प्रयागराज : महाकुंभ 2025 का पहला स्नान 13 जनवरी को है. इससे पहले संगम की रेती पर सभी प्रमुख 13 अखाड़ों के साथ ही देश भर से साधु-संत अपना बसेरा बना चुके हैं. अब भी संतों-महंतों के आने का क्रम जारी है. महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है. इनकी बसावट के साथ ही मेला आकार लेने लगता है. माना जाता है कि धर्म रक्षा के लिए ही अखाड़ों की स्थापना हुई. धर्म क्षेत्र में इनके योगदान को काफी अहम माना जाता है. आमजन में भी अखाड़ों के तौर-तरीके और इनकी कार्य संस्कृति को लेकर काफी जिज्ञासा होती है. अखाड़ों के निर्माण का इतिहास भी बहुत पुराना है. इसी में से एक है श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा. ऐसा कहा जाता है कि आवाहन ही पहला अखाड़ा है. इससे अलग होकर दूसरे अखाड़ों का गठन हुआ.
स्थापना को लेकर क्या है मत: आवाहन अखाड़े से जुड़े संत-महंत इसकी स्थापना 547 ईस्वी में होनी बताते हैं. जबकि 1547 इसकी पुनर्स्थापना की तिथि बताई जाती है. अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव महंत सत्यगिरी महाराज कहते हैं इसकी स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य से पहले हुई है. अखाड़े के ईष्ट देव प्रथम पूज्य भगवान सिद्ध गणेश हैं. इस अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है और इसकी शाखाएं देश के अलग-अलग राज्यों के विभिन्न जिलों में हैं.
क्यों पड़ा आवाहन नाम : माना जाता है कि धर्म की रक्षा के लिए आवाहन किए जाने की वजह से ही इस अखाड़े का नाम आवाहन अखाड़ा पड़ा है. इसी के साथ यही एक अखाड़ा है, जिसके नाम के आगे आवाहन सरकार भी लगता है. श्रीमहन्त सत्यगिरी के मुताबिक इस अखाड़े में संतों की संख्या ज्यादा होने की वजह से इससे अलग होकर दूसरे अखाड़ों का गठन हुआ है. बताया कि सनातन धर्म की रक्षा के लिए ये अखाड़ा बना था. दावा है कि इसकी स्थापना का समय 547 ईस्वी है. जबकि पुनर्स्थापना का समय 1547 ईस्वी है. इस अखाड़े की स्थापना के बाद सनातन धर्म की रक्षा के लिए कई बार युद्ध भी लड़ना पड़ा है.
आवाहन सरकार के नाम से भी जाना जाता था यह अखाड़ा : श्रीपंच दशनाम आवाहन अखाड़ा के राष्ट्रीय सचिव श्रीमहंत सत्यगिरी बताते हैं कि पहले इस अखाड़े का नाम आवाहन सरकार के नाम से भी जाना जाता था. आवाहन सरकार नाम इसलिए पड़ा था क्योंकि यह अखाड़ा धर्म की रक्षा के साथ ही लोगों को धर्म के पथ पर चलना की शिक्षा देने वाला पहला अखाड़ा था. बताया कि उन्हें जो गुरुओं से जानकारी मिली है, उसके अनुसार सनातन धर्म की तरह ही आवाहन अखाड़े का भी आदि और अंत नहीं है.
सनातन की रक्षा के लिए लड़े युद्ध: श्रीमहंत सत्यगिरी के मुताबिक, आवाहन अखाड़े ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए कई बार युद्ध लड़े हैं. अखाड़े ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से लोहा लिया और उन्हें परास्त कर सनातन धर्म की रक्षा की है. वो अपने प्राणों की आहुति तक देते रहे हैं और नष्ट होते रहे हैं.लेकिन फिर भी आवाहन अखाड़े का कभी अंत नहीं हुआ, हमेशा चलता रहेगा.
अखाड़े से जुड़ने का सिलसिला जारी: बताते हैं कि उनके अखाड़े से संत जुड़ते रहे हैं. अखाड़े से जुड़ने के लिए वो किसी को बुलाते नहीं है. जिनके भी अंदर साधु संत के लक्षण होते हैं, वह लोग ही उनके अखाड़े से जुड़ते हैं. महाकुम्भ में माघ मास में उन लोगों को अखाड़े से जोड़ा जाता है, जो कई सालों की कठिन परीक्षा में सफल होते हैं. जो प्रतिदिन पूजा-पाठ करते हैं, जिनका मन जप तप में लगता है, जो सांसारिक मोहमाया से दूर होते हैं, वही लोग इस अखाड़े में सन्यासी के रूप में जुड़ते हैं. बताया कि उनके यहां संतों का जीवीकोपार्जन कृषि और दानपुण्य से जो मिलता है, उसी के जरिये होता है.
अखाड़ों की स्थापना को लेकर क्या है मान्यता: आम मान्यता है कि अखाड़ों की परंपरा 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने शुरू की थी. उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र में निपुण साधुओं का एक ऐसा संगठन बनाना था, जो किसी भी बाहरी आक्रमण से धर्म और संस्कृति की रक्षा करे. इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाण अखाड़ा, अटल अखाड़ा, आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है. आदि शंकराचार्य जन्म 788 ईस्वी और मृत्यु 820 ईस्वी में हुई. इसी जीवनकाल में उन्होंने धर्म रक्षा के लिए अखाड़े स्थापित किए. पहले अखाड़ों की संख्या कम थी. अब इनकी संख्या 13 हो गई हैं. इनमें शैव सन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े, उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं.
कुंभ में पहला शाही स्नान इस दिन करेंगेः 13 जनवरी को कुंभ के पहले शाही स्नान में यह अखाड़ा पूरी शान-ओ-शौकत के साथ पहुंचेगा. स्वर्ण-चांदी के रथ, अस्त्र शस्त्रों के साथ रेत पर दौड़ लगाते नागा साधु जब गंगा स्नान करेंगे तो वह दृश्य हर किसी को अभिभूत कर देता है.