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Queen Marry Hospital : महिला रोग विशेषज्ञों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण की खून चढ़ाकर बचाई जान - Achievement of KGMU - ACHIEVEMENT OF KGMU

किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (Achievement of KGMU) की क्वीन मैरी अस्पताल के महिला रोग विशेषज्ञों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाने में हासिल की है. ऑपरेशन के बाद शिशु की हालत बेहतर है.

प्रसूता के साथ गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाने वाली डाॅक्टरों की टीम.
प्रसूता के साथ गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाने वाली डाॅक्टरों की टीम. (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 12, 2024, 2:02 PM IST

लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (क्वीनमेरी) के डॉक्टरों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाकर जान बचाने में कामयाबी हासिल की है. क्वीनमेरी में पहली बार फिटल ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया है. ऑपरेशन के बाद शिशु पूरी तरह से सेहतमंद है. विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीनमेरी में भ्रूण चिकित्सा सुविधा शुरू की गई है. अब हमने आरएच-इसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के इलाज में सफलता प्राप्त की है.



बताया गया कि उन्नाव के आर्दश नगर निवासी गर्भवती प्रतिमा वर्मा का इलाज कानपुर में चल रहा था. सात माह के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की सेहत की जांच हुई. जिसमें भ्रूण में खून की कमी पाई गई. डॉक्टरों ने गर्भवती को क्वीनमेरी लखनऊ रेफर कर दिया. परिवारीजन गर्भवती को लेकर क्वीनमेरी पहुंचे तो डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने जांच की. केस हिस्ट्री में पता चला गर्भवती लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइजेशन की शिकार हुई. इससे भ्रूण का हीमोग्लोबिन घटकर सात बचा है. जिससे हार्ट फेल की आशंका बढ़ जाती है. इसके बाद गर्भ में ही भ्रूण को खून चढ़ाने का फैसला किया गया. पहली बार डाॅक्टरों ने दो अगस्त को भ्रूण को रक्त चढ़ाया गया. फिर दो अगस्त और फिर 19 अगस्त को भर्ती किया गया. 20 को ऑपरेशन से स्वस्थ शिशु का जन्म हुआ. डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि क्वीन मैरी में पहली बार गर्भास्थ शिशु को खून चढ़ाया गया है. चिकित्सा विज्ञान में इसे इंट्रायूट्राइन ट्रांसफ्यूजन कहते हैं. इसमें अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिए गर्भाश्य में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है.

भूण में हो जाती है खून की कमी

क्वीन मैरी अस्तपताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. नम्रता ने बताया कि ऐसी अवस्था माता-पिता का खून आरएच विपरीत होने पर आती है. नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव होने पर के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई. विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है. मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं. जो प्लासेंटा को पार करते हैं. भ्रूण के आरबीसी को नष्ट कर देते हैं. जिससे भ्रूण एनीमिया की चपेट में आ जाता है. ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है. ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है. डॉ. मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन 1200 प्रसूताओं में किसी एक को ऐसा गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्यूजन तकनीक से इसको रोका जा सकता. ऑपरेशन टीम में डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. नम्रता, डॉ. मंजूलता वर्मा, रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ, डॉ. सिद्धार्थ, बाल रोग विभाग के डॉ. हरकीरत कौर, डॉ. श्रुति और डॉ. ख्याति शामिल रहीं. ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने ओ-नेगेटिव खून उपलब्ध कराया.

यह भी पढ़ें : केजीएमयू में सेहत पर चर्चा ; डिब्बाबंद भोजन तेल मसाला पहुंचा रहा स्वास्थ्य को नुकसान - Discussion on health in KGMU

यह भी पढ़ें : दातों के इलाज में माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल, अब रूट कैनाल और पायरिया में जड़ से खत्म होगा इंफेक्शन - Microscope in Dental Treatment

लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (क्वीनमेरी) के डॉक्टरों ने गर्भ में पल रहे भ्रूण को खून चढ़ाकर जान बचाने में कामयाबी हासिल की है. क्वीनमेरी में पहली बार फिटल ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया गया है. ऑपरेशन के बाद शिशु पूरी तरह से सेहतमंद है. विभागाध्यक्ष डॉ. अंजु अग्रवाल ने बताया कि क्वीनमेरी में भ्रूण चिकित्सा सुविधा शुरू की गई है. अब हमने आरएच-इसोइम्युनाइजेशन गर्भावस्था के इलाज में सफलता प्राप्त की है.



बताया गया कि उन्नाव के आर्दश नगर निवासी गर्भवती प्रतिमा वर्मा का इलाज कानपुर में चल रहा था. सात माह के गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की सेहत की जांच हुई. जिसमें भ्रूण में खून की कमी पाई गई. डॉक्टरों ने गर्भवती को क्वीनमेरी लखनऊ रेफर कर दिया. परिवारीजन गर्भवती को लेकर क्वीनमेरी पहुंचे तो डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने जांच की. केस हिस्ट्री में पता चला गर्भवती लाल रक्त कोशिका एलोइम्युनाइजेशन की शिकार हुई. इससे भ्रूण का हीमोग्लोबिन घटकर सात बचा है. जिससे हार्ट फेल की आशंका बढ़ जाती है. इसके बाद गर्भ में ही भ्रूण को खून चढ़ाने का फैसला किया गया. पहली बार डाॅक्टरों ने दो अगस्त को भ्रूण को रक्त चढ़ाया गया. फिर दो अगस्त और फिर 19 अगस्त को भर्ती किया गया. 20 को ऑपरेशन से स्वस्थ शिशु का जन्म हुआ. डॉ. सीमा मेहरोत्रा ने बताया कि क्वीन मैरी में पहली बार गर्भास्थ शिशु को खून चढ़ाया गया है. चिकित्सा विज्ञान में इसे इंट्रायूट्राइन ट्रांसफ्यूजन कहते हैं. इसमें अल्ट्रासाउंड की मदद से सुई के जरिए गर्भाश्य में ही भ्रूण को रक्त चढ़ाया जाता है.

भूण में हो जाती है खून की कमी

क्वीन मैरी अस्तपताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. नम्रता ने बताया कि ऐसी अवस्था माता-पिता का खून आरएच विपरीत होने पर आती है. नवजात की मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव और पिता के ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव होने पर के कारण ऐसी स्थिति पैदा हुई. विपरीत रक्त समूह के कारण भ्रूण आरएच पॉजिटिव हो सकता है. मां में एंटीबॉडी विकसित होते हैं. जो प्लासेंटा को पार करते हैं. भ्रूण के आरबीसी को नष्ट कर देते हैं. जिससे भ्रूण एनीमिया की चपेट में आ जाता है. ऐसी स्थिति में पूरे भ्रूण में सूजन आ जाती है. ऐसे मामलों में गर्भाशय में ही भ्रूण की मृत्यु हो जाती है. डॉ. मंजुलता वर्मा ने बताया कि अमूमन 1200 प्रसूताओं में किसी एक को ऐसा गंभीर खतरा होता है, लेकिन ट्रांसफ्यूजन तकनीक से इसको रोका जा सकता. ऑपरेशन टीम में डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. नम्रता, डॉ. मंजूलता वर्मा, रेडियोलॉजी विभाग के डॉ. सौरभ, डॉ. सिद्धार्थ, बाल रोग विभाग के डॉ. हरकीरत कौर, डॉ. श्रुति और डॉ. ख्याति शामिल रहीं. ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने ओ-नेगेटिव खून उपलब्ध कराया.

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