ETV Bharat / state

क्या कम वोटिंग से बिगड़ेगा बड़े-बड़ों का खेल! इस बार पप्पू, पवन और हिना पर है नजर - LOW VOTING - LOW VOTING

LOW VOTING IN BIHAR : क्या बिहार में कम वोटिंग से निर्दलीय को जीत की राह मिलती है. लोकसभा के चुनावी इतिहास के कई आंकड़े तो इस बात की ही गवाही दे रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कई अहम चेहरे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमा रहे हैं, जानिये रोचक आंकड़े और निर्दलीयों की जीत का इतिहास,

किसकी किस्मत चमकाएगी कम वोटिंग ?
किसकी किस्मत चमकाएगी कम वोटिंग ? (ई टीवी भारत)
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 3, 2024, 8:00 PM IST

कम वोटिंग से किसे फायदा ? (ई टीवी भारत)

पटनाः बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 9 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. दो चरणों में संपन्न हुई वोटिंग का मत प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में कम रहा है. कम मत प्रतिशत का ये ट्रेंड क्या इस बार भी निर्दलीयों को जीत का रास्ता दिखाएगा? पिछले कई चुनावों के नतीजे तो इस बात की ही तस्दीक कर रहे हैं.

कम वोटिंग, निर्दलीयों की बल्ले-बल्लेः बिहार में 1996 से लेकर 2019 तक सिर्फ पांच निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते हैं और आंकड़े बता रहे हैं कि इन सीटों पर तब कम वोटिंग हुई थी.2009 में बांका और सिवान में निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत इसी कारण हुई थी. उससे पहले 1996 में बेगूसराय से और 1999 में पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार की जीत भी कम वोटिंग के कारण ही हुई थी.

1996 में रवींद्र कुमार को मिली जीतः 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान बेगूसराय लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव की अपेक्षा 7 फीसदी कम वोटिंग हुई. इस कम वोटिंग का फायदा मिला निर्दलीय प्रत्याशी रवींद्र कुमार को, जिन्होंने सबको पछाड़ते हुए बेगूसराय से जीत दर्ज की.

कब-कब जीते निर्दलीय ?
कब-कब जीते निर्दलीय ? (ई टीवी भारत)

1999 में पप्पू को मिली जीत: 3 साल बाद 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्णिया लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव की अपेक्षा 1 फीसदी कम वोटिंग हुई और इसका फायदा मिला निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव को, जिन्होंने पूर्णिया सीट पर जीत की पताका लहराई.

2009 में बांका से जीते दिग्विजय सिंहः 2009 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को जेडीयू ने टिकट नहीं दिया. बागी दिग्विजय सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और बांका से जीत दर्ज की. 2009 में बांका में 2004 की तुलना में 10 फीसदी कम वोटिंग हुई थी.

2009 में ही सिवान से जीते ओमप्रकाश यादवः सिवान लोकसभा सीट पर भी 2009 में 2004 की तुलना में 10 फीसदी कम वोटिंग हुई और इसका सीधा फायदा मिला निर्दलीय ओमप्रकाश यादव को और वो पहली बार सिवान से चुनाव जीतकर संसद पहुंच गये.

तीन निर्दलीयों पर है नजरः 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार की अधिकतर सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर दिख रही है, लेकिन तीन सीटों पर निर्दलीय पासा पलट सकते हैं. पूर्णिया से पप्पू यादव, काराकाट से पवन सिंह और सिवान से हिना शहाब को मजबूत निर्दलीय प्रत्याशी माना जा रहा है.

दो चरणों में हुई है कम वोटिंगः पिछले चुनाव की तुलना में इस बार दो चरणों में हुई वोटिंग का प्रतिशत कम रहा है. पहले चरण में 7 फीसदी कम वोटिंग हुई है तो दूसरे चरण में भी 3.40 फीसदी कम वोटिंग हुई है. बात पूर्णिया की करें तो इस बार पूर्णिया में करीब 4 फीसदी कम वोटिंग हुई है, जिसके बाद पप्पू यादव को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं.

कम वोटिंग से निर्दलीयों को फायदा ?
कम वोटिंग से निर्दलीयों को फायदा ? (ई टीवी भारत)

काराकाट और सिवान में वोटिंग बाकी हैः सिवान और काराकाट में वोटिंग बाकी है. सिवान में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की उम्मीदवारी से दूसरे प्रत्याशियों की नींद उड़ी हुई है तो पवन सिंह के काराकाट से लड़ने के एलान ने चुनावी माहौल बदल दिया है. जाहिर है दोनों सीटों पर सियासी पंडितों की खास नजर है.

