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महाकुंभ 2025; अटल अखाड़ा में शंभू पंच ही सर्वोपरि, गुजरात के गोंडवाना में हुई थी अखाड़े की स्थापना - MAHAKUMBH 2025

Mahakumbh 2025 : सेक्रेटरी और एक जनरल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में होते हैं सारे काम.

श्री शंभू पंच अटल अखाड़ा
श्री शंभू पंच अटल अखाड़ा (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 7, 2024, 7:37 PM IST

Updated : Dec 11, 2024, 12:47 PM IST

प्रयागराज : श्री शंभू पंच अटल अखाड़ा काफी प्राचीन बताया जाता है. अखाड़े के महंत बताते हैं कि इसकी स्थापना 569 इस्वी में गुजरात के गोंडवाना क्षेत्र में हुई थी. इसके ईष्ट देव आदि गणेश गजानन हैं, जिनकी उपासना करके ही अखाड़े के सभी साधु संत अपने दिन की शुरुआत करते हैं. अखाड़े में शंभू पंच ही सर्वोपरि होता है. दो पद सेक्रेटरी और एक जनरल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में सारे काम होते हैं.

महंत बलराम भारती महाराज ने दी जानकारी ((Video Credit: ETV Bharat))

श्री शम्भू पंच अटल अखाड़ा के महंत बलराम भारती महाराज बताते हैं कि उनका अखाड़ा सबसे प्राचीन है. इस अखाड़े से अलग हुए संतों ने मिलकर दूसरे अखाड़े बनाए हैं. उन्होंने कहा कि इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य के निर्देशन में सनातन धर्म और हिंदुओं की रक्षा के लिए की गई थी. इसी वजह से अटल बादशाह और आवाहन सरकार भी कहा जाता था, हालांकि अटल अखाड़े में 500 संत हैं. उन्होंने बताया कि श्री शम्भू पंच अटल अखाड़े में संतों की संख्या बेहद सीमित है. इस अखाड़े में कोई आचार्य महामंडलेश्वर नहीं होता है. पूरे अखाड़े का संचालन प्राचीन पद्धति से होता चला आ रहा है.

उन्होंने बताया कि अखाड़े में चार श्रीमहंत हैं और उनके साथ महासचिव और सचिव हैं, जो मिलकर अखाड़े का संचालन करते हैं. इसके साथ ही महंत के साथ 4 कारोबारी, 2 पुजारी और 1 कोठारी हैं. इनके सहयोग और सहमति से अखाड़े में सभी फैसले लिए जाते हैं. फिलहाल इस अखाड़े के चार महंत बलराम भारती, महंत सत्यम गिरी, महंत पवन गिरी और महंत मंगत पुरी हैं. इस अखाड़े में विरक्त नागा सन्यासी को ही महंत महामंत्री और मंत्री जैसे पदों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत के आधार पर चुना जाता है और इन्हीं सभी पदों पर चुने गए संतों महंतों के द्वारा सभी प्रकार के फैसले लिए जाते हैं.

आदि गणेश हैं इस अखाड़े के ईष्ट देव : महंत बलराम भारती ने बताया कि उनके अखाड़े के ईष्ट देव आदि गणेश गजानन हैं. उनकी पूजा सबसे पहले की जाती है. आदि गणेश भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप से पहले के हैं और भगवान शिव की शादी में भी उन्हीं आदि गणेश की पूजा सबसे पहले की गई थी.

मुगल शासक ने 60 हजार साधुओं का किया था अंत- महंत बलराम

श्री शम्भू पंच अटल अखाड़े के महंत बलराम भारती ने बताया कि सनातन धर्म की रक्षा और उत्थान के लिए उनके अखाड़े के हजारों साधु संतों ने प्राणों की आहुति दी है. सदियों पहले दौड़का दंतूका इलाके के मुस्लिम शासक ने 60 हजार साधुओं के भंडारे के भोजन में जहर मिलवा दिया था, इससे उन सभी की मौत हो गयी थी. उनके अस्त्र शस्त्र वहां एकत्रित करके रख लिए गए थे. 60 हजार साधुओं के अस्त्र शस्त्र आज भी नागौर के किले में सुरक्षित रखे हुए हैं. उस हत्याकांड के बाद सिर्फ 3 संत सुरक्षित बचे. उन्होंने ही प्रयास करके अखाड़े और उसकी परम्पराओं कक कायम रखा और आज भी उनका अखाड़ा चल रहा है.

