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कैश कांड से लेकर माओवाद के लिए देशभर में चर्चित रहा है पलामू लोकसभा, माओवादी के टॉप कमांडर के बाद रिटायर्ड डीजीपी बने सांसद - पलामू लोकसभा

Palamu Lok Sabha seat. पलामू लोकसभी सीट अपने आप में अनूठा है. यहां की जनता ने कभी माओवादी तो कभी पुलिस के पूर्व आला अधिकारी को अपना सांसद चुना है. पलामू में बिहार और यूपी की राजनीति का प्रभाव है.

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Palamu Lok Sabha Seat
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 30, 2024, 3:26 PM IST

पलामूः झारखंड में 14 लोकसभा सीट है. इन लोकसभा सीटों में पलामू लोकसभा अंतिम पायदान 14वें नंबर पर है. पिछले दो दशक में पलामू लोकसभा सीट देशभर में कई बार चर्चा का केंद्र बना रहा. पलामू लोकसभा सीट कभी कैश कांड, कभी माओवाद तो कभी पुलिस के मुखिया के लिए चर्चित रहा है. पलामू लोकसभा सीट बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है.

पलामू के कुछ इलाकों में बिहार, जबकि कुछ इलाकों में उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रभाव साफ तौर पर दिखता है. करीब 22 लाख वोटरों वाले पलामू लोकसभा क्षेत्र में पलामू और गढ़वा जिला शामिल हैं, जो देश के आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल है. गढ़वा का इलाका उत्तरप्रदेश से सटा हुआ है, जबकि पलामू का इलाका बिहार से सटा हुआ है.

माओवाद का प्रभाव वाला इलाका है पलामू लोकसभा, जेल से चुनाव जीत गए थे कामेश्वर बैठाः पलामू लोकसभा क्षेत्र माओवाद के प्रभाव वाला इलाका रहा है. देश के संसदीय इतिहास में 2009 में पहली बार माओवादियों के टॉप कमांडर रहे व्यक्ति ने पलामू लोकसभा सीट से चुनाव में जीत दर्ज की थी. 2009 में कामेश्वर बैठा पलामू लोकसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीते थे. कामेश्वर बैठा माओवादियों के टॉप कमांडर रहे थे और उन पर दर्जनों बड़े नक्सली घटनाओं को अंजाम देने का आरोप था. कामेश्वर बैठा जेल से ही चुनाव जीते थे. शपथ ग्रहण के लिए जेल से ही गए थे. कामेश्वर बेटा मूल रूप से पलामू के बिश्रामपुर के रहने वाले हैं और दूसरी प्रयास उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता था. उन्होंने जेल से ही बतौर पलामू सांसद लंबा कार्यकाल बिताया था. कामेश्वर बैठा के चुनाव जीतने के बाद पलामू लोकसभा पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया था.

टॉप माओवादी के बाद पुलिस की सुप्रीमो बने पलामू के सांसदः वक्त के साथ पलामू में माओवादियों का प्रभाव भी कमजोर हो गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में माओवादी के बाद सीधे पुलिस के सुप्रीमो को पलामू के लोगों ने अपना सांसद चुना था. 2014 के आम चुनाव में भाजपा की टिकट पर झारखंड के पूर्व डीजीपी विष्णुदयाल राम पलामू लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी. 2019 में विष्णुदयाल राम लगातार दूसरी बार पलामू के सांसद चुने गए. पलामू के लोगों ने एक माओवादी के बाद एक पुलिस के मुखिया को अपना सांसद चुना था, जिसके बाद पलामू लोकसभा सीट एक बार फिर से पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया था.

सांसद का हुआ था स्टिंग, पलामू में हुआ था उपचुनावः 2005 में हुए एक स्ट्रिंग ऑपरेशन में देश भर के 11 सांसदों को घूस लेते हुए लोगों ने देखा था. उस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान भी पलामू लोकसभा चर्चा का केंद्र बन गया था. स्टिंग ऑपरेशन में पलामू के तत्कालीन सांसद मनोज कुमार भी फंस गए थे. मनोज कुमार राजद के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बने थे. तत्कालीन पलामू सांसद पर आरोप लगा था कि संसद में आवाज उठाने के लिए उन्होंने रिश्वत ली है. उस दौरान आरोपी सांसद की सदस्यता खत्म कर दी गई थी और पलामू लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था. उपचुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के घूरन राम विजय हुए थे और पलामू सांसद बने थे.

