मधुबनी: सुखराम प्रसाद चौरसिया का जन्म मधुबनी जिले के रांटी गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था. पिता बैद्यनाथ प्रसाद का मुख्य पेशा खेती था. 4 बीघा जमीन बटाई पर लेकर वो खेती करते थे, उसी खेती से 4 लोगों का भरणपोषण होता था. पुस्तैनी जमीन के नाम पर मात्र 10 कट्ठा जमीन थी. ईख की खेती में नकद पैसा मिल जाता था इसी लिए उनके पिता ईख की खेती करते थे. इसके बाद का सफर बिहार के मशरूम किंग के लिए कैसा रहा, आइये जानते है.
10 वीं में उठ गया पिता का साया: 24 अक्टूबर 1997, सुखराम बैलगाड़ी से ईख लेकर बाजार बेचने जा रहे थे. मधुबनी के निमिषा पंप के सामने बेकाबू बस ने बैलगाड़ी को टक्कर मार दी. इसी सड़क दुर्घटना में उनके पिता की मृत्यु हो गई. हादसे में सुखराम भी घायल हो गए. एक महीने तक अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती होना पड़ा. उस समय वह दसवीं में पढ़ाई कर रहे थे. पिता की मौत के बाद किसी तरीके से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की.
घर की जिम्मेवारी सुखराम के कंधे : पिता की मौत के बाद पूरे घर की जिम्मेवारी सुखराम के कंधे पर आ गई. घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. मैट्रिक परीक्षा सेकेंड डिवीजन से पास करने के बाद सुखराम ने दिल्ली जाकर नौकरी करने का फैसला लिया. दिल्ली पहुंचे गारमेंट्स कंपनी में नौकरी शुरू की. 1200 रुपये मासिक वेतन मिलता था. डेढ़ साल तक उन्होंने उस फैक्ट्री में काम किया, लेकिन फैक्ट्री के अंदर बिहारी मजदूरों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी. और बिहार लौटकर खेती करने का फैसला किया.
गांव में शुरू की खेती: गांव लौटकर 12वीं में डीएनवाई कॉलेज में नामांकन करवाया, लेकिन आगे की पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी. साल 1999 के आखिर में खेती शुरू की. साथ ही, बैलगाड़ी से मधुबनी सामान लाने ले जाने का काम शुरू किया. इसके लिए उन्हें प्रति ट्रिप 70 रुपये मिलते थे. रांटी गोठी परिवार का 3 बीघा खेत किराए पर लिया और वह बटाई पर करने लगे. इसके अलावे हल चलाने से भी कुछ पैसा होने लगा, जिससे परिवार का भरण पोषण होता.
2007 में वर्मी कंपोस्ट से शुरुआत: 2007 में सुखराम चौरसिया ने अपने गांव में वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया. इसी बीच, 2009 में जीविका प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी. मधुबनी जिले के दो प्रखंडों का चयन किया गया, जिसमें राजनगर प्रखंड और बेनीपट्टी प्रखंड शामिल था. राजनगर प्रखंड में रांटी गांव का चयन हुआ और सुखराम को विलेज रिसोर्स पर्सन (VRI) के रूप में रखा गया. वर्मी कंपोस्ट पर उनका काम अच्छा होने लगा था, जिसको देखने के लिए चेन्नई से एक टीम उनके घर पर आई थी. एक साल में 600 से लेकर 700 क्विंटल तक वर्मी कंपोस्ट की बिक्री होने लगी. इससे घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा.
2010 में मशरूम की खेती में रखा कदम : 2009 तक उन्हें मशरूम के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी. इस बीच, एक दिन अशोक नाम के एक लड़के ने उसने मशरूम को लेकर चर्चा की. उन्हें नहीं मालूम था कि मशरूम किसे कहते हैं. दरअसल मिथिलांचल में आम बोलचाल की भाषा में पहले इसे लोग गोबरछत्ता कहते थे. लोगों को पता नहीं था कि इसे खाया भी जाता हैं. 2009 में जब उन्हें पता चला कि लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं और ये बाजार में महंगा बिकता है. तो सुखराम ने इसकी खेती करने की सोची. इसी के साथ शुरुआत में एक किलो स्पॉन (बीज) से यानी 50 - 60 बैग से उन्होंने इसकी खेती शुरू की.
