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दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड पॉलिसी से छात्रों को फायदा या नुकसान?, जानिए सब - DELHI MEDICAL COLLEGES BOND POLICY

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : 18 hours ago

Updated : 15 hours ago

Delhi Medical Students, Medical students benefit or lose from Bond policy: दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों को दिल्ली में एक साल की सेवा देनी होगी. छात्रों को दाखिला के दौरान 15-20 लाख रुपये का बॉन्ड भरना होगा. इस बॉन्ड पॉलिसी से छात्रों को फायदा या नुकसान, जानिए...

दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड पॉलिसी मामला
दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड पॉलिसी मामला (Etv Bharat)

नई दिल्ली: दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में अगले शैक्षणिक सत्र से यूजी और पीजी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को 15 से 20 लाख रुपये का बॉन्ड भरना होगा. इसके साथ ही उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक साल तक दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देनी होगी. उन्हें इस सेवा के लिए निर्धारित मानदेय भी मिलेगा. लेकिन, इस बॉन्ड पॉलिसी को लेकर कुछ मेडिकल छात्र असहमति जता रहे हैं, जबकि कुछ सहमति भी जाता रहे हैं.

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र हर्षवर्धन ने कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में पहले से ही डॉक्टरों की अच्छी संख्या है. मुझे नहीं लगता कि सरकार को इससे ज्यादा फायदा होगा. यहां के मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद अधिकतर छात्र यहां के अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए तैयार रहते हैं और सेवाएं देते भी हैं.

हर्षवर्धन ने आगे कहा कि बॉन्ड की नीति लागू करने से अब कहीं न कहीं दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने से मेडिकल छात्र बचेंगे. दिल्ली में अभी तक कोई बॉन्ड पॉलिसी लागू नहीं थी, इसलिए अधिक से अधिक मेडिकल छात्रों की पसंद दिल्ली के मेडिकल कॉलेज दाखिले के लिए होते थे. क्योंकि दिल्ली में पहले से ही बड़ी संख्या में सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर काम कर रहे हैं. इसलिए यहां बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत नहीं थी. बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत उन राज्य में होती है, जहां मेडिकल स्टूडेंट की संख्या कम होती है जहां सुविधाओं की कमी होती है.

काम करने का मिलेगा अनुभवः मौलाना एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा कीर्ति ने कहा कि यह बॉन्ड पॉलिसी पहले से लागू होती तो हमें भी इसका फायदा मिलता. यह बॉन्ड पॉलिसी अच्छा कदम है. इससे दिल्ली के अस्पतालों में काम करके अच्छा अनुभव मिलेगा. यहां मरीजों का ज्यादा लोड होता है. ऐसे में अनुभव लेने का ज्यादा मौका मिलता है. बस इस बॉन्ड का एक यही नुकसान है कि अगर कोई मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते तो उन्हें बॉन्ड के पैसे देने पड़ेंगे. अगले साल से यह पॉलिसी लागू होने से हमें या मौजूदा स्टूडेंट को इसका लाभ नहीं मिलेगा. बता दें कि दिल्ली के सरकारी अस्पताल में काम करने पर जूनियर रेजिडेंट को करीब 90 हजार रुपए मानदेय मिलता है.

बॉन्ड पॉलिसी से छात्रों को फायदा: डॉक्टर महेश वर्मा

बॉन्ड पॉलिसी को लेकर आईपी कॉलेज के कुलपति एवं मौलाना आजाद दंत चिकित्सा संस्थान के पूर्व निदेशक डॉक्टर महेश वर्मा ने कहा कि बंद पॉलिसी लागू होने से छात्रों को इससे फायदा होगा, उन्हें पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में नौकरी करने का मौका मिलेगा. इसके लिए उन्हें निर्धारित मानदेय भी दिया जाता है. आमतौर पर यह देखा जाता है पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर के पास नौकरी की कमी होती है. सरकार को यह नीति इसलिए लागू करनी पड़ रही है क्योंकि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं.

दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड पॉलिसी मामला (ETV BHARAT)

उन्होंने कहा कि बहुत से मरीजों के पास पैसे की कमी होती है उनके लिए प्राइवेट अस्पताल में इलाज करना संभव नहीं होता है तो ऐसे मरीजों की सेवा के लिए डॉक्टर का होना भी जरूरी है. वहीं, डॉक्टर का भी समाज के प्रत्येक दायित्व बनता है कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1 साल की सेवा सरकारी अस्पताल में दें, इससे उनका कोई नुकसान नहीं है. उनको मरीज का इलाज करने से एक अच्छा अनुभव मिलेगा. डॉक्टर महेश वर्मा ने कहा कि यह पॉलिसी लाना सरकार के लिए इसलिए जरूरी भी है की अस्पतालों में मरीजों को सुविधाएं मिलने में किसी भी तरह की परेशानी ना हो.

फोर्डा ने किया बॉन्ड पॉलिसी का विरोध: फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (फोर्डा) ने बंद पॉलिसी के आदेश को वापस लेने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को पत्र लिखा है. फोर्डा का कहना है कि दिल्ली में इस बॉन्ड नीति को लागू करने की कोई जरूरत नहीं है. दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टरों की पहले से ही संख्या काफी अच्छी है और यहां के मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद अधिकांश छात्र अस्पतालों में सेवाएं देते ही हैं. इसलिए बॉन्ड पॉलिसी को उनके ऊपर नहीं थोपा जाना चाहिए. इसको थोपने से कहीं ना कहीं मेडिकल स्टूडेंट के मन में एक बोझ सा रहेगा.