41 दिन की कठोर परीक्षा में सफल होना आसान नहीं

अटल अखाड़े में शामिल होकर यहां टिके रहना सभी के बस की बात नहीं है, यहां के नियम कायदे अन्य अखाड़ों से कठिन हैं. संन्यासी की कठिन परीक्षा होती है. इस अखाड़े में महात्माओं की भीड़ बढ़ाने के स्थान पर सिर्फ योग्य व्यक्तियों को जोड़ने पर बल दिया जाता है. संन्यासी बनने वाले को 41 दिनों की कठोर परीक्षा से साल में दो बार गुजरना पड़ता है, सफल होने के बाद ही अखाड़े में शामिल होने का रास्ता खुलता है. संन्यासी बनने वाले को 41 दिनों की कठिन तपस्या के तहत माघ जैसे भीषण ठंड के महीने में भोर में 4 बजे उठकर ठंडे पानी के 108 घड़ो से स्नान करने के बाद पूजा पाठ और जपतप करना होता है. इसी तरह से मई जून के भीषण गर्मी के दिनों में 41 दिनों तक सूर्य की रोशनी में धूनी रमाकर अग्नि तपस्या करनी पड़ती है. इसमें सफल होने के बाद सालों तक इन संतो की निगरानी की जाती है और उसके पूरी तरह से मोहमाया और संसार से पूरी तरह से विरक्ति होने के बाद उन्हें अखाड़े में किसी प्रकार की जिम्मेदारी देने के योग्य माना जाता है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ मेला 2025; पर्याप्त जमीन न मिलने से आवाहन अखाड़ा ने जताई नाराजगी, मेला अधिकारी से 10 एकड़ की मांग

यह भी पढ़ें : महाकुम्भ 2025: अटल अखाड़े ने किया नगर प्रवेश, तीन अखाड़ों ने किया भूमि-पूजन

प्रयागराज : श्री शंभू पंच अटल अखाड़ा काफी प्राचीन बताया जाता है. अखाड़े के महंत बताते हैं कि इसकी स्थापना 569 इस्वी में गुजरात के गोंडवाना क्षेत्र में हुई थी. इसके ईष्ट देव आदि गणेश गजानन हैं, जिनकी उपासना करके ही अखाड़े के सभी साधु संत अपने दिन की शुरुआत करते हैं. अखाड़े में शंभू पंच ही सर्वोपरि होता है. दो पद सेक्रेटरी और एक जनरल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में सारे काम होते हैं.

महंत बलराम भारती महाराज ने दी जानकारी ((Video Credit: ETV Bharat))

श्री शम्भू पंच अटल अखाड़ा के महंत बलराम भारती महाराज बताते हैं कि उनका अखाड़ा सबसे प्राचीन है. इस अखाड़े से अलग हुए संतों ने मिलकर दूसरे अखाड़े बनाए हैं. उन्होंने कहा कि इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य के निर्देशन में सनातन धर्म और हिंदुओं की रक्षा के लिए की गई थी. इसी वजह से अटल बादशाह और आवाहन सरकार भी कहा जाता था, हालांकि अटल अखाड़े में 500 संत हैं. उन्होंने बताया कि श्री शम्भू पंच अटल अखाड़े में संतों की संख्या बेहद सीमित है. इस अखाड़े में कोई आचार्य महामंडलेश्वर नहीं होता है. पूरे अखाड़े का संचालन प्राचीन पद्धति से होता चला आ रहा है.

