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Maharaja Surajmal Jayanti : हारे हुए मराठाओं को दी थी शरण, कभी मांसाहार का नहीं किया सेवन

भरतपुर के अजेय महाराजा सूरजमल की आज 317वीं जयंती है. महाराजा सूरजमल सांप्रदायिक एकता व शरणागत वत्सल के अनूठे उदाहरण थे. उन्होंने जीवनकाल में लड़े गए सभी 80 युद्ध जीते थे. देखिए ये खास रिपोर्ट...

Maharaja Surajmal
राजस्थान का एक अजेय महायोद्धा
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 13, 2024, 1:22 PM IST

भरतपुर. वीरता और पराक्रम के लिए दुनिया भर में पहचाने जाने वाले महाराजा सूरजमल सांप्रदायिक समन्वय के युग पुरुष थे. देश की समृद्धि और सुखद भविष्य के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता के वे बड़े समर्थक थे. महाराजा सूरजमल ने जहां मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से पराजित होकर आए हजारों मराठा सैनिकों को अतिथि सत्कार के साथ शरण दी, वहीं पेशवा बाजीराव की मुस्लिम पत्नी के घायल पुत्र की मृत्यु होने पर उसकी कब्र बनाई. साथ ही उस पर एक मस्जिद का भी निर्माण कराया. उस महान योद्धा का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज उन साम्प्रदायिक सद्भाव की प्रतिमूर्ति की 317वीं जयंती है.

पराजित मराठाओं को दी थी शरण : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा बताता हैं कि 14 मई 1761 ई. के पानीपत युद्ध में मराठा मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से बुरी तरह पराजित हो गए. करीब 40 हजार घायल मराठा सैनिक भरतपुर रियासत में पहुंचे, जिन्हें महाराजा सूरजमल ने 10 दिन तक अपने किले में शरण दी. इतना ही नहीं, घायलों के उपचार और अतिथियों पर लाखों रुपए भी महाराजा ने खर्च किए. स्वस्थ होने पर सभी सैनिकों को उन्होंने सकुशल विदा किया. महाराजा सूरजमल मराठाओं को शरण देते समय अब्दाली की शत्रुता से भी नहीं डरे थे.

Maharaja Surajmal
जानिए महाराजा सूरजमल के बारे में

बनवाई थी कब्र और मस्जिद : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि पेशवा बाजीराव की मुस्लिम प्रेमिका का बेटा शमशेर बहादुर घायल अवस्था में कुम्हेर किले में पहुंचा था. महाराजा सूरजमल ने उसकी देखभाल व उपचार कराया, लेकिन वो जीवित नहीं बचा. शमशेर बहादुर की मौत होने पर महाराजा सूरजमल ने उसका मुस्लिम रीति-रिवाज से अंतिम क्रिया की. उसे कब्र में दफनाया और उस पर एक मस्जिद का निर्माण भी कराया, जो कि सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण है.

इसे भी पढ़ें : बृज विश्वविद्यालय में लगी महाराजा सूरजमल की अब तक की सबसे ऊंची प्रतिमा, ये है खासियत

इन खासियतों के धनी थे महाराजा सूरजमल : इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल का जन्म राजा बदन सिंह की रानी देवकी के गर्भ से 13 फरवरी 1707 को डीग के महलों में हुआ. महाराजा सूरजमल वीर पराक्रमी राजा थे. उनका कद काठी बहुत मजबूत थी. साढ़े 7 फीट ऊंचाई वाले महाराजा सूरजमल दोनों हाथों से तलवार चलाने में माहिर थे. बताते हैं कि हर दिन महाराजा सूरजमल 5 किलो दूध और आधा किलो घी का सेवन करते थे. शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी भोजन करते थे.

उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी मांसाहार का सेवन नहीं किया. महाराजा सूरजमल भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे. उन्होंने जीवन काल में कुल 80 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारे. महाराजा सूरजमल की 317 वी जयंती के अवसर पर मंगलवार को लोहागढ़ किले में स्थित महाराजा सूरजमल स्मारक पर शहरवासियों ने पुष्पांजलि अर्पित की.

भरतपुर. वीरता और पराक्रम के लिए दुनिया भर में पहचाने जाने वाले महाराजा सूरजमल सांप्रदायिक समन्वय के युग पुरुष थे. देश की समृद्धि और सुखद भविष्य के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता के वे बड़े समर्थक थे. महाराजा सूरजमल ने जहां मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से पराजित होकर आए हजारों मराठा सैनिकों को अतिथि सत्कार के साथ शरण दी, वहीं पेशवा बाजीराव की मुस्लिम पत्नी के घायल पुत्र की मृत्यु होने पर उसकी कब्र बनाई. साथ ही उस पर एक मस्जिद का भी निर्माण कराया. उस महान योद्धा का जिक्र आज हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज उन साम्प्रदायिक सद्भाव की प्रतिमूर्ति की 317वीं जयंती है.

पराजित मराठाओं को दी थी शरण : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा बताता हैं कि 14 मई 1761 ई. के पानीपत युद्ध में मराठा मुस्लिम आक्रांता अहमद शाह अब्दाली से बुरी तरह पराजित हो गए. करीब 40 हजार घायल मराठा सैनिक भरतपुर रियासत में पहुंचे, जिन्हें महाराजा सूरजमल ने 10 दिन तक अपने किले में शरण दी. इतना ही नहीं, घायलों के उपचार और अतिथियों पर लाखों रुपए भी महाराजा ने खर्च किए. स्वस्थ होने पर सभी सैनिकों को उन्होंने सकुशल विदा किया. महाराजा सूरजमल मराठाओं को शरण देते समय अब्दाली की शत्रुता से भी नहीं डरे थे.

Maharaja Surajmal
जानिए महाराजा सूरजमल के बारे में

बनवाई थी कब्र और मस्जिद : इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि पेशवा बाजीराव की मुस्लिम प्रेमिका का बेटा शमशेर बहादुर घायल अवस्था में कुम्हेर किले में पहुंचा था. महाराजा सूरजमल ने उसकी देखभाल व उपचार कराया, लेकिन वो जीवित नहीं बचा. शमशेर बहादुर की मौत होने पर महाराजा सूरजमल ने उसका मुस्लिम रीति-रिवाज से अंतिम क्रिया की. उसे कब्र में दफनाया और उस पर एक मस्जिद का निर्माण भी कराया, जो कि सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण है.

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इन खासियतों के धनी थे महाराजा सूरजमल : इतिहासकार रामवीर वर्मा ने बताया कि महाराजा सूरजमल का जन्म राजा बदन सिंह की रानी देवकी के गर्भ से 13 फरवरी 1707 को डीग के महलों में हुआ. महाराजा सूरजमल वीर पराक्रमी राजा थे. उनका कद काठी बहुत मजबूत थी. साढ़े 7 फीट ऊंचाई वाले महाराजा सूरजमल दोनों हाथों से तलवार चलाने में माहिर थे. बताते हैं कि हर दिन महाराजा सूरजमल 5 किलो दूध और आधा किलो घी का सेवन करते थे. शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी भोजन करते थे.

उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी मांसाहार का सेवन नहीं किया. महाराजा सूरजमल भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे. उन्होंने जीवन काल में कुल 80 युद्ध लड़े और एक भी युद्ध नहीं हारे. महाराजा सूरजमल की 317 वी जयंती के अवसर पर मंगलवार को लोहागढ़ किले में स्थित महाराजा सूरजमल स्मारक पर शहरवासियों ने पुष्पांजलि अर्पित की.

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