रांची: वामपंथी विचारधारा वाली मार्क्सवादी समन्वय समिति यानी मासस राजनीतिक इतिहास से पन्नों में समा जाएगी. मासस ने भाकपा माले में विलय का प्रस्ताव दिया है. इस पर दोनों पार्टियों के केंद्रीय कमेटियों के प्रतिनिधिमंडल की वार्ता हुई है. विलय की प्रक्रिया पर अंतिम फैसला मासस की केंद्रीय कमेटी और भाकपा माले की पोलित ब्यूरो की बैठक में लिया जाएगा.
मासस और भाकपा माले के विलय के प्रस्ताव पर चर्चा के बाद दोनों संगठनों की ओर से संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है. मासस के महासचिव हलधर महतो और भाकपा माले के पोलित ब्यूरो सदस्य मनोज भक्त की ओर से बताया गया है कि कॉर्पोरेट लूट, अतिविकेंद्रीकरण और देश की बहुरंगी सांस्कृतिक-सामाजिक मूल्यों के खिलाफ संघी हमलों से देश जूझ रहा है. ऐसे में मासस का भाकपा माले के साथ विलय फासीवाद विरोधी आंदोलन को नई ताकत देगा. संयुक्त वक्तव्य में बताया गया कि दोनों दल एक ही दौर में उभरे हैं.
कॉमरेड एके राय के नेतृत्व में मासस ने कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण के लिए मजदूरों का नेतृत्व किया था. मजदूर आंदोलन और झारखंड आंदोलन को एक मंच पर लाया. वहीं भाकपा माले के प्रथम महासचिव कॉमरेड चारु मजूमदार ने 'जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है' को आगे बढ़ाया. उनके उसूलों पर चलते हुए विनोद मिश्र ने बिहार और वर्तमान झारखंड के मजदूरों, खेतिहर किसानों, दलित और आदिवासियों के संघर्षों को तेज किया. इस विलय से सार्वजिनिक क्षेत्रों के निजीकरण के खिलाफ और रोजगार के लिए आंदोलन को धार मिलेगी.
विलय के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, मासस के अरुप चटर्जी समेत कई नेता मौजूद थे. इस दौरान एक संयुक्त फोटोग्राफ भी जारी किया गया. झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले मासस के भाकपा माले में विलय की कवायद को काफी अहम माना जा रहा है. दरअसल, धनबाद के निरसा में मासस का अच्छा खासा प्रभाव रहा है. अरुप चटर्जी यहां से चुनाव जीत चुके हैं. दोनों वामपंथी दलों के एक होने पर इनकी ताकत और मजबूत होगी. जाहिर है कि इंडिया गठबंधन में शामिल भाकपा माले अब शीट शेयरिंग में और मजबूती से दखल दे पाएगा.
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