धनबाद: जिस ऐतिहासिक मैदान गोल्फ ग्राउंड में साल 1972 में शिबू सोरेन, एके राय और बिनोद बिहारी महतो ने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था. एक बार फिर से वह मैदान चर्चा में है. कारण है मार्क्सवादी चिंतक कामरेड एके राय जिन्हें राजनीतिक का संत कहा जाता है, उनकी पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का 9 सितंबर यानी आज भाकपा माले में विलय होने जा रहा है. इससे पहले एकता रैली कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान माले की ओर से भाजपा हटाओ-लूट हटाओ का नारा दिया गया.
दोनों पार्टियों के एक साथ आने से बढ़ेगी दावेदारी
बगोदर से भाकपा माले विधायक विनोद कुमार सिंह ने कहा कि झारखंड अलग होने के बाद राज्य के लिए 9 सितंबर का दिन ऐतिहासिक होगा. मासस के माले में विलय से मजदूर और आम लोगों के हौसले को एक उड़ान मिलेगी. दोनों पार्टियों के एक साथ मंच पर आने के बाद धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा जैसे इलाकों में लाल झंडा की दावेदारी एक बार फिर से बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने इस राज्य को और देश को सिर्फ लूटने का काम किया है. उन्हें भगाने के लिए यह विलय काफी महत्वपूर्ण है.
इन तीन सीटों पर महागठबंधन का असर
बता दें कि धनबाद के निरसा विधानसभा सीट पर मासस से अरूप चटर्जी के विधायक रह चुके हैं. अरूप चटर्जी यहां से हमेशा चुनाव लड़े हैं. हालांकि यहां वर्तमान में बीजेपी से अपर्णा सेन गुप्ता विधायक हैं. पिछले चुनाव में जेएमएम ने भी यहां से अपना प्रत्याशी उतारा था. वहीं, सिंदरी विधानसभा सीट पर मासस के पूर्व विधायक आनंद महतो भी चुनाव लड़ते आए हैं. इस बार बेटे बबलू महतो को चुनावी समर में उतारने की तैयारी चल रही है.
वहीं, गिरिडीह के राजधनवार सीट पर भाकपा माले से राजकुमार यादव चुनाव लड़ते आए हैं, जो पिछले चुनाव में हार गए. फिलहाल यहां बाबूलाल मरांडी बीजेपी से विधायक हैं. कुल मिलाकर बात करें तो इन तीन सीटों के लिए महागठबंधन को कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है. क्योंकि निरसा, राजधनवार और सिंदरी इन तीनों सीटों पर जेएमएम ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी दिया था, लेकिन तीनों पर जेएमएम को हार का सामना करना पड़ा था. क्योंकि निरसा और सिंदरी इन दो सीटों पर जेएमएम ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी दिया था.
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