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पश्चिमी यूपी में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग दे रही भाजपा को चुनौती - Lok Sabha Election

पश्चिमी यूपी में सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करके टिकट वितरण किया है. आइए जानते हैं, बसपा की रणनीति ने किसकी मुसीबत बढ़ा दी है. (Lok Sabha Election)

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 6, 2024, 4:04 PM IST

Updated : Apr 6, 2024, 9:56 PM IST

शादाब रिज़वी, राजनैतिक विश्लेषक

मेरठ: पश्चिमी यूपी में इस बार बहुजन समाज पार्टी के निर्णय से तमाम दल हैरान हैं. प्रत्याशियों के चयन से बसपा मुखिया मायावती ने न सिर्फ इंडिया गठबंधन को हैरान कर दिया है. बल्कि बीजेपी के सामने भी बड़ी चुनौती पेश कर दी है. बसपा सुप्रीमो ने यहां सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करके टिकट वितरण किया है. आईए जानते हैं, बसपा की रणनीति ने किसकी मुसीबत बढ़ा दी है.

AIMIM ने दिलचस्पी नहीं दिखाई
सियासी गलियारों में लगातार ऐसी चर्चाएं समय-समय पर होती रहती हैं कि जब एआईएमआईएम और बहुजन समाज पार्टी पर लोग बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाया करते हैं. लेकिन देखने वाली बात तो यह है कि इस बार जहां पहले और दूसरे चरण में AIMIM ने प्रत्याशी उतारने में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई. वहीं, बहुजन समाज पार्टी ने अलग-अलग लोकसभा सीटों पर जिस जिस वर्ग के प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. वह कहीं ना कहीं उस वर्ग से हैं, जो बीजेपी के साथ माने जाते हैं.

'जातिगत समीकरण चुनाव के परिणाम तय करेंगे'
अब जब पहले और दूसरे चरण के उम्मीदवार भी सामने आ चुके हैं, सियासी तस्वीर भी सामने है. बीएसपी ने पूरी रणनीति के तहत अपने प्रत्याशियों का चयन किया है, जो कि सभी का ध्यान अपनी और खींच रहा है. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि अगर मुस्लिम बाहुल्य कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो अन्य बसपा ने ज्यादातर सीटों पर जो कैंडिडेट उतारे हैं, वों बीजेपी के कोर वोटर माने जाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर बीएसपी के जो प्रत्याशी हैं, ये उम्मीदवार अपनी जाति के वोट लेने में सफल रहे, तब बीजेपी के लिए खतरा साबित हो सकते हैं, जिससे साफ है कि वेस्ट यूपी में जातिगत समीकरण ही चुनाव के परिणाम तय करेंगे.

2019 में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन
शादाब रिजवी ने कहा कि यह सर्वविदित है कि जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुआ था तो, वेस्ट यूपी की 14 सीटें बीजेपी जीती थी, लेकिन 2019 में जब सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था, तब नए जातीय समीकरण ने बीजेपी को चुनौती दे दी थी. यही वजह है कि गठबंधन ने एकजुटता से चुनाव लड़ा और बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, अमरोहा जैसी सीटें बीजेपी से जीत ली थीं. शादाब रिजवी ने कहा कि हालांकि, इस बार सपा और बसपा में गठबंधन नहीं है. वहीं, रालोद अब भाजपा के साथ है. वेस्ट यूपी में खासकर त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण, सैनी, कश्यप, प्रजापति, सेन आदि समाज को बीजेपी का कोर वोटर कहा जाता है. जबकि वेस्ट में रालोद को किसानों और जाटों की पार्टी कहा जाता है, ऐसे में जब रालोद और भाजपा एक साथ हैं तो, माना जा रहा है कि बीजेपी यहां अपनी पावर बढ़ाने की उम्मीद कर रही है.

अब अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी चयन से सियासी पंडित भी हैरान हैं. किसी भी पार्टी की सीधे तौर पर जीत के दावे को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं है. यानी लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी के सामने मज़बूत होकर खड़े होने का संदेश दिया है.

BSP को मुस्लिम पर ही भरोसा

अगर बात करें मेरठ लोकसभा सीट की तो यहां से बीएसपी ने पहली बार किसी त्यागी को मैदान में उतारा हैं, अबसे पहले हमेशा पार्टी ने जब ज़ब भी लोकसभा प्रत्याशी उतारा तो मुस्लिम पर ही भरोसा पार्टी जताती थीं. मेरठ में देवव्रत त्यागी बीएसपी के कैंडिडेट हैं. यहां पर त्यागी समाज को बीजेपी का कोर वोट माना जाता है, ऐसे में त्यागी दलित समीकरण बनने की स्थिति में बीजेपी को परेशानी हो सकती है. भाजपा से वैश्य वर्ग से आने वाले उम्मीदवार रामायण में श्रीराम का किरदार निभाने वाले कलाकार अरुण गोविल टिकट दिया हैं. जबकि सपा ने यहां से सुनीता वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है.


