लखनऊ : सिर की चोट की गंभीरता का पता रेटिना के अल्ट्रासाउंड से लगाया जा सकता है. रेटिना से सिर में चोट लगने की वजह से सूजन या खून का थक्का जमने से होने वाली परेशानियों का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है. यह जांच अस्पताल पहुंचने के बाद जल्द से जल्द बेड पर ही हो जानी चाहिए. जिससे समय पर सटीक इलाज शुरू किया जा सके.
यह जानकारी केजीएमयू एनस्थीसिया विभाग की अध्यक्ष डॉ. मोनिका कोहली ने दी. डॉ. मोनिका कोहली गुरुवार को केजीएमयू एनस्थीसिया विभाग की ओर से चार दिवसीय इंडियन कॉलेज ऑफ एनेस्थिसियोलॉजीस्ट्स (आईसीए) के पांचवें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रहीं थीं. सम्मेलन का शुभारंभ चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा व कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने किया. पहले दिन करीब 250 पीजी छात्र-छात्राएं, पैरामेडिकल व नर्सिंग स्टाफ को कार्यशाला के माध्यम से इमरजेंसी में अल्ट्रासाउंड जांच की अहमियत बताई.
डॉ. मोनिका कोहली ने बताया कि अभी तक अल्ट्रासाउंड जांच रेडियोलॉजिस्ट ही करते थे. इमरजेंसी में आने वाले मरीजों की तुरंत जांच होनी चाहिए. कई बार रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध नहीं होते हैं. ऐसे में मरीज का इलाज प्रभावित हो सकता है. गंभीर मरीजों को तुरंत सटीक इलाज मिलना चाहिए. इसके लिए अल्ट्रासाउंड जांच जरूरी है. सिर की चोट की गंभीरता का अंदाजा आंखों के रेटिना जांच से लगाया जा सकता है. कुछ मिनट में अल्ट्रासाउंड से रेटीना की जांच की जा सकती है. कार्यक्रम में देश-विदेश बड़ी संख्या में एनस्थीसिया विशेषज्ञों ने शिरकत की.
40 प्रतिशत में फेल हो जाती हैं दर्द की दवाएं : डॉ. मनीष सिंह ने कहा कि कैंसर की अंतिम अवस्था में मरीज को बेतहाशा दर्द होता है. सबसे ज्यादा दर्द मुंह, गॉलब्लेडर व पेट के कैंसर से पीड़ित मरीजों को होता है. इन मरीजों को मार्फिन व दूसरी दर्द निवारक दवा देकर राहत पहुंचाने का प्रयास किया जाता है. 40 प्रतिशत मरीजों पर दर्द निवारक सभी दवाएं फेल हो जाती हैं. ऐसी दशा में दर्द का अहसास कराने वाली नर्व की पहचान कर उसे ब्लॉक किया जा सकता है. इससे मरीज को काफी हद तक दर्द से निजात दिलाया जा सकता है. नर्व के माध्यम से दर्द का अहसास दिमाग तक जाता है. बीच में नर्व के ब्लॉक होने से मरीज को राहत मिल सकती है.
नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की भूमिका अहम : चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि अस्पताल में मरीजों की पहली मुलाकात नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाॅफ से होती है. लिहाजा उनकी भूमिका बेहद अहम होती है. वे मरीज और उनके परिवारीजनों की भावनाओं को समझते हुए उचित इलाज की प्रक्रिया को तेज और कारगर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. प्रमुख सचिव ने जीवन-रक्षक कोर्स के आयोजन के लिए बधाई दी. उपस्थित नर्सिंग और पैरामेडिक्स छात्रों को मरीजों की सेवा के प्रति प्रेरित किया. कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने छात्रों को इस कार्यशाला में अपनी स्किल्स को बढ़ाने और समय का सदुपयोग करने पर जोर दिया.