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240 साल पुराना ये नवाबी दरवाजा दो साल में भी नहीं संवरा, आखिर क्या है वजह.. - Rumi Gate Lucknow

लखनऊ के ऐतिहासिक रूमी गेट को संरक्षित करने का काम पिछले दो साल से जारी है. लखनऊ के नवाबी घरानों ने इसको लेकर सख्त नाराजगी जाहिर की है.

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कब संवरेगा रूमी दरवाजा (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 1, 2024, 11:55 AM IST

लखनऊ: ऐतिहासिक रूमी दरवाजे में दरारों को सुधारने और संरक्षित का काम पिछले दो साल से जारी था. पिछले साल मोहर्रम के महीने में शाही जुलूस के चलते इसका काम रोक दिया गया था, जो अभी तक जारी नहीं हुआ है. रूमी गेट का रिनोवेशन ना होने पर लखनऊ के नवाबी घरानों ने सख्त नाराजगी जाहिर की है. उसके साथ ही रूमी गेट के रंग बदलने पर भी आक्रोश व्यक्त किया है. वहीं, दूसरी तरफ ASI ने रूमी गेट को संरक्षित करने के लिए दोनों तरफ पत्थर की नक्काशी की गई है. इसके साथ ही छोटे-छोटे पिलर लगाए गए है. उन पर जंजीर लगाई जाएगी, ताकि रूमी गेट के नीचे से दोपहिया और चौपहिया वाहन ना गुजर सकें. पिलर लगाने का काम शुरू हो चुका है.

ऐतिहासिक रूमी गेट को संरक्षित करने का काम अधूरा, नवाब मसूद अब्दुल्ला ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

हुसैनाबाद ट्रस्ट और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने लगातार दो वर्षों तक मरम्मत और सौंदर्यीकरण का कार्य किया है.जिसके बाद यह दरवाजा अब फिर से चमकने लगा है. हाल ही में इसे और अधिक सुंदर ढंग से सजाया गया है. जिससे यह और भी आकर्षित हो गया है. ASI के काम से लखनऊ का एक तबका जहां खुश है, वहीं नवाबी घराना नाखुश नजर आ रहा है.

ASI ने नहीं किया संरक्षित: नवाबी घराने से ताल्लुक रखने वाले नवाब मसूद अब्दुल्ला ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, कि रूमी गेट के ऊपर जो छोटे-छोटे नक्काशी किए हुए गुंबद लगाए गए थे, वह टूट चुके थे. ASI ने उसे संरक्षित नहीं किया है. जिससे इसकी खूबसूरती कम हो गई है. उन्होंने कहा, कि रूमी गेट का रंग बदल दिया गया है. यह राजस्थानी रंग है. गेट का जो पहले रंग था, उस पर काम नहीं किया गया है. जिससे यह प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा, कि इसके नीचे से हैवी इलेक्ट्रिसिटी की लाइन और पानी सप्लाई की लाइन गुजरी है. इसे भी सरकार को हटाना चाहिए. क्योंकि इसके ब्लास्ट होने से इसी इमारत को नुकसान पहुंचेगा.

रूमी गेट पर पाबंदी: नवाब मसूद अब्दुल्ला ने कहा, कि एक जमाना था जब रूमी गेट पर चढ़कर पूरे लखनऊ का नजारा किया जाता था. लेकिन, अब उस पर पाबंदी लगा दी गई है. मेरी यह भी मांग है, कि पूरे संरक्षित ढंग से टिकट लेकर सैलानियों को जाने की इजाजत दी जाए. इससे रेवेन्यू भी बढ़ेगा और टूरिस्ट को एक नया आकर्षण का केंद्र भी मिलेगा.

इसे भी पढ़े-लक्ष्मण नगरी में सबसे ऊंची होगी बैठे बजरंगबली की मूर्ति, जानिये कहां से हो सकेंगे दर्शन

उत्तर प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त सैयद हैदर अब्बास का कहना है,कि रूमी दरवाजे के नीचे से भारी वाहन, ट्रक और अन्य बड़ी गाड़ियां नहीं गुजरनी चाहिए. क्योंकि इससे दरवाजे की संरचना को नुकसान हो सकता है. कानून के अनुसार भी ऐतिहासिक इमारतों के नीचे से भारी वाहनों का गुजरना प्रतिबंधित है. क्योंकि उनकी कंपन से इमारतों को खतरा होता है.