वहीं, बिजनौर से बसपा ने जाट प्रत्याशी पर दांव लगाया है. यहां से विजेंद्र सिंह को कैंडिडेट बनाया है. जबकि जाट वोट रालोद और बीजेपी का कोर वोट माना जा रहा है, लेकिन एसे में बीएसपी ने जाट, दलित समीकरण बनाने की भरपूर कोशिश यहां की है. भाजपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी चंदन चौहान मीरापुर से रालोद विधायक भी हैं उनपर रालोद ने यहां भरोसा जताया है.

BSP ने पश्चिमी यूपी में NDA के सामने खड़ी की चुनौती
इसी तरह कैराना लोकसभा सीट पर भी बीएसपी ने ठाकुर समाज के श्रीपाल राणा को टिकट दिया है जो कि क्षत्रिय समाज से हैं. ऐसे में बीएसपी कैंडिडेट बीजेपी कैंडिडेट की टेंशन बढ़ा रहा है. जबकि इस सीट पर सपा कांग्रेस गठबंधन ने हसन परिवार से इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है. इसी तरह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बसपा ने प्रजापति समाज से उम्मीदवार देकर भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को चुनोति दी है. जबकि इसी तरह बसपा ने गौतमबुद्ध नगर से भी ठाकुर प्रत्याशी देकर बीजेपी के प्रत्याशी महेश शर्मा के सामने चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि इस लोकसभा सीट पर बहुतायत में ठाकुर समाज के वोटर हैं. इसी तरह और भी कई सीटों पर बसपा ने पश्चिमी यूपी में अपने प्रत्याशी उतारकर NDA के सामने चुनौती खड़ी की है.

ये भी पढ़ेंः सपा ने मेरठ में तीसरी बार बदला प्रत्याशी, अतुल प्रधान का टिकट काटकर पूर्व मेयर संगीता वर्मा को बनाया उम्मीदवार - Lok Sabha Election 2024

ये भी पढ़ें: सपा विधायक अतुल प्रधान ने बताई मेरठ लोकसभा सीट से नामांकन के बाद टिकट कटने की पूरी कहानी - Lok Sabha Election

शादाब रिज़वी, राजनैतिक विश्लेषक

मेरठ: पश्चिमी यूपी में इस बार बहुजन समाज पार्टी के निर्णय से तमाम दल हैरान हैं. प्रत्याशियों के चयन से बसपा मुखिया मायावती ने न सिर्फ इंडिया गठबंधन को हैरान कर दिया है. बल्कि बीजेपी के सामने भी बड़ी चुनौती पेश कर दी है. बसपा सुप्रीमो ने यहां सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करके टिकट वितरण किया है. आईए जानते हैं, बसपा की रणनीति ने किसकी मुसीबत बढ़ा दी है.

AIMIM ने दिलचस्पी नहीं दिखाई
सियासी गलियारों में लगातार ऐसी चर्चाएं समय-समय पर होती रहती हैं कि जब एआईएमआईएम और बहुजन समाज पार्टी पर लोग बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगाया करते हैं. लेकिन देखने वाली बात तो यह है कि इस बार जहां पहले और दूसरे चरण में AIMIM ने प्रत्याशी उतारने में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई. वहीं, बहुजन समाज पार्टी ने अलग-अलग लोकसभा सीटों पर जिस जिस वर्ग के प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. वह कहीं ना कहीं उस वर्ग से हैं, जो बीजेपी के साथ माने जाते हैं.

'जातिगत समीकरण चुनाव के परिणाम तय करेंगे'
अब जब पहले और दूसरे चरण के उम्मीदवार भी सामने आ चुके हैं, सियासी तस्वीर भी सामने है. बीएसपी ने पूरी रणनीति के तहत अपने प्रत्याशियों का चयन किया है, जो कि सभी का ध्यान अपनी और खींच रहा है. इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक शादाब रिजवी कहते हैं कि अगर मुस्लिम बाहुल्य कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो अन्य बसपा ने ज्यादातर सीटों पर जो कैंडिडेट उतारे हैं, वों बीजेपी के कोर वोटर माने जाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर बीएसपी के जो प्रत्याशी हैं, ये उम्मीदवार अपनी जाति के वोट लेने में सफल रहे, तब बीजेपी के लिए खतरा साबित हो सकते हैं, जिससे साफ है कि वेस्ट यूपी में जातिगत समीकरण ही चुनाव के परिणाम तय करेंगे.

