लखनऊ: राजधानी में दानिश महल जैसी ऐतिहासिक किताबघर ने एक वक्त में उर्दू साहित्य के मशहूर हस्तियों को अपनी ओर आकर्षित किया था. 1936 में स्थापित यह किताबघर उर्दू के साहित्यकारों और लेखकों का पसंदीदा अड्डा हुआ करता था. जोश मलीहाबादी, मलिकजादा मंजूर और कई अन्य दिग्गज साहित्यकार यहां आकर साहित्य पर चर्चा किया करते थे.
दानिश महल के मालिक मोहम्मद नईम ने बताया कि मेरे पिता ने इस किताबघर की स्थापना की थी. यहां साहित्यकारों के साथ साहित्यिक चर्चा होती थी और लोग उर्दू साहित्य से जुड़ी किताबें खरीदते थे, लेकिन समय के साथ हालात बदल गए हैं.
उर्दू किताब घरों की दुर्दशा: उन्होंने कहा कि लखनऊ के प्रमुख किताब घर जैसे नसीम बुक डिपो (लाटूश रोड), नुसरत पब्लिशर (अमीनाबाद) और मक्तबा दारुल आदाब अब बंद हो चुके हैं. किसी में मोटरसाइकिल बिक रही है तो किसी में चाय.
मोहम्मद नईम ने बताया कि किताबों की बिक्री में भारी गिरावट आई है. यहां बच्चे किताबों के लिए आते हैं, लेकिन उनके कोर्स की किताबें उपलब्ध नहीं हैं. उर्दू अकादमी को करोड़ों का बजट मिलने के बावजूद कक्षा 1 से 8 तक की किताबें छप नहीं रही हैं. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की किताबें भी मुश्किल से मिलती हैं, जिससे छात्र निराश होकर लौट जाते हैं.
उन्होंने बताया कि पिछले तीन वर्षों में उर्दू अकादमी द्वारा छपी किताबों की कीमत दोगुनी हो गई है. 200 रुपये की किताब अब 400 रुपये में मिल रही है. अकादमी का उद्देश्य किताबें सस्ते दामों पर उपलब्ध कराना था, लेकिन अब यह संभव नहीं है.
अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी का योगदान: लखनऊ की अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी, जिसे 1925 में कैसरबाग में स्थापित किया गया, साहित्य प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है. लाइब्रेरी की लाइब्रेरियन सुप्रिया शर्मा के मुताबिक, यहां 1,90,000 किताबें हैं. जिनमें 15,000 उर्दू की हैं. उर्दू किताब में पढ़ने के लिए प्रतिमाह 200 से 300 छात्र यहां अध्ययन के लिए आते हैं. लाइब्रेरी ने आधुनिक तकनीक का सहारा लेते हुए 75,000 किताबों को डिजिटल किया है, जो LucknowPublicLibrary.com पर उपलब्ध हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सिंगल सर्च के माध्यम से किताबों को पढ़ा जा सकता है.
लाइब्रेरी में सदस्यता के नियम
- ऑनलाइन किताबें पढ़ने के लिए रजिस्ट्रेशन फ्री है. ऑफलाइन सदस्यता के लिए दो विकल्प हैं:
- जीवन सदस्यता: 1000 रुपये शुल्क पर कार्ड जारी किया जाता है, जिससे लाइब्रेरी में बैठकर अध्ययन किया जा सकता है. इंटरनेट की सुविधा और कंप्यूटर पर किताबें पढ़ने की सुविधा मिलती हैं.
- सालाना सदस्यता: 3,000 रुपये शुल्क लिया जाता है, जिसमें 2000 रुपये रिफंडेबल हैं. दो किताबें इशू की जा सकती हैं. समय सीमा से अधिक देर होने पर 1 प्रति दिन का जुर्माना लगता है.
क्या उर्दू साहित्य को नया जीवन मिलेगा?: हालांकि, लखनऊ में उर्दू पढ़ने वालों की संख्या काफी है. लेकिन किताबें खरीदने वालों की संख्या बेहद कम है. लोगों की दिलचस्पी साहित्य में घट रही है और यह उर्दू साहित्य के भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है. दानिश महल जैसे प्रतिष्ठित किताब घर और अमीरुद्दौला लाइब्रेरी का अस्तित्व इस बात पर निर्भर करेगा कि नई पीढ़ी कितनी दिलचस्पी दिखाती है. यह कहना गलत नहीं होगा कि साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित रखने के लिए सरकारी और सामाजिक स्तर पर ठोस प्रयासों की जरूरत है.
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