लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के समय परिवार कल्याण विभाग के दो सीएमओ की हत्या में मुख्य शूटर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. परिवार कल्याण के सीएमओ विनोद आर्य और बीपी सिंह हत्याकांड में मुख्य शूटर आनंद प्रकाश तिवारी को उम्रकैद हुई है. वहीं, हत्याकांड में गिरफ्तार दो अन्य अरोपियो को संदेह के लाभ में कोर्ट ने बरी कर दिया.
बता दें कि अक्टूबर 2010 में लखनऊ के विकास नगर में रहने वाले परिवार कल्याण के सीएमओ विनोद आर्य की गोली मारकर हत्या की गई थी. इसके 6 महीने बाद 2 अप्रैल 2011 को गोमती नगर में परिवार कल्याण के दूसरे सीएमओ बीपी सिंह की हत्या कर दी गई थी.
बात 14 साल पुरानी है. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी अपनी सरकार के तीन वर्ष पूरे कर चुकी थी. यूपी के सबसे बड़े घोटाले NRHM का सामना कर रही थी, विपक्ष इसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाए हुई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती अफसरों पर कार्रवाई कर रही थी.
इन्हीं कार्रवाई और जांच के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया. यूपी की राजधानी लखनऊ में दो सीएमओ की हत्या कर दी गई. दोनों सीएमओ की हत्या का मुख्य साजिशकर्ता जिसे बनाया गया वह उस वक्त के बाहुबली व माफिया मुख्तार अंसारी का सबसे खास था.
उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज अपनी पीठ थपथपवाई. गिरफ्तार करने वाले पुलिस कर्मियों को इनाम दिए गए और सरकार ने इस हत्याकांड की आग को ठंडा करने की कोशिश भी की. लेकिन जिस यूपी पुलिस ने दोनों सीएमओ हत्याकांड के आरोपी को गिरफ्तार किया था, उसी यूपी पुलिस के नम्बर दो के अफसर ने उस आरोपी को बचाने के लिए अपनी सरकार से भी खिलाफत कर दी थी.
उस अफसर ने न सिर्फ माफिया को इन आरोपों से बरी करवाया बल्कि असली हत्यारों को जेल भी भेजा, जिसमें आनंद प्रकाश तिवारी भी शामिल था. हत्याकांड के आरोप में जेल भेजे जाने वाले उस माफिया का नाम अभय सिंह था, जो समाजवादी पार्टी के बागी विधायक हैं व उसे बचाने वाले अधिकारी थे तत्कालीन स्पेशल डीजी एटीएस/एसटीएफ बृजलाल जो बाद में डीजीपी बने और अब बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं.
CMO विनोद आर्य की हत्या से शुरू हुई थी साजिशों की कहानी: वर्ष 2010, राज्य में मायावती शासनकाल में 7 हजार करोड़ से भी अधिक का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) स्कैम चर्चा में आया था. स्कैम सामने आया तो मंत्रियों, विधायकों और अफसरों के बीच हड़कंप मच गया. बचने के लिए हर अफसर और नेता साजिशें रचने लगा. 27 अक्टूबर 2010 को सुबह लगभग साढ़े छह बजे लखनऊ में परिवार कल्याण विभाग के सीएमओ विनोद आर्य की विकासनगर सेक्टर 14 स्थित उनके घर के पास टहलते वक्त 2 अज्ञात अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी गई.
सुबह के वक्त हुए इस हत्याकांड ने लखनऊ में हड़कम मचा दिया. मायावती सरकार के सामने पहले से ही एनआरएचएम घोटाला मुश्किलें खड़ी कर रहा था, ऐसे में उसी विभाग के सीएमओ की हत्या बवाल मचाएगी यह लाजमी था. विपक्ष हंगामा शुरू करता है तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती लखनऊ पुलिस को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के निर्देश देती है.