उन्होंने बताया कि अखाड़े में चार श्रीमहंत हैं और उनके साथ महासचिव और सचिव हैं, जो मिलकर अखाड़े का संचालन करते हैं. इसके साथ ही महंत के साथ 4 कारोबारी, 2 पुजारी और 1 कोठारी हैं. इनके सहयोग और सहमति से अखाड़े में सभी फैसले लिए जाते हैं. फिलहाल इस अखाड़े के चार महंत बलराम भारती, महंत सत्यम गिरी, महंत पवन गिरी और महंत मंगत पुरी हैं. इस अखाड़े में विरक्त नागा सन्यासी को ही महंत महामंत्री और मंत्री जैसे पदों के लिए लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत के आधार पर चुना जाता है और इन्हीं सभी पदों पर चुने गए संतों महंतों के द्वारा सभी प्रकार के फैसले लिए जाते हैं.

आदि गणेश हैं इस अखाड़े के ईष्ट देव : महंत बलराम भारती ने बताया कि उनके अखाड़े के ईष्ट देव आदि गणेश गजानन हैं. उनकी पूजा सबसे पहले की जाती है. आदि गणेश भगवान गणेश के एकदंत स्वरूप से पहले के हैं और भगवान शिव की शादी में भी उन्हीं आदि गणेश की पूजा सबसे पहले की गई थी.

मुगल शासक ने 60 हजार साधुओं का किया था अंत- महंत बलराम

श्री शम्भू पंच अटल अखाड़े के महंत बलराम भारती ने बताया कि सनातन धर्म की रक्षा और उत्थान के लिए उनके अखाड़े के हजारों साधु संतों ने प्राणों की आहुति दी है. सदियों पहले दौड़का दंतूका इलाके के मुस्लिम शासक ने 60 हजार साधुओं के भंडारे के भोजन में जहर मिलवा दिया था, इससे उन सभी की मौत हो गयी थी. उनके अस्त्र शस्त्र वहां एकत्रित करके रख लिए गए थे. 60 हजार साधुओं के अस्त्र शस्त्र आज भी नागौर के किले में सुरक्षित रखे हुए हैं. उस हत्याकांड के बाद सिर्फ 3 संत सुरक्षित बचे. उन्होंने ही प्रयास करके अखाड़े और उसकी परम्पराओं कक कायम रखा और आज भी उनका अखाड़ा चल रहा है.

41 दिन की कठोर परीक्षा में सफल होना आसान नहीं

अटल अखाड़े में शामिल होकर यहां टिके रहना सभी के बस की बात नहीं है, यहां के नियम कायदे अन्य अखाड़ों से कठिन हैं. संन्यासी की कठिन परीक्षा होती है. इस अखाड़े में महात्माओं की भीड़ बढ़ाने के स्थान पर सिर्फ योग्य व्यक्तियों को जोड़ने पर बल दिया जाता है. संन्यासी बनने वाले को 41 दिनों की कठोर परीक्षा से साल में दो बार गुजरना पड़ता है, सफल होने के बाद ही अखाड़े में शामिल होने का रास्ता खुलता है. संन्यासी बनने वाले को 41 दिनों की कठिन तपस्या के तहत माघ जैसे भीषण ठंड के महीने में भोर में 4 बजे उठकर ठंडे पानी के 108 घड़ो से स्नान करने के बाद पूजा पाठ और जपतप करना होता है. इसी तरह से मई जून के भीषण गर्मी के दिनों में 41 दिनों तक सूर्य की रोशनी में धूनी रमाकर अग्नि तपस्या करनी पड़ती है. इसमें सफल होने के बाद सालों तक इन संतो की निगरानी की जाती है और उसके पूरी तरह से मोहमाया और संसार से पूरी तरह से विरक्ति होने के बाद उन्हें अखाड़े में किसी प्रकार की जिम्मेदारी देने के योग्य माना जाता है.

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Last Updated : Dec 11, 2024, 12:47 PM IST
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