प्रयागराज: धर्म और आस्था की नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी को महाकुंभ का पहला स्नान पर्व पौष पूर्णिमा का होगा. उससे पहले सभी अखाड़े महाकुंभ मेला में बने शिविर में प्रवेश कर लेंगे. अखाड़ों के शिविर में छावनी प्रवेश शोभायात्रा के जरिये अखाड़े मेला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. गुरुवार को श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. इसमें हाथी, घोड़ों के साथ ऊंट और रथ पर सवार होकर अखाड़ों के संत शामिल हुए हैं.
संगम की रेती पर 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ मेले की शुरुआत होनी है. महाकुंभ मेले में लगातार अखाड़ों का छावनी में प्रवेश हो रहा है. इसी कड़ी में सन्यासी परंपरा के प्रमुख अखाड़ों में से एक श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा की तरफ से गुरुवार को छावनी प्रवेश शोभायात्रा निकाली गयी. श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा की छावनी प्रवेश शोभा यात्रा गुरुवार को बड़े ही धूमधाम के साथ मेला क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी है.
श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की छावनी प्रवेश शोभायात्रा में सबसे आगे अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी चल रहे थे. उसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विसोकानंद भारती रथ पर सवार होकर जा रहे थे. उनके आगे नागाओं की सेना चल रही थी, जो रास्ते भर युद्ध कौशल की कला का प्रदर्शन कर रहे थे. श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई में हाथी, घोड़े और ऊंट पर बैठे नागा संन्यासियों की सेना बैंड बाजे के साथ राजसी अंदाज में मेला छावनी में प्रवेश किया.
राजसी अंदाज में निकाली गयी अखाड़े की शोभायात्रा: श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा गुरुवार को राजसी ठाट बाट के साथ शान से अखाड़े से निकलकर मेला क्षेत्र में निकल चुकी है. छावनी प्रवेश शोभा यात्रा में मौजूद संत महात्मा शाही रथों पर सवार होकर जहां लोगों को दर्शन दे रहे थे. वहीं रास्ते में सड़क किनारे खड़े लोग नागाओं और साधु संतों महंतों पर पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत करते हुए उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे.
छावनी प्रवेश यात्रा में चांदी के सिंहासन पर अखाड़े के इष्टदेव भगवान विष्णु के अवतार कपिल मुनि महाराज की मूर्ति चल रही थी. इसके आगे शीश झुकाकर अखाड़े के संत महंत और सन्यासी भी आशीष मांग रहे हैं. पेशवाई में बड़ी संख्या में नागा संन्यासी भी अस्त्र शस्त्र चलाने की कला का प्रदर्शन कर रहे थे. इस शोभायात्रा में काशी से आए ब्राह्मण डमरू बजा कर यात्रा की शोभा बढ़ा रहे थे. वहीं, महिलाएं भी कलश लेकर यात्रा में आगे-आगे चल रही थीं.
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