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अखंड सौभाग्य और वट सावित्री व्रत का गहरा संबंध, इस दिन ऐसे करिए वट वृक्ष की पूजा - Vat Savitri Vrat 2024 - VAT SAVITRI VRAT 2024

अखंड सौभाग्य के लिए सुहागिन महिलाएं वट सावित्रि व्रत करती हैं. इस दिन वट वृक्ष का खास महत्व होता है. हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि वट सावित्री व्रत और अखंड सुहाग का क्या संबंध है. क्यों इस व्रत के दिन वट वृक्ष को पूजा जाता है.

Vat Savitri Vrat 2024
वट सावित्रि व्रत 2024 (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : May 17, 2024, 10:29 PM IST

सुहागिन महिलाएं करती हैं वट सावित्रि व्रत (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

रायपुर: वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत भी रखती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से दांपत्य जीवन अच्छा रहता है. इस खास व्रत के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी से बातचीत की.

जानिए शुभ मुहूर्त: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि, "हिंदू पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इसके साथ ही वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के अलावा पूर्णिमा तिथि को भी रखा जाता है. अमावस्या तिथि 5 जून 2024 को शाम 5:54 से 6 जून को शाम 6:07 तक रहेगी. इस दिन दान करने का समय सुबह 11:52 से दोपहर 12:48 तक रहेगा. वहीं, अमावस्या काल में वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व होता है. ऐसे में सुहागिनें 6 जून को वट सावित्रि का व्रत रखेंगी."

वट सावित्रि व्रत की कथा: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने वट सावित्री व्रत की कथा में बारे में बताया. उन्होंने बताया कि, "राजा अश्वपति की कन्या का नाम सावित्री था. सावित्री का विवाह नहीं हो रहा था. राजा दुमतसेन के पुत्र सत्यवान से उनका विवाह हुआ और विवाह के बाद सत्यवान अल्पायु थे. सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए व्रत किया और व्रत के प्रभाव से सत्यवान जागृत हुए. उसे समय से इस वट सावित्री व्रत की शुरुआत हुई है."

ऐसे करें वट सावित्रि की पूजा: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा में वट वृक्ष का खास महत्व होता है. इसके लिए पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर. उस पर लक्ष्मी नारायण और भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें. पूजा स्थल पर तुलसी का पौधा रखें. सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा करें. इसके बाद बरगद के वृक्ष की पूजा करें. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल, धूप का प्रयोग करें. वस्त्र और कुछ धन अपनी सास को देकर आशीर्वाद प्राप्त करें. आखिरी में सावित्री सत्यवान की कथा का पाठ करें.

क्यों खास होता है वट वृक्ष: दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष बोध या फिर वैराग्य का प्रतीक है. ऐसा कहते हैं कि राजकुमार सिद्धार्थ इसी धारणा के तहत स्कूल छोड़कर बड़े एकेडमिक हुए और आगे चलकर उनका नाम हुआ. गौरी-गणेश की पूजा करके वट सावित्री की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद देवताओं की पूजा करके यथाशक्ति दान देना चाहिए. ऐसा करने से वट सावित्री व्रत सिद्ध होता है.

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सुहागिन महिलाएं करती हैं वट सावित्रि व्रत (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

रायपुर: वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्जला व्रत भी रखती हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से दांपत्य जीवन अच्छा रहता है. इस खास व्रत के बारे में जानने के लिए ईटीवी भारत ने पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी से बातचीत की.

जानिए शुभ मुहूर्त: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि, "हिंदू पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इसके साथ ही वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि के अलावा पूर्णिमा तिथि को भी रखा जाता है. अमावस्या तिथि 5 जून 2024 को शाम 5:54 से 6 जून को शाम 6:07 तक रहेगी. इस दिन दान करने का समय सुबह 11:52 से दोपहर 12:48 तक रहेगा. वहीं, अमावस्या काल में वट वृक्ष की पूजा का खास महत्व होता है. ऐसे में सुहागिनें 6 जून को वट सावित्रि का व्रत रखेंगी."

वट सावित्रि व्रत की कथा: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने वट सावित्री व्रत की कथा में बारे में बताया. उन्होंने बताया कि, "राजा अश्वपति की कन्या का नाम सावित्री था. सावित्री का विवाह नहीं हो रहा था. राजा दुमतसेन के पुत्र सत्यवान से उनका विवाह हुआ और विवाह के बाद सत्यवान अल्पायु थे. सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए व्रत किया और व्रत के प्रभाव से सत्यवान जागृत हुए. उसे समय से इस वट सावित्री व्रत की शुरुआत हुई है."

ऐसे करें वट सावित्रि की पूजा: पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार वट सावित्री व्रत की पूजा में वट वृक्ष का खास महत्व होता है. इसके लिए पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर. उस पर लक्ष्मी नारायण और भगवान शिव पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें. पूजा स्थल पर तुलसी का पौधा रखें. सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा करें. इसके बाद बरगद के वृक्ष की पूजा करें. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल, धूप का प्रयोग करें. वस्त्र और कुछ धन अपनी सास को देकर आशीर्वाद प्राप्त करें. आखिरी में सावित्री सत्यवान की कथा का पाठ करें.

क्यों खास होता है वट वृक्ष: दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष बोध या फिर वैराग्य का प्रतीक है. ऐसा कहते हैं कि राजकुमार सिद्धार्थ इसी धारणा के तहत स्कूल छोड़कर बड़े एकेडमिक हुए और आगे चलकर उनका नाम हुआ. गौरी-गणेश की पूजा करके वट सावित्री की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद देवताओं की पूजा करके यथाशक्ति दान देना चाहिए. ऐसा करने से वट सावित्री व्रत सिद्ध होता है.

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