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महाकुंभ 2025; NGT ने गंगा की वर्तमान स्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत न करने पर जताई नाराजगी, पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव को किया तलब - MAHAKUMBH 2025

Mahakumbh 2025 : वाराणसी को लेकर 2021 व प्रयागराज को लेकर एनजीटी ने 2022 में पारित किया था आदेश.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 29, 2024, 5:54 PM IST

वाराणसी : प्रयागराज और वाराणसी में कुंभ से पहले गंगा की वर्तमान स्थिति को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में सुनवाई चल रही है. शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रयागराज में गंगा की वर्तमान स्थिति को लेकर रिपोर्ट फाइल न किए जाने पर एनजीटी ने कड़ी नाराजगी जताई है. एनजीटी ने नाराजगी जताते हुए 9 दिसंबर को वन और पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव को ही तलब कर लिया है. एनजीटी के तीन जजों की बेंच ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कुंभ से पहले गंगा की वर्तमान स्थिति क्या है, यह जानना बेहद आवश्यक है. खासतौर पर प्रयागराज और वाराणसी जहां पर लाखों लोग आस्था के साथ पहुंचेंगे.

एडवोकेट सौरभ तिवारी ने दी जानकारी (Video credit: ETV Bharat)

इस मामले में सीनियर एडवोकेट सौरभ तिवारी ने याचिका दायर की है. याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी कोर्ट ने शुक्रवार को यह बातें कहीं हैं. एनजीटी ने मुख्य सचिव, उप्र सरकार की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा प्रयागराज में गंगा जल की शुद्धता को लेकर रिपोर्ट नहीं जमा करने पर गहरी नाराजगी प्रकट की है. एनजीटी ने प्रधान/प्रमुख सचिव, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, उप्र सरकार को 9 दिसंबर को उपस्थित होने का आदेश दिया है.


एनजीटी ने मौखिक टिप्पणी करते हुए सरकार के अधिवक्ता से कहा कि 'जब दो महीने में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी रिपोर्ट नहीं जमा कर पा रही है, तब महाकुंभ के पहले कमेटी कैसे कार्रवाई करेगी? कमेटी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी बैठकें कर सकती थी. एनजीटी की पीठ ने कहा कि हमने 23 सितंबर को आदेश पारित किया, लेकिन उच्च स्तरीय कमेटी ने 7 नवंबर से काम करना शुरू किया. एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि यह गंभीर मसला है. मेले में करोड़ों लोग आते हैं, अगर सीवेज के मल-जल को गंगा में गिरने से नहीं रोका गया तो लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा.

उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि कल रात हमें पत्र मिला, जिसमें उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट के लिए समय की मांग की गई है. सरकार के वकील ने कहा कि मुख्य सचिव, उप्र सरकार की रिपोर्ट पर बस हस्ताक्षर की जरूरत है, जिस पर एनजीटी ने कहा कि हस्ताक्षर करना तो 20 से 30 सेकेंड का काम है. एनजीटी ने कहा कि हम और समय नहीं दे सकते. 9 दिसंबर की तारीख लगा रहे हैं. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव को उपस्थित होना होगा. एनजीटी ने कहा कि समय की मांग के लिए ट्रिब्यूनल को कोई भी आवेदन पत्र नहीं भेजा गया. एनजीटी ने सरकार के वकील से कहा कि उच्च स्तरीय कमेटी के सदस्यों के बजाय कोई अन्य अधिकारी ने समय की मांग के लिए पत्र भेजा है. एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता से कहा कि आपकी कार्यशैली से इस ट्रिब्यूनल और जनता में क्या संदेश जाएगा.

एनजीटी की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वाराणसी और प्रयागराज दो ऐसी जगह हैं, जहां देशभर के तीर्थयात्री आते हैं. कम से कम इन दो जगहों के गंगा जल की शुद्धता को लेकर कार्य करिए. वाराणसी को लेकर 2021 में व प्रयागराज को लेकर एनजीटी ने 2022 में आदेश पारित किया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी ने एनजीटी के 1 जुलाई के आदेश की तरफ इशारा करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता से कहा कि देखिए, उक्त आदेश के पैराग्राफ संख्या 4 को जिसमें उल्लेखित है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि गंगा नदी का पानी पीने व आचमन योग्य नहीं है. एनजीटी ने याची सह अधिवक्ता सौरभ तिवारी के द्वारा दायर याचिका व एक अन्य याचिका को साथ में सुनते हुए उक्त बातें कहीं. अगली सुनवाई की तिथि 9 दिसंबर निर्धारित की गई है. सुनवाई एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायालय अरुण कुमार त्यागी एवं विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष हुई है.