राजनीतिक मामलों के जानकारी सुरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि पलामू लोकसभा सीट अपने आप में अनूठा है, यही वजह है कि कभी माओवादी तो कभी पुलिस से रिटायर लोग सांसद बने हैं. यहां उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का प्रभाव है. इस इलाके में पिछले एक दशक में भाजपा का प्रभाव बढ़ा है. राष्ट्रीय जनता दल और बसपा के कैडर वोटर भी हैं.

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पलामूः झारखंड में 14 लोकसभा सीट है. इन लोकसभा सीटों में पलामू लोकसभा अंतिम पायदान 14वें नंबर पर है. पिछले दो दशक में पलामू लोकसभा सीट देशभर में कई बार चर्चा का केंद्र बना रहा. पलामू लोकसभा सीट कभी कैश कांड, कभी माओवाद तो कभी पुलिस के मुखिया के लिए चर्चित रहा है. पलामू लोकसभा सीट बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है.

पलामू के कुछ इलाकों में बिहार, जबकि कुछ इलाकों में उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रभाव साफ तौर पर दिखता है. करीब 22 लाख वोटरों वाले पलामू लोकसभा क्षेत्र में पलामू और गढ़वा जिला शामिल हैं, जो देश के आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल है. गढ़वा का इलाका उत्तरप्रदेश से सटा हुआ है, जबकि पलामू का इलाका बिहार से सटा हुआ है.

माओवाद का प्रभाव वाला इलाका है पलामू लोकसभा, जेल से चुनाव जीत गए थे कामेश्वर बैठाः पलामू लोकसभा क्षेत्र माओवाद के प्रभाव वाला इलाका रहा है. देश के संसदीय इतिहास में 2009 में पहली बार माओवादियों के टॉप कमांडर रहे व्यक्ति ने पलामू लोकसभा सीट से चुनाव में जीत दर्ज की थी. 2009 में कामेश्वर बैठा पलामू लोकसभा सीट से झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीते थे. कामेश्वर बैठा माओवादियों के टॉप कमांडर रहे थे और उन पर दर्जनों बड़े नक्सली घटनाओं को अंजाम देने का आरोप था. कामेश्वर बैठा जेल से ही चुनाव जीते थे. शपथ ग्रहण के लिए जेल से ही गए थे. कामेश्वर बेटा मूल रूप से पलामू के बिश्रामपुर के रहने वाले हैं और दूसरी प्रयास उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता था. उन्होंने जेल से ही बतौर पलामू सांसद लंबा कार्यकाल बिताया था. कामेश्वर बैठा के चुनाव जीतने के बाद पलामू लोकसभा पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया था.

टॉप माओवादी के बाद पुलिस की सुप्रीमो बने पलामू के सांसदः वक्त के साथ पलामू में माओवादियों का प्रभाव भी कमजोर हो गया. 2014 के लोकसभा चुनाव में माओवादी के बाद सीधे पुलिस के सुप्रीमो को पलामू के लोगों ने अपना सांसद चुना था. 2014 के आम चुनाव में भाजपा की टिकट पर झारखंड के पूर्व डीजीपी विष्णुदयाल राम पलामू लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी. 2019 में विष्णुदयाल राम लगातार दूसरी बार पलामू के सांसद चुने गए. पलामू के लोगों ने एक माओवादी के बाद एक पुलिस के मुखिया को अपना सांसद चुना था, जिसके बाद पलामू लोकसभा सीट एक बार फिर से पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन गया था.

सांसद का हुआ था स्टिंग, पलामू में हुआ था उपचुनावः 2005 में हुए एक स्ट्रिंग ऑपरेशन में देश भर के 11 सांसदों को घूस लेते हुए लोगों ने देखा था. उस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान भी पलामू लोकसभा चर्चा का केंद्र बन गया था. स्टिंग ऑपरेशन में पलामू के तत्कालीन सांसद मनोज कुमार भी फंस गए थे. मनोज कुमार राजद के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बने थे. तत्कालीन पलामू सांसद पर आरोप लगा था कि संसद में आवाज उठाने के लिए उन्होंने रिश्वत ली है. उस दौरान आरोपी सांसद की सदस्यता खत्म कर दी गई थी और पलामू लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था. उपचुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के घूरन राम विजय हुए थे और पलामू सांसद बने थे.

राजनीतिक मामलों के जानकारी सुरेंद्र प्रसाद बताते हैं कि पलामू लोकसभा सीट अपने आप में अनूठा है, यही वजह है कि कभी माओवादी तो कभी पुलिस से रिटायर लोग सांसद बने हैं. यहां उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का प्रभाव है. इस इलाके में पिछले एक दशक में भाजपा का प्रभाव बढ़ा है. राष्ट्रीय जनता दल और बसपा के कैडर वोटर भी हैं.

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