इस मुद्दे को लेकर लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट सुरपाल गंगवार को एक ज्ञापन सौंपा गया था. जिस की खबर ETV bharat Urdu ने की थी. उस के असर में अब दरवाजे के आगे और पीछे छोटे-छोटे लाल पत्थर के पिलर और चेन लगाकर इसे संरक्षित किया जाएगा.

ASI ने क्या कहा: ASI लखनऊ जॉन के इंचार्ज आफताब आलम ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, कि पिछले 2 साल से रूम गेट के संरक्षण पर काम चल रहा था. मोहर्रम के शाही जुलूस के मद्दे नजर काम रुका था. अब फिर से काम शुरू होगा. उन्होंने कहा, कि सुरक्षित का पूरा काम अभी मुकम्मल नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि रूमी गेट के ऊपर जो कंगूरे लगे थे उसको इसलिए नहीं लगाया गया है. ताकि वह गेट को नुकसान न पहुंचा सके. क्योंकि कांगूरों का वजन काफी ज्यादा होता है. उससे रूमी गेट के इमारत को नुकसान होने का खतरा है.

ये है रूमी गेट के का इतिहास: रूमी गेट, जिसे लखनऊ के सिग्नेचर गेट के रूप में भी जाना जाता है, ये ऐतिहासिक दरवाजा 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा बनाया गया था.

कौन था रूम में गेट का आर्किटेक्ट: रूमी गेट के आर्किटेक्ट का नाम किफायतुल्लाह था, जो एक प्रसिद्ध मुगल आर्किटेक्ट थे. उन्होंने नवाब आसफ-उद-दौला के लिए कई अन्य परियोजनाओं पर भी काम किया था, जिनमें बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा शामिल हैं. नवाब आसफ-उद-दौला ने आर्किटेक्ट किफायतुल्लाह को रूमी गेट की शानदार नक्शा बनाने के बदले में उन्हें बेशुमार माल व दौलत से नवाजा था. उसके बाद उन्हें अपनी कब्र के बगल में दफन होने के लिए जगह भी दी थी. रूमी गेट की वास्तुकला तुर्की और मुगल शैलियों का मिश्रण है, जिसमें गुंबद, मीनारें और जटिल पत्थर की कार्विंग शामिल हैं.

क्यों हुआ था रूमी गेट का निर्माण: कहा जाता है, कि लखनऊ और उसके आसपास जब सूखा पड़ गया था तो लोग बे रोजगारी से जूझ रहे थे,उसे वक्त नवाब आसफ-उद-दौला ने रूमी गेट निर्माण करने का फैसला लिया. निर्माण का कार्य दिन व रात जारी था जिसमें हजारों मजदूर व शरीफ घरानों के लोग काम करते थे. दिन में जितना निर्माण कराया जाता उसे रात में धवस्त कर दिया जाता था उसकी वजह यह थी की रात में लखनऊ के शरीफ घरानों के लोग काम करते थे जबकि दिन में मजदूर काम करते थे शरीफ घराने के भावनाओं को ठेस न पहुंचे इसके लिए उनसे रात में काम लिया जाता था. उस वक्त यह मुहावरा मशहूर हुआ था कि 'जिसको ना दे मौला उसको दे आसफ-उद-दौला' नवाब आसफ-उद-दौला ने इसे बदला और कहा' किसको ना दे मौला उसको क्या दे आसिफ दौला'

रूमी गेट का रूमी गेट नाम क्यों पड़ा: नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि क्योंकि रोमी गेट रोमन और तुर्की इमारत के तर्ज पर निर्माण किया कराया गया था. इसलिए इसका नाम रूमी गेट रखा गया था.इसके नाम के बारे में यह भी कहा जाता है, कि यह एक मशहूर बुजुर्ग जिनका नाम हजरत रूमी था. उन्हीं के नाम पर इस गेट का नाम रखा गया है.