3500 बैग से ज्यादे की क्षमता में कर रहे खेती: छोटी सी जगह से मशरूम की खेती की शुरुआत करने वाले सुखराम आज 3500 से ज्यादे बैग में इसे उगाते हैं. एक बार खेती करने के लिए उनको डेढ़ क्विंटल स्पॉन (बीज) लगता है. सुखराम बताते है कि अपने ही गांव के सड़क किनारे उन्होंने एक बड़ा जमीन का प्लॉट लिया है. उस जमीन पर करीब 10 हजार बैग का सेड बना रहे हैं. इसके बाद तीन गुना मशरूम की खेती बढ़ जाएगी.
60 दिन में फसल होती है तैयार: सुखराम ने बताया कि आज 3500 बैग में एक बार में वह खेती करते हैं. अब कुछ अन्य जगहों पर भी इस प्रोजेक्ट को शुरू करने जा रहे हैं. मशरूम की खेती आमतौर पर 60 दिनों में तैयार हो जाती है. यानी एक बार फसल बोने के बाद 2 महीने के भीतर यह पूरी फसल तैयार हो जाती है. फसल बोने के 1 महीने के बाद से ही इसकी बिक्री शुरू हो जाती है, आज स्थिति ऐसी है कि प्रतिदिन लगभग एक से डेढ़ क्विंटल मशरूम रोज उनके यहां तैयार हो रहा है. 175 रुपये से 225 रुपये किलो मशरूम की कीमत है.
''मशरूम की खेती में रोज का अलग-अलग रेट होता है. इसीलिए यह बताना संभव नहीं की प्रतिदिन की कमाई कितनी होती है लेकिन औसत महीने की कमाई लगभग 15 से 20 लाख और स्पॉन से महीने में लगभग 7 से 8 लाख तक कि बिक्री हो जाती है।साल में लगभग 3 से 4 करोड़ की बिक्री हो जाती है. कभी खुद लेबर की नौकरी करने वाले सुखराम ने आज 10 लोगों को अपने यहां रोजगार दे रखा है. 13 हजार से 22 हजार सैलरी देते हैं. यानी लगभग डेढ़ लाख रुपया प्रति माह वह अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन दे रहे हैं.'' - सुखराम चौरसिया, किसान
बीज बनने वाले उत्तर बिहार के एकमात्र किसान: सुखराम चौरसिया मशरूम की खेती में आज अपनी अलग पहचान बन चुके हैं. इससे भी बड़ी बात है कि, उत्तर बिहार के वे एकमात्र किसान है, जो मशरूम के स्पॉन (बीज) तैयार करते हैं. उनके यहां प्रतिदिन 80 से 85 किलोग्राम स्पॉन (बीज) तैयार किया जाता है. लेकिन सितंबर से लेकर फरवरी तक स्पॉन की उपज दो क्विंटल प्रतिदिन बढ़ जाती है. क्योंकि इस समय में स्पॉन (बीज) की मांग बहुत ज्यादा हो जाती है. इनके बीज की क्वालिटी अच्छी होने के कारण दूर-दूर से ऑर्डर आते है.
बिहार के बाहर मशरूम की होती है सप्लाई : सुखराम के मशरूम की सप्लाई बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के अलावे नेपाल, भूटान तक होती है. मशरूम के बीज 100 रुपये प्रति किलो बिकते है. सुखराम बताते हैं कि आज प्रतिदिन औसत डेढ़ क्विंटल मशरूम प्रतिदिन वह बाहर बिक्री के लिए भेजते हैं. जो व्यापारी हैं वह खुद उनके यहां आकर मशरूम खरीद कर ले जाते हैं. साथ ही, मशरूम को बाहर भेजने के लिए थर्मोकोल के बॉक्स में बर्फ में डालकर बहुत हिफाजत से भेजना पड़ता है.
मजदूरी करने वाला आदमी आज दे रहा रोजगार: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि यह भी वह संभव कर सकते हैं।जो व्यक्ति कभी बाहर मजदूरी करने को मजबूर था, आज स्थिति यह है कि प्रतिवर्ष हुआ मशरूम की खेती एवं उसके बीच बेचकर करोड़ रुपया से ज्यादा कमा रहे हैं। गांव के लोगों को नियमित रोजगार के साथ-साथ मजदूरों के रूप में अनेक लोगों को वह रोजगार दे रहे हैं। अनेक ऐसे मजदूर हैं जिनका 300 से 400 रु वह प्रतिदिन दे रहे हैं।
"मशरूम की खेती में सफलता के बाद अब लोगों को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं. अब तक 3700 से ज्यादा किसानों को मशरूम की खेती के लिए ट्रेनिंग दी है. ग्रामीण विकास योजना के तहत RSETI द्वारा एक्सपर्ट के तौर पर हमसे लोगों को प्रशिक्षण दिलवाया जा रहा है." - सुखराम चौरसिया, किसान
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