'अपनी पहचान पर मिलता है निर्दलीयों को वोट':राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि कई रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि कम वोटिंग के कारण जीत-हार का अनुमान लगाना संभव नहीं है. हां, ये बात सही है कि लोगों की उदासीनता के कारण ही कम वोटिंग होती है, पप्पू, पवन और हिना की बड़ी पहचान है, इसलिए इन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है.

'कम वोटिंग से NDA को नुकसान':वहीं आरजेडी के नेता कम वोटिंग को NDA के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "केंद्र सरकार की नीतियों के कारण लोगों में निराशा है जिसका लाभ हम लोगों को मिलेगा. क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ करने के लिये नहीं रहता है. ऐसे भी लड़ाई INDI अलायंस और NDA के बीच ही है."

आरजेडी का दावा-कम वोटिंग से NDA को नुकसानः वहीं आरजेडी के नेता कम वोटिंग को NDA के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "केंद्र सरकार की नीतियों के कारण लोगों में निराशा है निश्चित रूप से इसका लाभ हम लोगों को मिलेगा क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ करने के लिये नहीं रहता है. ऐसे भी लड़ाई INDI अलायंस और NDA के बीच ही है."

लगातार घट रही है निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्याः लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या लगातार कम हो रही है. 1996 में बिहार-झारखंड जब एक थे तो उस चुनाव में 1103 निर्दलीयों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जो 2019 में घटकर 230 रह गई. 2024 के तीन चरणों की बात करें तो अभी 51 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं.

1952 से 8 निर्दलीय प्रत्याशियों की मिली है जीतः 1952 को पहले आम चुनान से लेकर 2019 तक बिहार से सिर्फ 8 निर्दलीय प्रत्याशियों ने ही जीत का परचम लहराया है. इसमें कमल सिंह और पप्पू यादव ने दो-दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की है.

ये भी पढ़ेंः'लालू यादव ने लिखी पूर्णिया में महाभारत की स्क्रिप्ट, 4 जून को होगा फैसला', हॉट सीट के सवाल पर पप्पू यादव का जवाब - Pappu Yadav Attacks Lalu Yadav

ये भी पढ़ेंःकाराकाट में बुलडोजर से बरसे फूल, पवन सिंह ने बना दिया माहौल, रोड शो से बढ़ी NDA कैंडिडेट उपेंद्र कुशवाहा की टेंशन? - Pawan Singh

ये भी पढ़ेंःसिवान सीट पर लालू यादव की हिना शहाब ने बढ़ाई टेंशन, निर्दलीय चुनाव लड़ने के पीछे मकसद है खास - Lok Sabha Election 2024

कम वोटिंग से किसे फायदा ? (ई टीवी भारत)

पटनाः बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 9 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. दो चरणों में संपन्न हुई वोटिंग का मत प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में कम रहा है. कम मत प्रतिशत का ये ट्रेंड क्या इस बार भी निर्दलीयों को जीत का रास्ता दिखाएगा? पिछले कई चुनावों के नतीजे तो इस बात की ही तस्दीक कर रहे हैं.

कम वोटिंग, निर्दलीयों की बल्ले-बल्लेः बिहार में 1996 से लेकर 2019 तक सिर्फ पांच निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते हैं और आंकड़े बता रहे हैं कि इन सीटों पर तब कम वोटिंग हुई थी.2009 में बांका और सिवान में निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत इसी कारण हुई थी. उससे पहले 1996 में बेगूसराय से और 1999 में पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार की जीत भी कम वोटिंग के कारण ही हुई थी.

1996 में रवींद्र कुमार को मिली जीतः 1996 के लोकसभा चुनाव के दौरान बेगूसराय लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव की अपेक्षा 7 फीसदी कम वोटिंग हुई. इस कम वोटिंग का फायदा मिला निर्दलीय प्रत्याशी रवींद्र कुमार को, जिन्होंने सबको पछाड़ते हुए बेगूसराय से जीत दर्ज की.

कब-कब जीते निर्दलीय ?
कब-कब जीते निर्दलीय ? (ई टीवी भारत)

1999 में पप्पू को मिली जीत: 3 साल बाद 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्णिया लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव की अपेक्षा 1 फीसदी कम वोटिंग हुई और इसका फायदा मिला निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव को, जिन्होंने पूर्णिया सीट पर जीत की पताका लहराई.

2009 में बांका से जीते दिग्विजय सिंहः 2009 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को जेडीयू ने टिकट नहीं दिया. बागी दिग्विजय सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और बांका से जीत दर्ज की. 2009 में बांका में 2004 की तुलना में 10 फीसदी कम वोटिंग हुई थी.