यह भी पढ़े-दुबई से लखनऊ आ रहे प्लेन में एयर होस्टेस से बदसलूकी, शराबी यात्री ने किया हंगामा, कराची में लैंडिंग की चेतावनी पर माना - Dubai Lucknow flight ruckus

लखनऊ: ऐतिहासिक रूमी दरवाजे में दरारों को सुधारने और संरक्षित का काम पिछले दो साल से जारी था. पिछले साल मोहर्रम के महीने में शाही जुलूस के चलते इसका काम रोक दिया गया था, जो अभी तक जारी नहीं हुआ है. रूमी गेट का रिनोवेशन ना होने पर लखनऊ के नवाबी घरानों ने सख्त नाराजगी जाहिर की है. उसके साथ ही रूमी गेट के रंग बदलने पर भी आक्रोश व्यक्त किया है. वहीं, दूसरी तरफ ASI ने रूमी गेट को संरक्षित करने के लिए दोनों तरफ पत्थर की नक्काशी की गई है. इसके साथ ही छोटे-छोटे पिलर लगाए गए है. उन पर जंजीर लगाई जाएगी, ताकि रूमी गेट के नीचे से दोपहिया और चौपहिया वाहन ना गुजर सकें. पिलर लगाने का काम शुरू हो चुका है.

ऐतिहासिक रूमी गेट को संरक्षित करने का काम अधूरा, नवाब मसूद अब्दुल्ला ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

हुसैनाबाद ट्रस्ट और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने लगातार दो वर्षों तक मरम्मत और सौंदर्यीकरण का कार्य किया है.जिसके बाद यह दरवाजा अब फिर से चमकने लगा है. हाल ही में इसे और अधिक सुंदर ढंग से सजाया गया है. जिससे यह और भी आकर्षित हो गया है. ASI के काम से लखनऊ का एक तबका जहां खुश है, वहीं नवाबी घराना नाखुश नजर आ रहा है.

ASI ने नहीं किया संरक्षित: नवाबी घराने से ताल्लुक रखने वाले नवाब मसूद अब्दुल्ला ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, कि रूमी गेट के ऊपर जो छोटे-छोटे नक्काशी किए हुए गुंबद लगाए गए थे, वह टूट चुके थे. ASI ने उसे संरक्षित नहीं किया है. जिससे इसकी खूबसूरती कम हो गई है. उन्होंने कहा, कि रूमी गेट का रंग बदल दिया गया है. यह राजस्थानी रंग है. गेट का जो पहले रंग था, उस पर काम नहीं किया गया है. जिससे यह प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा, कि इसके नीचे से हैवी इलेक्ट्रिसिटी की लाइन और पानी सप्लाई की लाइन गुजरी है. इसे भी सरकार को हटाना चाहिए. क्योंकि इसके ब्लास्ट होने से इसी इमारत को नुकसान पहुंचेगा.

रूमी गेट पर पाबंदी: नवाब मसूद अब्दुल्ला ने कहा, कि एक जमाना था जब रूमी गेट पर चढ़कर पूरे लखनऊ का नजारा किया जाता था. लेकिन, अब उस पर पाबंदी लगा दी गई है. मेरी यह भी मांग है, कि पूरे संरक्षित ढंग से टिकट लेकर सैलानियों को जाने की इजाजत दी जाए. इससे रेवेन्यू भी बढ़ेगा और टूरिस्ट को एक नया आकर्षण का केंद्र भी मिलेगा.

इसे भी पढ़े-लक्ष्मण नगरी में सबसे ऊंची होगी बैठे बजरंगबली की मूर्ति, जानिये कहां से हो सकेंगे दर्शन

उत्तर प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त सैयद हैदर अब्बास का कहना है,कि रूमी दरवाजे के नीचे से भारी वाहन, ट्रक और अन्य बड़ी गाड़ियां नहीं गुजरनी चाहिए. क्योंकि इससे दरवाजे की संरचना को नुकसान हो सकता है. कानून के अनुसार भी ऐतिहासिक इमारतों के नीचे से भारी वाहनों का गुजरना प्रतिबंधित है. क्योंकि उनकी कंपन से इमारतों को खतरा होता है.

