हल्द्वानी: कभी घरों के आंगन में चहचहाने वाली छोटी सी गौरैया चिड़िया अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. विलुप्त हो रही नन्ही सी गौरैया पक्षी को बचाने के लिए हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है. साल 2010 से हर साल गौरैया दिवस मनाते हुए लोग गौरैया को बचाने के लिए संकल्प लेते हैं. लेकिन ये नन्हीं सी पक्षी धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर है.
आज है विश्व गौरैया दिवस: विश्व गौरैया दिवस को पर्यावरण मित्र गौरैया के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इसके अलावा शहरी वातावरण में रहने वाले आम पक्षियों के प्रति जागरूकता लाने के लिए हर साल 20 मार्च को गौरैया दिवस दिन मनाया जाता है. जानकार बताते हैं कि इन नन्हीं सी चिड़ियों की विलुप्ति का कारण इंसान की बदलती जीवन शैली है.
विलुप्त हो रही हैं गौरैया: आपने बचपन में अक्सर घरों की मुंडेर और आंगन में चहचहाने और फुदकने वाली छोटी सी चिड़िया गौरैया को दाना चुगते देखा होगा. लेकिन अब यह नन्हीं सी चिड़िया धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. इसका मुख्य कारण शहरीकरण, रासायनिक प्रदूषण और रेडिएशन को माना जा रहा है. पिछले 15 सालों में गौरैया की संख्या में 70 से 80 फीसदी तक की कमी आई है.
ये हैं गौरैया के विलुप्त होने के कारण: पशु चिकित्सक और शोधकर्ता डॉ आरके पाठक के मुताबिक लगातार हो रहे शहरीकरण, पेड़ों के कटान और फसलों में रासायनिक का छिड़काव गौरैया पक्षियों की विलुप्ति का कारण बन रहा है. फसलों में पड़ने वाले कीटनाशक खतरनाक होते हैं. जब छोटी सी पक्षी इन फसलों के दानों को खाती है तो कीटनाशक का असर उसके विभिन्न अंगों पर पड़ता है, जिसके चलते गौरैया पक्षी की प्रजनन क्षमता में कमी आई है जो विलुति का मुख्य कारण बन रहा है.
प्रकृति में संतुलन बनाती हैं गौरैया: आपको बता दें कि गौरैया पक्षी का पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में भी बड़ा योगदान है. बदलते परिवेश में गौरैया पक्षी अब ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक देखने को नहीं मिल रही है. दुर्भाग्य की बात है कि इनकी तदादा धीरे-धीरे कम हो गई है. ऐसे में गौरैया दिवस पर इनके संरक्षण को लेकर कई कार्यक्रम कराए जाते हैं.
गौरैया को बचाने के लिए ये है जरूरी: आज विश्व गौरैया दिवस के मौके पर जगह-जगह गौरैया पक्षी को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. ऐसे में हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि इस नन्हीं सी चिड़िया को बचाने में अपना अहम योगदान दें और फसलों में पड़ने वाले पेस्टिसाइड की जगह पर ऑर्गेनिक खाद का प्रयोग करें, जिससे इंसान के साथ-साथ इन पक्षियों को भी बचाया जा सके.