यह भी पढ़ें : गंगा प्रदूषण मामला : उत्तराखंड के अधिकारियों पर एनजीटी का 'डंडा', सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत - Relief to UPCB

यह भी पढ़ें : आचमन के लायक नहीं गंगा; NGT की रिपोर्ट ने बढ़ाई साधू संतों की चिंता, कुंभ से पहले गंगाजल को शुद्ध और निर्मल बनाने की मांग

इस मामले में गत 23 सितंबर को संगम नगरी में गंगा यमुना में प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया था और प्रयागराज में महाकुंभ से पहले गंगा एवं यमुना नदी में मल-जल के सीधे प्रवाह को रोकने के लिए उप्र के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया था. इसके अन्य सदस्य पर्यावरण मंत्रालय एवं जल शक्ति मंत्रालय के सचिव तथा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सदस्य हैं. उच्च स्तरीय कमेटी से 2 माह के अंदर रिपोर्ट मांगी थी.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ मेले 2025 के दौरान गंगा यमुना का प्रदूषण कम करने का प्रयास करें: एनजीटी - NGT on pollution in Ganga Yamuna

यह भी पढ़ें : गंगा में गिर रहे नालों पर एनजीटी गंभीर, DM वाराणसी से मांगी जानकारी, 16 अक्टूबर की सुनवाई से पहले देनी होगी रिपोर्ट - Ganga pollution NGT

वाराणसी : प्रयागराज और वाराणसी में कुंभ से पहले गंगा की वर्तमान स्थिति को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में सुनवाई चल रही है. शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से प्रयागराज में गंगा की वर्तमान स्थिति को लेकर रिपोर्ट फाइल न किए जाने पर एनजीटी ने कड़ी नाराजगी जताई है. एनजीटी ने नाराजगी जताते हुए 9 दिसंबर को वन और पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव को ही तलब कर लिया है. एनजीटी के तीन जजों की बेंच ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कुंभ से पहले गंगा की वर्तमान स्थिति क्या है, यह जानना बेहद आवश्यक है. खासतौर पर प्रयागराज और वाराणसी जहां पर लाखों लोग आस्था के साथ पहुंचेंगे.

एडवोकेट सौरभ तिवारी ने दी जानकारी (Video credit: ETV Bharat)

इस मामले में सीनियर एडवोकेट सौरभ तिवारी ने याचिका दायर की है. याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीटी कोर्ट ने शुक्रवार को यह बातें कहीं हैं. एनजीटी ने मुख्य सचिव, उप्र सरकार की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा प्रयागराज में गंगा जल की शुद्धता को लेकर रिपोर्ट नहीं जमा करने पर गहरी नाराजगी प्रकट की है. एनजीटी ने प्रधान/प्रमुख सचिव, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, उप्र सरकार को 9 दिसंबर को उपस्थित होने का आदेश दिया है.


एनजीटी ने मौखिक टिप्पणी करते हुए सरकार के अधिवक्ता से कहा कि 'जब दो महीने में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय कमेटी रिपोर्ट नहीं जमा कर पा रही है, तब महाकुंभ के पहले कमेटी कैसे कार्रवाई करेगी? कमेटी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी बैठकें कर सकती थी. एनजीटी की पीठ ने कहा कि हमने 23 सितंबर को आदेश पारित किया, लेकिन उच्च स्तरीय कमेटी ने 7 नवंबर से काम करना शुरू किया. एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि यह गंभीर मसला है. मेले में करोड़ों लोग आते हैं, अगर सीवेज के मल-जल को गंगा में गिरने से नहीं रोका गया तो लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा.

उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि कल रात हमें पत्र मिला, जिसमें उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट के लिए समय की मांग की गई है. सरकार के वकील ने कहा कि मुख्य सचिव, उप्र सरकार की रिपोर्ट पर बस हस्ताक्षर की जरूरत है, जिस पर एनजीटी ने कहा कि हस्ताक्षर करना तो 20 से 30 सेकेंड का काम है. एनजीटी ने कहा कि हम और समय नहीं दे सकते. 9 दिसंबर की तारीख लगा रहे हैं. वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव को उपस्थित होना होगा. एनजीटी ने कहा कि समय की मांग के लिए ट्रिब्यूनल को कोई भी आवेदन पत्र नहीं भेजा गया. एनजीटी ने सरकार के वकील से कहा कि उच्च स्तरीय कमेटी के सदस्यों के बजाय कोई अन्य अधिकारी ने समय की मांग के लिए पत्र भेजा है. एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता से कहा कि आपकी कार्यशैली से इस ट्रिब्यूनल और जनता में क्या संदेश जाएगा.

एनजीटी की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वाराणसी और प्रयागराज दो ऐसी जगह हैं, जहां देशभर के तीर्थयात्री आते हैं. कम से कम इन दो जगहों के गंगा जल की शुद्धता को लेकर कार्य करिए. वाराणसी को लेकर 2021 में व प्रयागराज को लेकर एनजीटी ने 2022 में आदेश पारित किया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ. न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी ने एनजीटी के 1 जुलाई के आदेश की तरफ इशारा करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के अधिवक्ता से कहा कि देखिए, उक्त आदेश के पैराग्राफ संख्या 4 को जिसमें उल्लेखित है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि गंगा नदी का पानी पीने व आचमन योग्य नहीं है. एनजीटी ने याची सह अधिवक्ता सौरभ तिवारी के द्वारा दायर याचिका व एक अन्य याचिका को साथ में सुनते हुए उक्त बातें कहीं. अगली सुनवाई की तिथि 9 दिसंबर निर्धारित की गई है. सुनवाई एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायालय अरुण कुमार त्यागी एवं विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष हुई है.

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इस मामले में गत 23 सितंबर को संगम नगरी में गंगा यमुना में प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सख्त रुख अपनाया था और प्रयागराज में महाकुंभ से पहले गंगा एवं यमुना नदी में मल-जल के सीधे प्रवाह को रोकने के लिए उप्र के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया था. इसके अन्य सदस्य पर्यावरण मंत्रालय एवं जल शक्ति मंत्रालय के सचिव तथा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष सदस्य हैं. उच्च स्तरीय कमेटी से 2 माह के अंदर रिपोर्ट मांगी थी.

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