इस मुद्दे को लेकर लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट सुरपाल गंगवार को एक ज्ञापन सौंपा गया था. जिस की खबर ETV bharat Urdu ने की थी. उस के असर में अब दरवाजे के आगे और पीछे छोटे-छोटे लाल पत्थर के पिलर और चेन लगाकर इसे संरक्षित किया जाएगा.

ASI ने क्या कहा: ASI लखनऊ जॉन के इंचार्ज आफताब आलम ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा, कि पिछले 2 साल से रूम गेट के संरक्षण पर काम चल रहा था. मोहर्रम के शाही जुलूस के मद्दे नजर काम रुका था. अब फिर से काम शुरू होगा. उन्होंने कहा, कि सुरक्षित का पूरा काम अभी मुकम्मल नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि रूमी गेट के ऊपर जो कंगूरे लगे थे उसको इसलिए नहीं लगाया गया है. ताकि वह गेट को नुकसान न पहुंचा सके. क्योंकि कांगूरों का वजन काफी ज्यादा होता है. उससे रूमी गेट के इमारत को नुकसान होने का खतरा है.

ये है रूमी गेट के का इतिहास: रूमी गेट, जिसे लखनऊ के सिग्नेचर गेट के रूप में भी जाना जाता है, ये ऐतिहासिक दरवाजा 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा बनाया गया था.

कौन था रूम में गेट का आर्किटेक्ट: रूमी गेट के आर्किटेक्ट का नाम किफायतुल्लाह था, जो एक प्रसिद्ध मुगल आर्किटेक्ट थे. उन्होंने नवाब आसफ-उद-दौला के लिए कई अन्य परियोजनाओं पर भी काम किया था, जिनमें बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा शामिल हैं. नवाब आसफ-उद-दौला ने आर्किटेक्ट किफायतुल्लाह को रूमी गेट की शानदार नक्शा बनाने के बदले में उन्हें बेशुमार माल व दौलत से नवाजा था. उसके बाद उन्हें अपनी कब्र के बगल में दफन होने के लिए जगह भी दी थी. रूमी गेट की वास्तुकला तुर्की और मुगल शैलियों का मिश्रण है, जिसमें गुंबद, मीनारें और जटिल पत्थर की कार्विंग शामिल हैं.

क्यों हुआ था रूमी गेट का निर्माण: कहा जाता है, कि लखनऊ और उसके आसपास जब सूखा पड़ गया था तो लोग बे रोजगारी से जूझ रहे थे,उसे वक्त नवाब आसफ-उद-दौला ने रूमी गेट निर्माण करने का फैसला लिया. निर्माण का कार्य दिन व रात जारी था जिसमें हजारों मजदूर व शरीफ घरानों के लोग काम करते थे. दिन में जितना निर्माण कराया जाता उसे रात में धवस्त कर दिया जाता था उसकी वजह यह थी की रात में लखनऊ के शरीफ घरानों के लोग काम करते थे जबकि दिन में मजदूर काम करते थे शरीफ घराने के भावनाओं को ठेस न पहुंचे इसके लिए उनसे रात में काम लिया जाता था. उस वक्त यह मुहावरा मशहूर हुआ था कि 'जिसको ना दे मौला उसको दे आसफ-उद-दौला' नवाब आसफ-उद-दौला ने इसे बदला और कहा' किसको ना दे मौला उसको क्या दे आसिफ दौला'

रूमी गेट का रूमी गेट नाम क्यों पड़ा: नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि क्योंकि रोमी गेट रोमन और तुर्की इमारत के तर्ज पर निर्माण किया कराया गया था. इसलिए इसका नाम रूमी गेट रखा गया था.इसके नाम के बारे में यह भी कहा जाता है, कि यह एक मशहूर बुजुर्ग जिनका नाम हजरत रूमी था. उन्हीं के नाम पर इस गेट का नाम रखा गया है.

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