्या तोमर, निशा तोमर, अर्चना तोमर, इंदु चौधरी, रूबी चौधरी, पूजा तोमर, अंशु गुर्जर, जैस्मिन सोम, कविता गोस्वामी, बबीता गुर्जर, बबीता सिंह, दिव्या तोमर, वंशिका, मनु तोमर, रजनी चौधरी, दीक्षा, अंजू चौधरी, कीर्ति राजपूत, प्रियंका सिंह, अनुराधा तोमर शामिल हैं.



कोच जबर सिंह ने कहा कि देश का मान बढ़ाने वालों में रणविंदर सिंह, गुलाम साबिर और पहलवान गौरव शर्मा को सभी जानते ही हैं. वहीं यहां के आठ पहलवानों को तो समय समय पर सरकार अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित कर चुकी है. इनमें अनुज चौधरी, राजीव तोमर, अलका तोमर, सुमित पहलवान, सुशील कुमार, दिव्या काकरान और पहलवान नेहा राठी का नाम प्रमुख है. कोच जबर सिंह का दावा है कि देश में यह कुश्ती का अकेला ऐसा स्टेडियम है, जहां की 25 बेटियां इंटरनेशनल लेवल पर मेडल प्राप्त कर चुकी हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में एक साल से पहलवानी सीख रहे दीपांशु सिंह ने बताया कि उनको दारा सिंह की तरह बनना है. छह साल से पहलवानी सीख रहीं निकिता ने कहा कि देश के लिए ओलम्पिक गेम्स में मेडल लाना ही उनका सपना है. 13 साल से कुश्ती सीख रहीं पहलवान पूजा तोमर ने बताया कि वह इंटरनेशनल लेवल पर भी खेल चुकी हैं. नेशनल में भी तमाम मेडल पा चुकी हैं. खेल कोटे से ही पहलवानी के बल पर उनकी नौकरी लगी थी. अब देश के लिए मेडल लाना उनका सपना है.

यह भी पढ़ें : मेरठ का दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम, जो बन गया वेस्टर्न यूपी में रेसलर बनाने की फैक्ट्री

यह भी पढ़ें : मेरठ की इस नर्सरी में तैयार हो रहे पहलवान, दांव पेंच सीख रहीं बेटियां

मेरठ के कुश्ती स्टेडियम की खूबियों पर स्पेशल रिपोर्ट. (Video Credit : ETV Bharat)

मेरठ : पहलवानी का नाम आते ही दारा सिंह का नाम जहन में आता है. ऐसे में मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के रुस्तम-ए- जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. यूपी वेस्ट के नामचीन रुस्तम-ए- जमां दारा सिंह कुश्ती स्टेडियम से पहलवानी सीखने वाली कई बेटियों और बेटों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है.

स्टेडियम में दांव पेंच आजमाते पहलवान.
स्टेडियम में दांव पेंच आजमाते पहलवान. (Photo Credit: ETV Bharat)

कोच डॉ. जबर सिंह बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय पहलवान सुशील कुमार इसी विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं. काफी समय तक जब कुश्ती में देश मेडल की बाट जोह रहा था तो उस सूखे को यहां प्रशिक्षण लेने वाली बेटी अलका तोमर ने खत्म किया था. कुश्ती सीखने के लिए यहां आने वाली सबसे पहली बेटी अलका तोमर थी, लेकिन जब उसने अलग अलग प्रतियोगिताओं में एक के बाद एक मेडल जीते तो उसके बाद से फिर बेटियों को पहलवानी सिखाने के लिए लोग यहां आए. यह सिलसिला तब से अभी तक जारी है. यहां से दांव पेंच सीखकर अब तक 25 महिला पहलवान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं.

कोच से कुश्ती से टिप्स लेते प्रशिक्षु पहलवान.
कोच से कुश्ती से टिप्स लेते प्रशिक्षु पहलवान. (Photo Credit: ETV Bharat)


कोच जबर सिंह गर्व के मुताबिक ओलंपिक को छोड़कर दुनिया की सभी प्रतियोगिताओं में सारे मेडल अलका ने अपने नाम किए हैं. अलका तोमर ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में 39 साल पुराना रिकॉर्ड को तोड़ कर गोल्ड मेडल देश को दिलाया था. वहीं अब तो उसकी कई परिवार की और रिश्तेदारी की बेटियां भी अपने शानदार प्रदर्शन से बहुत कुछ पा चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय मेडल पाने वाली बेटियों के बारे में वह बताते हैं कि रुस्तम-ए-जमां दारा सिंह कुश्ती स्टडियम से पहलवानी के गुर सीखने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिन महिला पहलवानों ने भारत का मान बढ़ाया है. उनमें अलका तोमर के अलावा गार्गी यादव, इंदु तोमर, शीतल, दिव्या तोमर, निशा तोमर, अर्चना तोमर, इंदु चौधरी, रूबी चौधरी, पूजा तोमर, अंशु गुर्जर, जैस्मिन सोम, कविता गोस्वामी, बबीता गुर्जर, बबीता सिंह, दिव्या तोमर, वंशिका, मनु तोमर, रजनी चौधरी, दीक्षा, अंजू चौधरी, कीर्ति राजपूत, प्रियंका सिंह, अनुराधा तोमर शामिल हैं.



कोच जबर सिंह ने कहा कि देश का मान बढ़ाने वालों में रणविंदर सिंह, गुलाम साबिर और पहलवान गौरव शर्मा को सभी जानते ही हैं. वहीं यहां के आठ पहलवानों को तो समय समय पर सरकार अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित कर चुकी है. इनमें अनुज चौधरी, राजीव तोमर, अलका तोमर, सुमित पहलवान, सुशील कुमार, दिव्या काकरान और पहलवान नेहा राठी का नाम प्रमुख है. कोच जबर सिंह का दावा है कि देश में यह कुश्ती का अकेला ऐसा स्टेडियम है, जहां की 25 बेटियां इंटरनेशनल लेवल पर मेडल प्राप्त कर चुकी हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में एक साल से पहलवानी सीख रहे दीपांशु सिंह ने बताया कि उनको दारा सिंह की तरह बनना है. छह साल से पहलवानी सीख रहीं निकिता ने कहा कि देश के लिए ओलम्पिक गेम्स में मेडल लाना ही उनका सपना है. 13 साल से कुश्ती सीख रहीं पहलवान पूजा तोमर ने बताया कि वह इंटरनेशनल लेवल पर भी खेल चुकी हैं. नेशनल में भी तमाम मेडल पा चुकी हैं. खेल कोटे से ही पहलवानी के बल पर उनकी नौकरी लगी थी. अब देश के लिए मेडल लाना उनका सपना है.

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