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नई दिल्ली: दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में अगले शैक्षणिक सत्र से यूजी और पीजी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को 15 से 20 लाख रुपये का बॉन्ड भरना होगा. इसके साथ ही उन्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक साल तक दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देनी होगी. उन्हें इस सेवा के लिए निर्धारित मानदेय भी मिलेगा. लेकिन, इस बॉन्ड पॉलिसी को लेकर कुछ मेडिकल छात्र असहमति जता रहे हैं, जबकि कुछ सहमति भी जाता रहे हैं.

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस तृतीय वर्ष के छात्र हर्षवर्धन ने कहा कि दिल्ली के अस्पतालों में पहले से ही डॉक्टरों की अच्छी संख्या है. मुझे नहीं लगता कि सरकार को इससे ज्यादा फायदा होगा. यहां के मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद अधिकतर छात्र यहां के अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए तैयार रहते हैं और सेवाएं देते भी हैं.

हर्षवर्धन ने आगे कहा कि बॉन्ड की नीति लागू करने से अब कहीं न कहीं दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने से मेडिकल छात्र बचेंगे. दिल्ली में अभी तक कोई बॉन्ड पॉलिसी लागू नहीं थी, इसलिए अधिक से अधिक मेडिकल छात्रों की पसंद दिल्ली के मेडिकल कॉलेज दाखिले के लिए होते थे. क्योंकि दिल्ली में पहले से ही बड़ी संख्या में सरकारी अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टर काम कर रहे हैं. इसलिए यहां बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत नहीं थी. बॉन्ड पॉलिसी की जरूरत उन राज्य में होती है, जहां मेडिकल स्टूडेंट की संख्या कम होती है जहां सुविधाओं की कमी होती है.

काम करने का मिलेगा अनुभवः मौलाना एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा कीर्ति ने कहा कि यह बॉन्ड पॉलिसी पहले से लागू होती तो हमें भी इसका फायदा मिलता. यह बॉन्ड पॉलिसी अच्छा कदम है. इससे दिल्ली के अस्पतालों में काम करके अच्छा अनुभव मिलेगा. यहां मरीजों का ज्यादा लोड होता है. ऐसे में अनुभव लेने का ज्यादा मौका मिलता है. बस इस बॉन्ड का एक यही नुकसान है कि अगर कोई मेडिकल स्टूडेंट पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में काम नहीं करना चाहते तो उन्हें बॉन्ड के पैसे देने पड़ेंगे. अगले साल से यह पॉलिसी लागू होने से हमें या मौजूदा स्टूडेंट को इसका लाभ नहीं मिलेगा. बता दें कि दिल्ली के सरकारी अस्पताल में काम करने पर जूनियर रेजिडेंट को करीब 90 हजार रुपए मानदेय मिलता है.

बॉन्ड पॉलिसी से छात्रों को फायदा: डॉक्टर महेश वर्मा

बॉन्ड पॉलिसी को लेकर आईपी कॉलेज के कुलपति एवं मौलाना आजाद दंत चिकित्सा संस्थान के पूर्व निदेशक डॉक्टर महेश वर्मा ने कहा कि बंद पॉलिसी लागू होने से छात्रों को इससे फायदा होगा, उन्हें पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में नौकरी करने का मौका मिलेगा. इसके लिए उन्हें निर्धारित मानदेय भी दिया जाता है. आमतौर पर यह देखा जाता है पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉक्टर के पास नौकरी की कमी होती है. सरकार को यह नीति इसलिए लागू करनी पड़ रही है क्योंकि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में बड़ी संख्या में मरीज आते हैं.

दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड पॉलिसी मामला (ETV BHARAT)

उन्होंने कहा कि बहुत से मरीजों के पास पैसे की कमी होती है उनके लिए प्राइवेट अस्पताल में इलाज करना संभव नहीं होता है तो ऐसे मरीजों की सेवा के लिए डॉक्टर का होना भी जरूरी है. वहीं, डॉक्टर का भी समाज के प्रत्येक दायित्व बनता है कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1 साल की सेवा सरकारी अस्पताल में दें, इससे उनका कोई नुकसान नहीं है. उनको मरीज का इलाज करने से एक अच्छा अनुभव मिलेगा. डॉक्टर महेश वर्मा ने कहा कि यह पॉलिसी लाना सरकार के लिए इसलिए जरूरी भी है की अस्पतालों में मरीजों को सुविधाएं मिलने में किसी भी तरह की परेशानी ना हो.

फोर्डा ने किया बॉन्ड पॉलिसी का विरोध: फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (फोर्डा) ने बंद पॉलिसी के आदेश को वापस लेने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को पत्र लिखा है. फोर्डा का कहना है कि दिल्ली में इस बॉन्ड नीति को लागू करने की कोई जरूरत नहीं है. दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टरों की पहले से ही संख्या काफी अच्छी है और यहां के मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद अधिकांश छात्र अस्पतालों में सेवाएं देते ही हैं. इसलिए बॉन्ड पॉलिसी को उनके ऊपर नहीं थोपा जाना चाहिए. इसको थोपने से कहीं ना कहीं मेडिकल स्टूडेंट के मन में एक बोझ सा रहेगा.

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