अभय सिंह को बनाया गया CMO हत्याकांड का मुख्य आरोपी: पूर्व डीजीपी बृजलाल बताते है कि, जब यह हत्याकांड हुआ था उस वक्त वो स्पेशल डीजी एसटीएफ व एटीएस हुआ करते थे. सीएम मायावती ने डॉ. आर्या हत्याकांड के खुलासे के लिए सीधी जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी थी. ऐसे में वो खुद इस केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे. जांच के दौरान यह सामने आया कि, तत्कालीन परिवार कल्याण विभाग के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान एनआरएचएम में आए बजट का बंदरबांट कर चुके थे, जिसकी जानकारी जब डॉ. आर्या को हुई तो सचान से खर्च का ब्योरा मांगने लगे थे.
जिससे सचान काफी परेशान होने लगे थे और डॉ. आर्या की हत्या की साजिश रचने लगे. ब्रजलाल कहते हैं कि हालांकि इस बात का उनके पास कोई सबूत नहीं था बस महज तथ्य ही सामने आए थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती लगातार हत्यारों को पकड़ने को लेकर प्रेशर बना रही थी और वो शायद नहीं चाहती थी कि इस मामले में केंद्रीय एजेंसियां शामिल हों. क्योंकि, यदि सीबीआई इसमें शामिल होती तो जांच की आंच एनआरएचएम घोटाले तक पहुंचती.
यही वजह थी कि लखनऊ पुलिस ने प्रेसर में इस हत्याकांड में फर्जी खुलासा करने का फैसला किया और विजय दुबे, अजय मिश्रा, सुमित दीक्षित, अंशु दीक्षित व जेल में बंद माफिया अभय सिंह को आरोपी बनाया गया और सभी आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया. इसके अलावा सीतापुर के अपराधी सुधाकर पांडेय को फरार दिखा दिया गया. जिन लोगों को इस हत्याकांड का आरोपी बनाया गया, सभी हार्डकोर अपराधी थे.
फैजाबाद जेल में बंद अभय सिंह से लखनऊ में हुआ इंट्रोगेशन: ब्रजलाल बताते है कि, जब सीएमओ विनोद आर्या की हत्या हुई थी, तब अभय सिंह फैजाबाद जेल में एक 120B के मामलें में बंद थे. लखनऊ पुलिस ने अभय सिंह से हत्याकांड को लेकर पूछताछ करने के लिए रिमांड में लिया. अभय सिंह को लखनऊ लाकर अलीगंज थाने में रखा गया और सख्ती से इंट्रोगेशन शुरू किया गया हालांकि परिणाम शून्य ही रहा. जिसके बाद रिमांड खत्म होने पर अभय सिंह को वापस फैजाबाद जेल भेज दिया गया. पुलिस के अनुसार, अभय सिंह ने डॉ. आर्य की हत्या के लिए अजय व विजय को 5 लाख सुपारी दी थी. हालांकि अभय सिंह ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.
स्पेशल DG ने अभय सिंह को आरोपी बनाये जाने का किया विरोध: ब्रजलाल के मुताबिक, वो खुद इस हत्याकांड की जांच कर रहे थे और उन्होंने अपनी जांच में अभय सिंह का किसी भी प्रकार का इस हत्याकांड में हाथ होना नहीx पाया था. ऐसे में वो नहीं चाहते थे कि अभय सिंह इस हत्या के मामलें में आरोपी बने. ऐसे में उन्होंने तत्कालीन कैबिनट सचिव शशांक शेखर के सामने इसका विरोध किया और कहा कि अभय सिंह का नाम इस हत्याकांड के मामले में न रखें.
ब्रजलाल ने कैबिनेट सचिव से कहा कि, ये सही है कि गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी कुख्यात अपराधी हों लेकिन इस हत्याकांड से उनका लेना देना नहीं है. यदि असली अपराधियों को नहीं पकड़ा गया तो हो सकता है की इससे बड़ी कोई घटना घट जाए. बृजलाल बताते हैं कि, उस वक्त आर्या हत्याकांड केस से जुड़े सभी फैसले शासन स्तर पर लिए जा रहे थे, ऐसे में उनकी इस बात को अनसुना कर दिया गया था.