2019 में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन
शादाब रिजवी ने कहा कि यह सर्वविदित है कि जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुआ था तो, वेस्ट यूपी की 14 सीटें बीजेपी जीती थी, लेकिन 2019 में जब सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन था, तब नए जातीय समीकरण ने बीजेपी को चुनौती दे दी थी. यही वजह है कि गठबंधन ने एकजुटता से चुनाव लड़ा और बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, मुरादाबाद, संभल, रामपुर, अमरोहा जैसी सीटें बीजेपी से जीत ली थीं. शादाब रिजवी ने कहा कि हालांकि, इस बार सपा और बसपा में गठबंधन नहीं है. वहीं, रालोद अब भाजपा के साथ है. वेस्ट यूपी में खासकर त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण, सैनी, कश्यप, प्रजापति, सेन आदि समाज को बीजेपी का कोर वोटर कहा जाता है. जबकि वेस्ट में रालोद को किसानों और जाटों की पार्टी कहा जाता है, ऐसे में जब रालोद और भाजपा एक साथ हैं तो, माना जा रहा है कि बीजेपी यहां अपनी पावर बढ़ाने की उम्मीद कर रही है.

अब अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी चयन से सियासी पंडित भी हैरान हैं. किसी भी पार्टी की सीधे तौर पर जीत के दावे को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं है. यानी लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी के सामने मज़बूत होकर खड़े होने का संदेश दिया है.

BSP को मुस्लिम पर ही भरोसा

अगर बात करें मेरठ लोकसभा सीट की तो यहां से बीएसपी ने पहली बार किसी त्यागी को मैदान में उतारा हैं, अबसे पहले हमेशा पार्टी ने जब ज़ब भी लोकसभा प्रत्याशी उतारा तो मुस्लिम पर ही भरोसा पार्टी जताती थीं. मेरठ में देवव्रत त्यागी बीएसपी के कैंडिडेट हैं. यहां पर त्यागी समाज को बीजेपी का कोर वोट माना जाता है, ऐसे में त्यागी दलित समीकरण बनने की स्थिति में बीजेपी को परेशानी हो सकती है. भाजपा से वैश्य वर्ग से आने वाले उम्मीदवार रामायण में श्रीराम का किरदार निभाने वाले कलाकार अरुण गोविल टिकट दिया हैं. जबकि सपा ने यहां से सुनीता वर्मा को प्रत्याशी बनाया गया है.


वहीं, बिजनौर से बसपा ने जाट प्रत्याशी पर दांव लगाया है. यहां से विजेंद्र सिंह को कैंडिडेट बनाया है. जबकि जाट वोट रालोद और बीजेपी का कोर वोट माना जा रहा है, लेकिन एसे में बीएसपी ने जाट, दलित समीकरण बनाने की भरपूर कोशिश यहां की है. भाजपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी चंदन चौहान मीरापुर से रालोद विधायक भी हैं उनपर रालोद ने यहां भरोसा जताया है.

BSP ने पश्चिमी यूपी में NDA के सामने खड़ी की चुनौती
इसी तरह कैराना लोकसभा सीट पर भी बीएसपी ने ठाकुर समाज के श्रीपाल राणा को टिकट दिया है जो कि क्षत्रिय समाज से हैं. ऐसे में बीएसपी कैंडिडेट बीजेपी कैंडिडेट की टेंशन बढ़ा रहा है. जबकि इस सीट पर सपा कांग्रेस गठबंधन ने हसन परिवार से इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है. इसी तरह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर बसपा ने प्रजापति समाज से उम्मीदवार देकर भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान को चुनोति दी है. जबकि इसी तरह बसपा ने गौतमबुद्ध नगर से भी ठाकुर प्रत्याशी देकर बीजेपी के प्रत्याशी महेश शर्मा के सामने चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि इस लोकसभा सीट पर बहुतायत में ठाकुर समाज के वोटर हैं. इसी तरह और भी कई सीटों पर बसपा ने पश्चिमी यूपी में अपने प्रत्याशी उतारकर NDA के सामने चुनौती खड़ी की है.

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Last Updated : Apr 6, 2024, 9:56 PM IST
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