मेरठ: खेलों के महाकुंभ ओलंपिक 2024 का आगाज आज पेरिस में होगा. अगले माह की 11 अगस्त तक विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी हैं, भारत के खिलाड़ी भी अपना दमखम दिखाएंगे. इसमें पश्चिमी यूपी के मेरठ से तीन बेटियां अलग-अलग खेल में भाग ले रही हैं.
आज हम बात करने जा रहे हैं गोल्डन गर्ल और उड़नपरी जैसे नामों से ख्याती पाने वाली पारुल चौधरी के बारे में. पारुल चौधरी पहली बार ओलंपिक में भाग ले रही हैं. एशियाई खेल 2022 में इकलौता गांव की बेटी पारुल ने 3000 मीटर स्टीपल चेज में रजत और 5000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर दो-दो मेडल देश के नाम किए थे.
पारुल के घर में एक खास कमरा है, जिसकी हर दीवार इस बेटी की कामयाबी की कहानी बयां करती है. गांव के स्कूल में हुई प्रतियोगिता से लेकर एशियाई गेम्स तक के सेंकड़ों प्रशस्ति पत्र मेडल और सम्मान इस कमरे में हर तरफ रखे हुए हैं.
पिता कृष्णपाल ने ईटीवी भारत को बताया कि उनकी बेटी ने बहुत मेहनत की है. पहली बार ओलम्पिक में गई है. उन्हें बेटी की मेहनत पर पूरा भरोसा है. वह देश के लिए मेडल लेकर आएगी.
पारुल के पिता कृष्णपाल ने बताया कि पारुल ने दौड़ने की शुरुआत गांव की चकरोड से की थी. तब उन्हें लगता था बेटी कुछ करना चाहती है. स्कूल में मेडल लेने के लिए दौड़ भाग कर रही है, लेकिन जब बेटी ने एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा मेडल मेहनत और लगन से खेलों में लाना शुरू किया तो उन्होंने भी बेटी का साथ दिया. गांव की पगडंडियों से शुरू हुआ पारुल के दौड़ने का सिलसिला एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल तक जाकर पहुंचा. कृष्णपाल कहते हैं कि सरकार भी खिलाड़ियों के लिए अब बहुत कुछ कर रही है.
कान्हा जी को अपने साथ लेकर बैठी पारुल चौधरी की मां राजेश देवी ने बताया कि उनकी बेटी पर उन्हें गर्व है. सभी को भरोसा है कि पारुल फिर एक बार देश के लिए मेडल लाएगी. बेटियों को अवसर देने चाहिए. बेटे बेटी में कोई फर्क न करें.
पारुल की मां कहती हैं कि हर खिलाड़ी मेहनत करता है और देश से जो भी बच्चे इन खेलों में प्रतिभाग करने गए हैं, वह उम्मीद करती हैं सभी बेटे बेटियां अपना बेहतर प्रदर्शन करेंगे और अपने देश का मान बढ़ाएंगे. उन्होंने कहा कि उनकी बेटी पर कान्हा जी कृपा रहेगी.
पारुल के भाई राहुल चौधरी ने बताया कि 28 जुलाई को पारुल पेरिस पहुंच जाएंगी. अभी वह देश के बाहर प्रेक्टिस कर रही हैं. महिला 3000 मीटर स्टीपल चेज राउंड 1 में 4 अगस्त को उनका गेम है. इस बार रक्षाबंधन के तोहफे में देश के लिए मेडल बहन देगी, ऐसी उम्मीद है. राहुल चौधरी ने बताया कि सभी उत्साहित हैं और सभी को पूरा भरोसा है.
बता दें कि जिन रास्तों से ईटीवी भारत की टीम पारुल के घर तक पहुंची वह रास्ते बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थे, जबकि एशियन गेम्स में मेडल लाने के बाद यह वादा मंत्री से लेकर प्रशासन तक ने किया था कि खिलाड़ियों के गांव तक की सड़कें दुरुस्त होंगी, सड़कें बनाई जाएंगी. पारुल के भाई राहुल चौधरी कहते हैं कि अभी तो ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन उम्मीद है सरकार ध्यान देगी.
पारुल की भाभी ने बताया कि वह उनके गेम के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं. उन्हें उम्मीद है फिर एक बार पारुल दीदी अपना सर्वश्रेष्ठ देंगी और गाजे बाजे के साथ उनका स्वागत होगा, सभी जश्न मनाएंगे. पारुल की भाभी पूजा का कहना है कि उन्हें गर्व है कि वो ऐसे घर की बहू हैं, जहां बेटियों को आगे बढ़ने की पूरी आजादी मिलती है. वे कहती हैं कि अपनी बेटी को भी वे आगे खेलों में भेजेंगी.
बता दें कि इसी वर्ष 27 जनवरी को पारुल चौधरी का डीएसपी बनने का सपना पूरा हो गया था. एशियन गेम्स में मेडल जीतने पर सीएम योगी ने प्रदेश सरकार की तरफ से धनवर्षा भी की थी. उड़नपरी पारुल चौधरी पर धनवर्षा के साथ सीएम योगी ने डिप्टी एसपी का नियुक्ति पत्र भी सौंपा था.
जनवरी माह में ही सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया था. वहीं, मेरठ की बेटी पारुल चौधरी को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
पारुल चौधरी के नाम मार्च में एक और उपलब्धि उस वक्त जुड़ गई थी, जब बिजनेस मैगजीन फोर्ब्स इंडिया की वार्षिक अंडर 30 की सूची में मेरठ की पारुल चौधरी को भी जगह दी गई थी.
पारुल के घर में बने खास कमरे में हर वो चेक सजा हुआ है जो उन्हें विभिन्न प्रीतियोगिताओं के दौरान प्रतीक के तौर पर दिया गया था. चार अंकों से लेकर तीन करोड़ रुपये राशि तक का चेक पारुल के कमरे की दीवार पर इस बेटी की कामयाबी की उड़ान के साक्षी हैं. पारुल के भतीजे ने मासूमियत से कहा कि उनकी बुआ फिर मेडल लाएंगी पूरी उम्मीद है और वह भी अपनी बुआ की तरह ही एक दिन बनना चाहते हैं.
पारुल चौधरी के चार भाई बहन हैं, जिनमें से वह तीसरे नंबर की हैं. पारुल ने यह सफलता ऐसे ही नहीं पाई इसके लिए उन्होंने खूब मेहनत की है. पारुल के पिता कृष्णपाल बताते हैं कि मेरठ के बेगम पुल से करीब 5 किलोमीटर की दूरी कैलाश प्रकाश स्टेडियम की है.
स्टेडियम तक भी आर्थिक दिक्कतों की वजह से उनकी बेटी पैदल ही जाया करती थी. उसके बाद जब शाम को लौटती थी तो पिता सिवाया टोल प्लाजा पर साइकिल लेकर खड़े इंतजार किया करते थे. उसके बाद भी पारुल पिता की साइकिल पर कभी कभार ही बैठतीं थी.
अधिकतर अपने सपनों को पूरा करने के लिए पिता की साइकिल के साथ दौड़ती दौड़ती पिता की साइकिल के आगे-आगे चलती थीं. पारुल के कोच गौरव त्यागी का कहना है पारुल में गजब की फुर्ती है और पारुल अपने आप को जरूर ही फिर एक बारे साबित करके देश के लिए पदक लाएंगी.
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