पूर्णिया : मनीष रंजन ने लाखों की नौकरी छोड़कर बिहार के पूर्णिया में हाउस ऑफ मैथिली नाम की लोकल ई-कॉमर्स कंपनी खोली. शुरूआत में उन्होंने स्ट्रगल किया लेकिन अब धीरे-धीरे यहां के महिलाओं के टैलेंट की वजह से इनका ब्रांड चल निकला है. अब 'हाउस ऑफ मैथिली' हैंडलूम के कपड़ों और फैन्सी डिजाइन की डिमांड देश-विदेश में होने लगी है.
महिलाओं को बनाया हुनरमंद : हाउस ऑफ मैथिली के फाउंडर मनीष ने बताया कि वो मुंबई में फैशन डिजाइनर थे. कोरोना के समय जब घर आए तो उन्होंने यहां के महिलाओँ का टैलेंट देखा तो उसको लेकर कुछ करने की ठानी. लेकिन महिलाओं को एक सेफ जोन देते हुए उनके हुनर के मुताबिक काम कराना भी एक चुनौती थी. सबसे बड़ी चुनौती महिलाओं को घर से निकालकर यहां लाने की थी.
हाउस ऑफ मैथिली को बनाया ब्रांड : जानकारी देते हुए हाउस ऑफ मैथिली के फाउंडर मनीष रंजन कहते हैं कि पूर्णिया में हाउस ऑफ मैथिली की शुरुआत स्थानीय महिलाओं को हुनरमंद और आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से की गई है. उन्होंने बताया कि वह पहले मुंबई में फैशन डिजाइनर का काम करते थे. उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर पूर्णिया की स्थानीय महिलाओं को रोजगार देने का संकल्प लिया और इसके बाद हाउस ऑफ मैथिली की शुरुआत की.
65 महिलाओं को दिया रोजगार : अब तक लगभग 65 से अधिक महिलाओं को रोजगार के साथ हुनरमंद बनाया जा चुका है. यहां सभी महिलाएं सिलाई मशीन, चरखा, और कलर पेंटिंग के सहारे अलग-अलग डिजाइन के फैन्सी कपड़े तैयार करती हैं. सभी महिलाओं के बने कपड़े पूरी तरह से गुणवत्तापूर्ण और आकर्षक होते हैं, जिस कारण लोग इन्हें देखते ही खरीद लेते हैं.
"इस कंपनी की शुरुआत मैने 2 महिलाओं के साथ मिलकर किया. आज हमारे कंपनी में 65 हुनरमंद महिलाएं काम कर रही हैं. करोड़ों रुपए का लेन-देन होने लगा है. यहां काम करने वाली महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी हैं. यहां की महिलाओं में टैलेंट भरा हुआ है. बस उसे तराशने की जरूरत है."- मनीष रंजन, फाउंडर, हाउस ऑफ मैथिली
विदेशों से भी आते हैं ऑर्डर : आज मनीष की हाउस ऑफ मैथिली एक अलग पहचान बना रही है. इनके यहां बने कपड़ों की डिमांड विदेशों में भी होने लगी है. पहला विदेशी ऑर्डर अमेरिका से आया था. पूर्णिया के महिलाओं की कारीगरी और गुणवत्ता को देखकर 15 लाख का ऑर्डर मिला. यहां न सिर्फ महिलाओं को काम दिया जाता है बल्कि उन्हे सिखाया भी जाता है. आज महिलाएं हुनर को सीखकर अपने पैरों पर खड़ी भी हो रही हैं.
"मैं हाउस वाइफ हूं. घर पर खाली पड़ी रहती थी. लेकिन मनीष जी की संस्था हाउस ऑफ मैथिली से जुड़कर अर्निंग भी कर रही हूं. अब पैसे खर्च करने के लिए मन मारकर नहीं रहना पड़ता. यहां बहुत कुछ सिखाया जाता है, पेटिंग, हैंडलूम चलाना, कढ़ाई सबकुछ. मैं चाहती हूं कि कंपनी ऐसे ही तरक्की करे और इससे ज्यादा से ज्यादा महिलाएं जुड़ें और सभी आगे बढ़ें."- दिव्या झा, हुनरमंद महिला
स्वावलंबी हुई महिलाएं : अब यहां काम करने वाली महिलाएं स्वावलंबी हो चुकी हैं और हुनर में माहिर हैं. स्किल डेवलप करके उन्हें इंपावर करने वाले मनीष के काम की सराहना अब हर जगह हो रही है. उन्होंने न सिर्फ खुद को ब्रांड बनाया बल्कि यहां की 65 महिलाओं के एक परिवारों की आजीविका का सहारा हैं. सबकी जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं.
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