लखनऊ : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के पाॅवर कॉरपोरेशन के निर्णय को निरस्त करें. संघर्ष समिति ने यह भी फैसला लिया है कि निजीकरण के बाद आम जनता को होने वाली कठिनाईयों से अवगत कराने के लिए संघर्ष समिति जनजागरण अभियान चलाएगी. पहले चरण में आगामी चार दिसंबर को वाराणसी और 10 दिसंबर को आगरा में जन पंचायत आयोजित की जाएगी.
कर्मचारियों के हित में नहीं निजीकरण : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे का कहना है कि पीपीपी मॉडल के आधार पर उड़ीसा की तर्ज पर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय लिया गया है. ये कर्मचारियों के हित में है और न आम उपभोक्ताओं के हित में. 25 जनवरी 2000 को मुख्यमंत्री के साथ हुए लिखित समझौते में यह लिखा है ‘‘विद्युत सुधार अंतरण स्कीम के लागू होने से हुए उपलब्धियों का मूल्यांकन कर यदि आवश्यक हुआ तो पूर्व की स्थिति बहाल करने पर एक वर्ष बाद विचार किया जाएगा. ’’वर्ष 2000 में विद्युत परिषद का विघटन होने के समय 77 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का घाटा था जो अब 25 वर्ष के बाद एक लाख 10 हजार करोड़ हो गया है. स्पष्ट है कि विघटन का प्रयोग पूरी तरह असफल रहा और 25 जनवरी 2000 के समझौते के अनुसार पूर्व की स्थिति बहाल की जानी चाहिए, जबकि प्रबंधन निजीकरण करने पर उतारू है.
ये हुआ था समझौता : शैलेंद्र दुबे का कहना है कि अप्रैल 2018 और अक्टूबर 2020 में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा और मंत्री मण्डलीय उपसमिति के अध्यक्ष वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के साथ हुए समझौते में यह उल्लेख है कि ‘’उप्र में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही सुधार के लिए कर्मचारियों और अभियन्ताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्रवाई की जाएगी. कर्मचारियों और अभियन्ताओं को विश्वास में लिए बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा’’. निजीकरण की अब की जा रही कार्रवाई स्पष्ट तौर पर इतने उच्च स्तर पर किए गए समझौते का खुला उल्लंघन है. संघर्ष समिति मुख्यमंत्री से अपील करती है कि व्यापक जनहित में उक्त समझौतों को देखते हुए पॉवर कारपोरेशन की तरफ से लिये गये निजीकरण के निर्णय को निरस्त करें.
यूपीपीसीएल ने छिपाए तथ्य : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि पावर कॉरपोरेशन की तरफ से जारी किए गए घाटे के आंकडे़ पूरी तरह भ्रामक हैं और उन्हें इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है, मानों घाटे का मुख्य कारण कर्मचारी व अभियंता हैं. पॉवर कारपोरेशन में चालू वित्तीय वर्ष में सरकार की तरफ से 46 हजार 130 करोड़ रुपये की सहायता देने की बात कही है. पॉवर कारपोरेशन ने यह तथ्य छिपाया है कि 46 हजार 130 करोड़ रुपये में सब्सिडी की धनराशि ही 20 हजार करोड़ रुपये है, जो विद्युत अधिनियम 2003 के अनुसार सरकार को देनी ही होती है.
उड़ीसा मॉडल की सच्चाई : उड़ीसा मॉडल पर संघर्ष समिति ने कहा कि उड़ीसा में निजीकरण का प्रयोग वर्ष 1998 में किया गया था जो पूरी तरह विफल रहा था. वर्ष 2015 में जब उड़ीसा विद्युत नियामक आयोग ने निजी कम्पनी रिलायंस के सभी लाइसेंस रद्द किए तब उड़ीसा में लाइन हानियां 47 प्रतिशत से अधिक थीं. वर्ष 2020 में टाटा पॉवर के आने के बाद वर्ष 2023 में सदर्न कम्पनी में 31.3 प्रतिशत हानियां, वेस्टर्न कंपनी में 20.5 प्रतिशत और सेन्ट्रल कंपनी में हानियां 22.6 प्रतिशत हैं. इसके सापेक्ष पॉवर कारपोरेशन में हानियां काफी कम 19 प्रतिशत हैं जो वर्तमान में चल रहे रिवैम्प योजना के पूरे होने के बाद 15 प्रतिशत से भी कम हो जायेंगी. पॉवर कारपोरेशन प्रबन्धन जिस उड़ीसा मॉडल की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में निजीकरण करने की बात कर रहा है उसका परफॉर्मेंस यूपी की वितरण कम्पनियों से कहीं ज्यादा खराब है.
जानिए, कितने रुपए प्रति यूनिट खरीदी जाती है बिजली : नियम यह है कि बिजली की लागत का 85 प्रतिशत बिजली खरीद की लागत होती है. उत्तर प्रदेश में सबसे सस्ती बिजली राज्य के जल विद्युत गृहों से एक रुपए प्रति यूनिट व राज्य के ताप विद्युत गृहों से 4.28 रुपये प्रति यूनिट मिलती है. इससे थोड़ी मंहगी बिजली एनटीपीसी से 4.78 रुपये प्रति यूनिट है, जबकि सबसे मंहगी बिजली निजी क्षेत्र से 5.59 रुपये प्रति यूनिट और निजी क्षेत्र से शार्ट टर्म र्सोसेज से 7.53 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदनी पड़ती है. उड़ीसा में बिजली खरीद की लागत 2.33 रुपये प्रति यूनिट है. निजी क्षेत्र से इतनी मंहगी दरों पर बिजली खरीदने के बाद उसे घाटा उठाकर सस्ती दरों में बेचना पड़ता है. यूपी में घाटे का सबसे बड़ा कारण यही है. मुंबई में निजी क्षेत्र की टाटा पॉवर कंपनी की दरें घरेलू उपभोक्ताओं से 100 यूनिट तक रुपये 5.33 प्रति यूनिट, 101 से 300 यूनिट तक रुपये 8.51 प्रति यूनिट, 301 से 500 तक 14.77 प्रति यूनिट और 500 से यूनिट से अधिक पर 15.71 प्रति यूनिट है. निजी कंपनी इस प्रकार भारी मुनाफा कमा रही हैं.
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