2009 में ही सिवान से जीते ओमप्रकाश यादवः सिवान लोकसभा सीट पर भी 2009 में 2004 की तुलना में 10 फीसदी कम वोटिंग हुई और इसका सीधा फायदा मिला निर्दलीय ओमप्रकाश यादव को और वो पहली बार सिवान से चुनाव जीतकर संसद पहुंच गये.

तीन निर्दलीयों पर है नजरः 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार की अधिकतर सीटों पर NDA और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर दिख रही है, लेकिन तीन सीटों पर निर्दलीय पासा पलट सकते हैं. पूर्णिया से पप्पू यादव, काराकाट से पवन सिंह और सिवान से हिना शहाब को मजबूत निर्दलीय प्रत्याशी माना जा रहा है.

दो चरणों में हुई है कम वोटिंगः पिछले चुनाव की तुलना में इस बार दो चरणों में हुई वोटिंग का प्रतिशत कम रहा है. पहले चरण में 7 फीसदी कम वोटिंग हुई है तो दूसरे चरण में भी 3.40 फीसदी कम वोटिंग हुई है. बात पूर्णिया की करें तो इस बार पूर्णिया में करीब 4 फीसदी कम वोटिंग हुई है, जिसके बाद पप्पू यादव को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं.

कम वोटिंग से निर्दलीयों को फायदा ?
कम वोटिंग से निर्दलीयों को फायदा ? (ई टीवी भारत)

काराकाट और सिवान में वोटिंग बाकी हैः सिवान और काराकाट में वोटिंग बाकी है. सिवान में शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब की उम्मीदवारी से दूसरे प्रत्याशियों की नींद उड़ी हुई है तो पवन सिंह के काराकाट से लड़ने के एलान ने चुनावी माहौल बदल दिया है. जाहिर है दोनों सीटों पर सियासी पंडितों की खास नजर है.

'अपनी पहचान पर मिलता है निर्दलीयों को वोट':राजनीतिक विशेषज्ञ भोलानाथ का कहना है कि कई रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि कम वोटिंग के कारण जीत-हार का अनुमान लगाना संभव नहीं है. हां, ये बात सही है कि लोगों की उदासीनता के कारण ही कम वोटिंग होती है, पप्पू, पवन और हिना की बड़ी पहचान है, इसलिए इन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है.

'कम वोटिंग से NDA को नुकसान':वहीं आरजेडी के नेता कम वोटिंग को NDA के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "केंद्र सरकार की नीतियों के कारण लोगों में निराशा है जिसका लाभ हम लोगों को मिलेगा. क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ करने के लिये नहीं रहता है. ऐसे भी लड़ाई INDI अलायंस और NDA के बीच ही है."

आरजेडी का दावा-कम वोटिंग से NDA को नुकसानः वहीं आरजेडी के नेता कम वोटिंग को NDA के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं. आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद का कहना है कि "केंद्र सरकार की नीतियों के कारण लोगों में निराशा है निश्चित रूप से इसका लाभ हम लोगों को मिलेगा क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ करने के लिये नहीं रहता है. ऐसे भी लड़ाई INDI अलायंस और NDA के बीच ही है."

लगातार घट रही है निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्याः लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या लगातार कम हो रही है. 1996 में बिहार-झारखंड जब एक थे तो उस चुनाव में 1103 निर्दलीयों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जो 2019 में घटकर 230 रह गई. 2024 के तीन चरणों की बात करें तो अभी 51 प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में हैं.

1952 से 8 निर्दलीय प्रत्याशियों की मिली है जीतः 1952 को पहले आम चुनान से लेकर 2019 तक बिहार से सिर्फ 8 निर्दलीय प्रत्याशियों ने ही जीत का परचम लहराया है. इसमें कमल सिंह और पप्पू यादव ने दो-दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की है.

ये भी पढ़ेंः'लालू यादव ने लिखी पूर्णिया में महाभारत की स्क्रिप्ट, 4 जून को होगा फैसला', हॉट सीट के सवाल पर पप्पू यादव का जवाब - Pappu Yadav Attacks Lalu Yadav

ये भी पढ़ेंःकाराकाट में बुलडोजर से बरसे फूल, पवन सिंह ने बना दिया माहौल, रोड शो से बढ़ी NDA कैंडिडेट उपेंद्र कुशवाहा की टेंशन? - Pawan Singh

ये भी पढ़ेंःसिवान सीट पर लालू यादव की हिना शहाब ने बढ़ाई टेंशन, निर्दलीय चुनाव लड़ने के पीछे मकसद है खास - Lok Sabha Election 2024

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.