एक और सीएमओ की हत्या की रची जाने लगी साजिश: ब्रजलाल के मुताबिक, जिन्हे आर्या हत्याकांड का आरोपी बनाया गया था, उसमें सुधाकर पांडेय छोड़ सभी जेल में बंद थे. इसी बीच छह माह बाद राजधानी में एक बार फिर से गोलियों की तड़तड़ाहट ने सभी को हिला कर रख दिया. ब्रजलाल के मुताबिक, डॉ. आर्य की हत्या के डॉ. वाईएस सचान को लगा कि अब कोई परिवार कल्याण विभाग में सीएमओ पोस्ट नहीं होगा और अगर होता भी है तो उसके काम में दखल नहीं देगा. लेकिन हुआ कुछ और ही और डॉ. बीपी सिंह को विनोद आर्या के पद स्थान पर तैनाती मिल गयी. बीपी सिंह भी डॉ. आर्या की ही तरह सचान से एनआरएचएम में आये बजट के खर्च का ब्योरा मांगने लगे, इतना ही नहीं न देने पर उन पर कार्रवाई करने की धमकी देने लगे.
बीपी सिंह की हत्या ने अभय सिंह का बचने का रास्ता हुआ साफ: 2 अप्रैल 2011 को इतिहास फिर से दोहराया गया. वक्त भी वही था, हत्या करने का तरीका भी आर्या हत्याकांड जैसा ही और शिकार भी उसी पद में आसीन डॉ. बीपी सिंह. सुबह गोमतीनगर स्थित विशेष खंड में सुबह 6:15 पर टहल रहे थे. उसी समय फिर दो शूटर आए. एक के बाद एक 13 गोलियां बरसाईं और बीपी सिंह की हत्या कर फरार हो गए. ब्रजलाल के मुताबिक, आर्या और बीपी सिंह के हत्याकांड में कई समानताएं थीं. बैलस्टिक रिपोर्ट के अनुसार दोनों हत्या में इस्तेमाल हुए दो असलहे एक ही थे.
शूटर आनंद प्रकाश तिवारी को आलाकत्ल के साथ किया गया गिरफ्तार: ब्रजलाल के मुताबिक, बीपी सिंह हत्याकांड के बाद यूपी एसटीएफ के तत्कालीन एसएसपी विजय प्रकाश ने 17 जून 2011 को बस्ती के दो शूटर आनंद तिवारी व विनोद शर्मा को हत्या में इस्तमाल हुए असलहों के साथ गिरफ्तार किया. इतना ही नहीं उनसे पूछताछ के बाद सचान के करीबी ठेकेदार आर के वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद इस पूरे हत्याकांड से पर्दा उठा और पता चला कि डॉ. सचान ने ही अपने करीबी ठेकेदार आरके वर्मा के साथ मिल कर दोनों सीएमओ की हत्या करवाई थी.
STF-ATS चीफ ने हाई लेवल बैठक में करवाया अभय की रिहाई फैसला: ब्रजलाल के मुताबिक, डॉ. बीपी सिंह के हत्यारों व साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी से यह तो साफ हो गया था कि दोनों ही हत्याएं सचान व ठेकेदार आरके वर्मा ने ही करवाई थी. ऐसे में अभय सिंह समेत अन्य उन लोगों को जेल में नहीं रहना चाहिए था, जिन्हें डॉ. आर्य की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से हाई लेवल बैठक बुलाई जिसमें कैबिनट सचिव शशांक शेखर, प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, एडीजी इंटीलेजेंस व ब्रजलाल खुद मौजूद थे, उसमें मुद्दा उठाते हुए मांग की थी कि उन सभी निर्दोषों को छोड़ देना चाहिए, खासकर अभय सिंह को जो 6 महीने से इस मामले में जेल में है.
169 CRPC का इस्तमाल कर किया गया रिहा: ब्रजलाल ने बताया कि, उनकी मांग सुन बैठक में मौजूद एक अफसर ने कहा कि अभय सिंह मुख्तार अंसारी के गैंग का है और विपक्षी दल से उसके सम्बंध हैं. ब्रजलाल ने यह सुन कहा कि ये एक अच्छा संदेश जाएगा कि निर्दोष पाए जाने पर इस सरकार ने विपक्ष के नेता को भी छोड़ दिया. जिसके बाद 169 सीआरपीसी का प्रयोग कर अभय सिंह को इस मामले से मुक्त किया गया. इसी के बाद अभय को जेल से रिहा किया गया.
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